समय का प्रत्युत्तर देने वाला बजट...

अवधेश कुमार
वित्तमंत्री अरुण जेटली द्वारा प्रस्तुत बजट में किसी को आश्चर्य में डालने वाला कोई तत्व नहीं है। एक दिन पहले आर्थिक सर्वेक्षण में जो विचार एवं सुझाव पेश किए गए थे, बजट मुख्यत: उसी को साकार करने वाला दस्तावेज है। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि बजट लकीर का फकीर है। आश्चर्य का तत्व इस मायने में नहीं है कि आर्थिक सर्वेक्षण में सरकार ने अपनी दिशा का संकेत दे दिया था। वस्तुत: इसे प्रस्तुत भले जेटली ने किया था लेकिन विमुद्रीकरण की तरह ही यह मूलत: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का बजट है। 

मोदी सरकार ने यदि 1924 से चली आ रही तारीख को बदलकर तथा रेल बजट को समाप्त कर इतिहास रचने का निर्णय किया तो उसके साथ यह सवाल अवश्य नत्थी होता था कि क्या तारीख की तरह बजट भी इतिहास रचेगा? यह यथास्थितिवाद का बजट होगा या इसमें कुछ नया विजन होगा? अगर आर्थिक सर्वेक्षण एवं बजट दोनों को साथ मिलाकर देखें तो कम से कम यह स्वीकार करना होगा कि इसमें नई दृष्टि और नए विचार समाहित हैं। 
 
देश के सामने जो आर्थिक चुनौतियां हैं उनका रेखांकन आर्थिक सर्वेक्षण में किया गया था एवं साहस के साथ बजट में उसका सामना करने की कोशिश है। बजट को लेकर जो जन अपेक्षाएं थीं उनको काफी हद तक अभिव्यक्त किया गया है। साथ ही भारत को प्रमुख आर्थिक शक्ति के रूप में खड़ा करने का जो सपना है उस दिशा में भी पर्याप्त छलांग लगाने का प्रयास इस बजट में देखा जा सकता है। 
 
सरकार के लिए अर्थव्यवस्था के कुछ सकारात्मक पहलू सहायक रहे हैं। उदाहरण के लिए महंगाई दर दोनों स्तरों पर नियंत्रण में रही है इसलिए इस मोर्चे पर बहुत ज्यादा करने की आवश्यकता उसे नहीं थी। बहरहाल, विमुद्रीकरण के बाद के पहले बजट में उसकी प्रतिध्वनि का होना स्वाभाविक था। 
 
आर्थिक समीक्षा में इसके असर को कम करने के लिए 4 सुझाव दिए गए थे। पहला, तेजी से रिमोनेटाइजेशन हो और जल्द से जल्द नकद निकासी सीमा को हटाया जाए। इससे विकास में सुस्ती और नकद की जमाखोरी कम होगी। दूसरा, डिजिटलाइजेशन को रफ्तार देने के साथ ही सुनिश्चित किया जाए कि यह बदलाव धीरे-धीरे, अंतरवर्ती तथा प्रोत्साहन पर आधारित हो। तीसरा, नोटबंदी के बाद अब जीएसटी में भूमि और रियल एस्टेट को लाया लाया जाए। चौथा, कर दरों और स्टैम्प ड्यूटी में कमी लाई जाए। 
 
कर प्रणाली में सुधार से आय की सही घोषणा को बढ़ावा मिलता है। यह तो नहीं कहा जा सकता है कि ये सारे कदम उठाए गए हैं, पर कुछ किया गया है। 2.5 लाख से 3 लाख तक आयकर में बदलाव इसका उदाहरण है। यह आवश्यक था। छोटे कारोबारियों के लिए निगम कर में 5 प्रशित कमी लाना भी इसी दिशा का कदम है। डिजलटीकरण की दिशा में जितना संभव है, किया गया है।
 
दरअसल, सरकार का भ्रष्टाचार एवं कालेधन के अंत के लिए लेन-देन में पारदर्शिता लाने के संकल्प को पूरी शिद्दत के साथ बजट में रेखांकित किया गया है। 3 लाख से ज्यादा नकदी लेन-देन पर रोक, ट्रस्टों को 2,000 तक ही नकद चंदा दिए जाने तथा सबसे बढ़कर राजनीतिक दलों को 2,000 तक के नकद चंदा का प्रावधान ऐतिहासिक है। राजनीतिक दलों के चंदे में पारदर्शिता लाने के इतने बड़े कदम की उम्मीद कम लोगों को ही थी।
 
