उत्तर भारत में भी किसान कर सकते हैं अंगूर की खेती

खाने में फ्लेम सीडलेस और जूस के लिए पूसा नवरंग लाजवाब

गिरीश पांडेय
Grape cultivation in North India: परंपरागत रूप से अंगूर की खेती के लिए दुनिया के शीतोष्ण क्षेत्र ही जाने जाते रहे हैं। लेकिन उत्तर भारत के उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में इसे बतौर एक महत्वपूर्ण वाणिज्यिक फसल के रूप में भी उगाया जा सकता है। इस बाबत दो प्रजातियां उपयुक्त हैं। खाने के लिए फ्लेम सीडलेस और जूस, जेली, जैम के लिए पूसा नवरंग।
 
अपने वर्षों की लगन से असंभव लगने वाले इस काम को संभव बनाया भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान दिल्ली से संबद्ध लखनऊ स्थित केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान के वैज्ञानिकों की टीम ने।
 
चुनौतियों को समझा और वर्षो के ट्रायल के बाद दो प्रजातियों को संस्तुत किया : इसके लिए संस्थान के निदेशक रहे सीएस राजन और उनकी टीम डॉ. राम कुमार ने पहले उत्तर भारत के एक दम अलग जलवायु क्षेत्र में अंगूर की खेती में कौन-कौन सी चुनौतियां आ सकती हैं, इनको समझा। शोध के दौरान पता चला कि उत्तर भारत में अंगूर की खेती की प्रमुख चुनौती पकने के समय होने वाली शुरुआती बारिश है। बारिश से अंगूर के फलों की गुणवत्ता खराब हो जाती है।
 
बारिश के दुष्प्रभाव से बचाने के लिए कम समयावधि की प्रजाति विकसित की : इस चुनौती को ध्यान में रखते हुए उत्तर भारत की कृषि जलवायु और मौसम के मद्देनजर जल्दी पकने वाली नई विकसित अंगूर की किस्मों और जीनोटाइप्स का मूल्यांकन किया गया। इसका मुख्य लक्ष्य अंगूर की कम समय (शॉर्ट ड्यूरेशन) में होने वाली ऐसी किस्मों की पहचान करना था जो बारिश के पहले मसलन मई तक पक जाएं। साथ ही गुणवत्ता, उपज, साइज और स्वाद में भी बेहतर हों।

अध्ययन के माध्यम से इन किस्मों को व्यावसायिक खेती के लिए अनुशंसित किया जा सकेगा, जिससे उत्तर भारत के किसानों को जलवायु चुनौतियों के बावजूद एक स्थायी और लाभदायक विकल्प मिल सके। उत्तर भारत में अंगूर की खेती के क्षेत्र में वैज्ञानिकों के प्रयास ने उल्लेखनीय सफलता हासिल की। 
 
संस्थान के वैज्ञानिकों का कहना है कि अंगूर की ये दो प्रजातियां उत्तर भारत के किसानों के लिए संभावनाओं के नए दरवाजे हैं। यह केंद्र और प्रदेश सरकारों की मंशा के अनुरूप फसल विविधिकरण का प्रभावी विकल्प है। अंगूर की खेती के साथ सहफसल की संभावना इसकी खेती करने वालों के लिए बोनस है।
 
कम अम्लता वाली फ्लेम सीडलेस में घुलनशील ठोस पदार्थ सर्वाधिक : शोध के दौरान कई किस्मों का परीक्षण किया गया, लेकिन फ्लेम सीडलैस सबसे बेहतरीन किस्म के रूप में उभरकर सामने आई। इस किस्म में सर्वाधिक घुलनशील ठोस (टीस) और कम खटास दर्ज की गई। इसी वजह से यह खाने के लिए सबसे उपयुक्त है। टीएसएस वाले अंगूर मीठे और उपभोक्ताओं को आकर्षित करने वाले होते हैं। इसमें उपलब्ध कम अम्लता इसके स्वाद को संतुलित बनाती है।
 
साइज और स्वाद दोनों बेहतरीन : केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान के प्रधान वैज्ञानिक सुशील कुमार शुक्ला के अनुसार पकने पर सीडलेस फ्लेम अंगूर का रंग कुछ लाल होता है। मिठास और साइज दोनों बेहतरीन है। फल मई से आने शुरू हो जाते हैं और बारिश के सीजन के पहले तक लगभग खत्म हो जाते हैं।
 
मसलन अब सिर्फ नासिक (महाराष्ट्र) ही नहीं उत्तर भारत में भी आप अंगूर की खेती कर सकते हैं। कई लोग अपने किचन गार्डन में सफलतापूर्वक ऐसा कर भी रहे हैं। आपको बस एक्सपर्ट की सलाह से उचित प्रजाति का चयन करना है। साथ ही बेहतर फलत के लिए उचित समय पर उचित तरीके से काट-छांट करना है। 
 