आर्थिक समीक्षा में साफ कहा गया था कि विमुद्रीकरण का असर विकास और रोजगार पर पड़ा है इसलिए विकास लक्ष्य को आप बहुत महत्वाकांक्षी नहीं रख सकते। चूंकि दुनियाभर में अर्थव्यवस्था और व्यापार को लेकर अनिश्चितता है, कुछ देश संरक्षणवाद की नीति पर चल रहे है उसमें भारत अकेले टापू साबित नहीं हो सकता। इसके संभावी असर को स्वीकार कर विकास दर को व्यावहारिक स्तर पर रखा जाना ही उचित था, हालांकि इस लक्ष्य पर कायम रहने से भी भारत दुनिया में सबसे तेजी से विकास करने वाली अर्थव्यवस्था कहलाएगी। 
 
सरकार के लिए संतोष का विषय यह है कि कृषि मौजूदा वित्त वर्ष में 4.1 प्रतिशत की दर से बढ़ रही है। पिछले वर्ष कृषि विकास की दर 1.2 प्रतिशत रही थी। कृषि विकास का अर्थ भारत के 56-57 प्रतिशत लोगों की बेहतर स्थिति का होना है। बेहतर मानसून के कारण इस वर्ष भी कृषि विकास दर बेहतर रहेगी। रबी फसलों की बुवाई का आंकड़ा उत्साहजनक है। यह सरकार को आंख मूंदकर कई कठोर कदम उठाने का आधार प्रदान करता है। 
 
सरकार ने बजट को जिन 10 स्तंभों पर आधारित किया है उसमें किसान, गांव और कृषि प्रमुख हैं। 21 लाख 47 हजार करोड़ के बजट में काफी कुछ इसके लिए दिया गया है। सरकार ने कृषि को और ताकत देने के लिए इसके लिए आवंटन राशि में ही वृद्धि नहीं की है, केवल कृषि के लिए कर्ज को ही नहीं बढ़ाया है, बल्कि मिशन मोड में चल रहे प्रधानमंत्री सिंचाई योजना को भी तेज किया है, कृषि बीमा की योजना का विस्तार कर उसकी राशि को बढ़ाया है।
 
विमुद्रीकरण से किसान काफी प्रभावित हुए थे। वैसे तो बजट के पहले ही सरकार ने उस दौरान उनकी ब्याज दर को माफ कर दिया था। बजट में इसे ही विस्तारित कर उनको और छूटें दी गई हैं। भारत में यदि कृषि की गति ठीक रहे तो अन्य संकट से हमारा देश आसानी से बच सकता है। ग्रामीणों की जेब में धन आने का मतलब बाजार में खरीदारी का बढ़ना है और इससे चतुर्दिक विकास को बढ़ावा मिलता है।
 
सरकार ने पिछले 3 बजटों में भी इस धारणा को तोड़ने की कोशिश की थी कि यह उद्योगपतियों की नहीं, उद्योग एवं करोबार के साथ संतुलन बिठाते हुए गांव की चिंता करने वाले, गरीबों का कल्याण करने वालों की सरकार है। इस बजट में भी इसे आगे बढ़ाया गया है। ग्रामीण विकास पर खास बल देना इसी का द्योतक है। कहा गया है- 'चलें गांवों की ओर।' 
 
वैसे भी भारत को विकसित करना है तो गांव और कृषि को सशक्त करना ही होगा। सेवा क्षेत्र यद्यपि संतोषजनक स्तर पर है लेकिन गांवों के लोगों की आर्थिक ताकत बढ़ने से सेवा क्षेत्र की भी वृद्धि होगी। सरकार के लिए चिंता का क्षेत्र वर्ष 2016-17 में औद्योगिक क्षेत्र की वृद्धि दर के कम होकर 5.2 फीसद के स्तर पर आ जाना है। वर्ष 2015-16 में यह वृद्धि दर 7.4 प्रतिशत थी। 
 
हालांकि 8 प्रमुख ढांचागत सहायक उद्योगों अर्थात कोयला, कच्चा तेल, प्राकृतिक गैस, रिफाइनरी उत्पाद, उर्वरक, इस्पात, सीमेंट और बिजली की अप्रैल-नवंबर 2016-17 के दौरान 4.9 प्रतिशत की वृद्धि दर संतोषजनक है। पिछले वर्ष की समान अवधि में यह दर 2.5 प्रतिशत थी लेकिन यह उस स्तर पर नहीं है जिसकी हमारी कामना है। अर्थव्यवस्था को कृषि, उद्योग एवं कारोबार सबके साथ संतुलित करने की आवश्यकता है। सरकार ने उद्योग वृद्धि के लिए जिन कदमों की घोषणाएं की हैं उनका असर होना चाहिए।
 
अर्थव्यवस्था में निजी निवेश की कमी चिंताजनक है इसलिए सरकार के सामने इसे प्रोत्साहन देने के लिए कदम उठाने की आवश्यकता थी और उसने उठाया है लेकिन निश्चयात्मक रूप से यह नहीं कह सकते कि निवेश होगा ही इसलिए सार्वजनिक निवेश के विकल्प को अपनाया गया है। आधारभूत संरचना में निवेश का असर बहुआयामी होता है।
 
हालांकि आवास के क्षेत्र में पहले से काफी कुछ किया गया है। 2022 तक 'सभी के लिए घर' योजना के अंतर्गत सरकार ने पिछले बजट में काफी कदम उठाए थे जिनका प्रभाव इस क्षेत्र पर पड़ा है। निम्न-मध्यम वर्ग एवं निम्न वर्ग की पहुंच की घर को बढ़ावा देने की योजना पर काफी काम हुआ है इसलिए इस बजट में बहुत कुछ करने की गुंजाइश नहीं थी। तब भी काफी कुछ हुआ है। इससे एक साथ अनेक उद्योगों के काम बढ़ेंगे एवं रोजगार के क्षेत्र में तीव्र विकास होगा। 5 वर्षों से रोजगार क्षेत्र में नकारात्मक विकास को खत्म करने के लिए यह अपरिहार्य था। आधारभूत संरचना के विकास तथा आवासों के निर्माण के साथ भारी रोजगार वृद्धि अविच्छिन्न रूप से जुड़ा है।
 
आयात-निर्यात के मोर्चे पर आएं तो निर्यात में लगातार हो रही ऋणात्मक वृद्धि के रुख में कुछ हद तक सुधार के लक्षण दिखे हैं। अप्रैल से दिसंबर के बीच निर्यात 0.7 प्रतिशत की वृद्धि के साथ 198.8 अरब अमेरिकी डॉलर के स्तर पर पहुंच गया है। इसी दौरान आयात 7.4 प्रतिशत घटकर 275.4 अरब अमेरिकी डॉलर हो गया। 
 
कुल मिलाकर 2016-17 (अप्रैल-दिसंबर) के दौरान व्यारपार घाटा कम होकर 76.5 अरब अमेरिकी डॉलर रह गया है जबकि इससे पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में यह 100.1 अरब अमेरिकी डॉलर था। कुल मिलाकर वर्ष 2016-17 की प्रथम छमाही में चालू खाता घाटा भी कम होकर सकल घरेलू उत्पाद के 0.3 प्रतिशत पर आ गया, जबकि 2015-16 की प्रथम छमाही में यह 1.5 प्रतिशत और 2015-16 के पूरे वित्त वर्ष में यह 1.1 प्रतिशत था। इससे कुछ क्षण के लिए हम संतुष्ट हो सकते हैं।
 
किंतु बजट एवं आर्थिक सर्वेक्षण दोनों में कच्चे तेल के दामों में वृद्धि को चुनौती माना गया है। कच्चे तेल के दाम जिस तरह बढ़े हैं उसमें व्यापार घाटा तथा चालू खाते का घाटा बढ़ सकता है तथा यह हमारे हाथ में नहीं है। बजट ने इसे साफ किया है। इसके हल के लिए दूसरे रास्ते निकालने होंगे। संयुक्त अरब अमीरात के साथ तेल भंडारण का करार इस दिशा में एक बेहतर कदम हो सकता है।
 
राजकोष को देखें तो यह 3.2 प्रतिशत लक्ष्य संतोषजनक है। इसके लिए गठित एनके सिंह समिति ने अपनी जो रिपोर्ट सरकार को दी, उसके अनुसार बजट में कदम उठाने की संभावना थी। सरकार राजकोषीय नियंत्रण एवं बजट प्रबंधन कानून में बदलाव का विधेयक इसी सत्र में लाएगी। इससे राजकोषीय घाटे की अवधारणा में भी बदलाव आ सकता है। वैसे भी अप्रत्यक्ष करों के संग्रह में अप्रैल-नवंबर 2016 के दौरान 26.9 फीसद की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। 
 
आर्थिक सर्वेक्षण में आर्थिक गतिशीलता और सामाजिक न्याय दिलाने के लिए सुधारों की सिफारिश की गई थी। इसी में गरीबी मिटाने के लिए यूनिवर्सल बेसिक इंकम स्कीम लाने का सुझाव था हालांकि वह नहीं हुआ लेकिन अन्य प्रावधान हैं। 5 लाख पंचायतों एवं 1 करोड़ लोगों को 2019 तक गरीबी से मुक्त करने का लक्ष्य बहुत बड़ा है। 
 
तो कुल मिलाकर यह संतुलित, साहसी, विकास और रोजगार को बढ़ावा देने वाला, समाज में पारदर्शिता स्थापित करने तथा गांवों तक सूचना क्रांति का लाभ पहुंचाकर डिजिटलीकरण के लक्ष्य को हासिल करने वाला एक यादगार बजट माना जाएगा।
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