तो फिर किचन गार्डन या खेत में अंगूर लगाकर, कुछ साल बाद इसके मिठास का भी आनंद ले सकते हैं। इसके सेवन से इसमें होने वाले औषधीय गुणों का लाभ मिलना स्वाभाविक है। यही नहीं, स्थानीय स्तर पर तैयार ताजे अंगूर के दाम भी बेहतर मिलेंगे। वाजिब दाम मिलने से किसान भी खुशहाल होंगे। 
 
जूस, जैम, जेली और किशमिश भी बना सकते : चाहें तो अंगूर को प्रसंस्कृत कर आप जूस, जैम, जेली और किशमिश भी बनाकर लंबे समय तक इसका उपयोग कर सकते हैं। ताजे फलों के अलावा हर घर में जूस, जेली और जैम की भी खासी डिमांड रहती है। और, किशमिश तो सूखे मेवे की थाली का अभिन्न हिस्सा है। 
 
पूसा नवरंग है सबसे जूसी अंगूर की प्रजाति : अगर खाने के लिए अंगूर की सबसे अच्छी प्रजाति 'फ्लेम सीडलेस' है तो रस से भरपूर होने के कारण पूसा नवरंग भी जूस, जैम और जेली के लिए खुद में बेमिसाल है। डॉक्टर राजन के मुताबिक पूसा नवरंग में जूस उत्पादन की उत्कृष्ट क्षमता है। इसका अद्वितीय रस प्रोफ़ाइल इसे उत्तर भारत के लिए फ्लेम सीडलेस के बाद दूसरी सबसे उपयुक्त किस्म बनाती है।
 
सरकारी योजनाओं का लाभ लेकर अंगूर की खेती कर आय बढ़ा सकते किसान : हर सरकार खेतीबाड़ी में प्रयोग में आने वाले कृषि यंत्रों, ड्रिप और स्प्रिंकलर जैसी सक्षम सिंचाई सुविधाओं के लिए भारी भरकम अनुदान भी दे रही हैं। किसान इसका भी लाभ उठा कर अंगूर की खेती से अपनी आय बढ़ा सकते हैं।
जुलाई-अगस्त रोपण का उपयुक्त समय : इसकी बेल के रोपण का सबसे उचित समय जुलाई-अगस्त है। जाड़े में बेल की कटिंग की जाती है। फूल और फल बेहतर आएं इसके लिए कटिंग कैसे करें, इस बाबत एक्सपर्ट्स से सलाह जरूर लें। केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान में मदर ग्राफ्ट से पौधे तैयार हैं। इच्छुक लोग या किसान इसे ले सकते हैं।
 
सहफसल के लिए भी उपयुक्त : चूंकि इसकी खेती के लिए मजबूत मचान का स्ट्रक्चर बनाना होता है। पौध से पौध और लाइन से लाइन की दूरी तीन से साढ़े तीन मीटर रखनी होती है। लिहाजा मचान के नीचे सूरन, हल्दी, अरबी या छाया में होने वाली कम समयावधि की अन्य फसलों की खेती कर किसान अपनी आय बढ़ा सकते हैं।
 
अंगूर के औषधीय गुण : अंगूर में विटामिन-सी, पोटैशियम, कैल्शियम जैसे तमाम पोषक तत्व पाए जाते हैं। इसमें फ्लेवोनॉयड्स और एंटीऑक्सीडेंट गुण भी मौजूद होते हैं। अंगूर में उपलब्ध फाइबर सूजन को कम करता है। यह हाई ब्लड प्रेशर को कम करने में भी मददगार है। इसमें मौजूद एंटीऑक्सीडेंट और फ्लेवोनोइड्स हृदय रोगों के खतरे कम करता है। लाल अंगूरों में हरे की तुलना में ज़्यादा एंटीऑक्सीडेंट होते हैं। फ्लेम सीडलेस का रंग पकने पर लाल ही होता है। अंगूर में मौजूद फाइबर, कब्ज़ से राहत दिलाता है और आंतों में लाभकारी बैक्टीरिया को बढ़ाता है।
 
अंगूर का ग्लाइसेमिक इंडेक्स कम होता है, इसलिए मधुमेह के मरीज भी चिकित्सक की संस्तुति के अनुसार इसका सेवन कर सकते हैं। इसमें मौजूद फाइबर से भूख कम लगती है। लिहाजा यह वजन कम करने में भी मददगार है। हड्डियों की मजबूती, रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने और बेहतर नींद में भी यह मददगार है।
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