दस्यू सुदंरी फूलनदेवी के जन्मदिन (10 अगस्त 1963) पर विशेष
बीहड़, बलात्कार, बागी, बदला, प्यार, आत्मसमर्पण, जेल और फिर हत्याएं। 37 साल की उम्र में अगर कोई यह सब देख ले तो उसे क्या कहेंगे। अगर यह सब किसी औरत की कहानी का हिस्सा हो तो किसी की भी आत्म सिहर सकती है।
भारत की दस्यू सुंदरी फूलन देवी की कहानी में यह सारे एंगल शामिल हैं।
नाम तो उसका फूलों के ऊपर रखा गया था, लेकिन उसकी जिंदगी में इतने कांटे, बम,गोला बारुद और बंदूक की गोलियां थीं जिसका अंदाजा नहीं लगाया जा सकता।
10 अगस्त 1963 को उत्तर प्रदेश के जालौन क्षेत्र के पुरवा में जन्मी फूलन बचपन से ही खूंखार थी। जमीन विवाद में अपने चाचा से ही भिड़ गई थी। घरवालों ने 10 साल की उम्र में ही उसकी शादी कर डाली। करीब 40 साल बड़े पति ने कई बार उसका बलात्कार किया। इस दौरान कई अत्याचारों का शिकार फूलन डाकुओं की गैंग में शामिल हो गई। इसके बाद एक घटना ने उसे पूरा बदल दिया। करीब तीन हफ्तों तक फूलन के साथ ठाकुरों की गैंग ने बहमई में बलात्कार किया। बागी होने और गैंग में ऊंचा कद पाने के बाद वो बहमई लौटी और पूछा किसने उसके साथ दुष्कर्म किया था, जब गांव के किसी भी व्यक्ति ने नाम नहीं बताया तो उसने 22 ठाकुरों को लाइन में खड़ाकर गोलियों से भून दिया।
एक क्रूर जिंदगी। बीहड़ों में कटता जीवन और कई हत्याएं। ऐसे में प्यार के बारे में कोई कैसे सोच सकता है। लेकिन फूलनदेवी से दो डाकुओं ने प्यार किया। इन दो डाकुओं का नाम था सरदारबाबू गुज्जर और विक्रम मल्लाह। इस त्रिकोणीय प्रेम कहानी का अंत भी त्रासदी भरा रहा। जब विक्रम मल्लाह को पता चला कि बाबू गुज्जर फूलन पर फिदा है तो एक दिन विक्रम ने बदूंक उठाई और बाबू गुज्जर को भून दिया। इसके बाद फूलन विक्रम के साथ रहने लगी।
जब फूलनदेवी ने आत्म सपर्मण किया तो कई नेता और फिल्म मेकर्स जेल में उससे मिलने आते थे। कोई किताब लिखना चाहता था तो कोई उसके ऊपर फिल्म बनाना चाहता था। लेकिन फूलन बहुत अक्खड़ थी, जो भी उससे मिलता उससे बहुत बेतकल्लुफ़ तरीके से बात करती, गाली-गलौज भी कर देती थी। लेकिन बाद में जब उसे पता चला कि ये तरीका सभ्य लोगों का तरीका नहीं है तो वो भी अपने पास आने वालों से नमस्ते करने लगी और विनम्रता से बात करने लगी।
ग्वालियर जेल में सजा काटने के दौरान फूलन के साथ कुसुमा नाइन, डाकू पूजा, बब्बा और मलखान सिंह जैसे लोग भी सज़ा काट रहे थे, लेकिन सबसे ज़्यादा लोग फूलन से ही मिलने आते थे। इनमें से कई विदेशी होते थे, जो तमाम महंगे गिफ्ट्स के साथ फूलन से मिलते थे। इस सूची में ब्रिटिश लेखक रॉय मैक्सहैम, ‘इंडियाज़ बैंडिट क्वीन’ की राइटर माला सेन, राजेश खन्ना और उनकी पत्नी डिंपल कपाड़िया का नाम है। एक बार कुसुमा नाइन ने जेल प्रशासन पर सवाल उठाया था कि फूलन को जेल में ज़्यादा सुविधा दी जा रही है, जबकि ऐसा था नहीं। वो 10 बाई 10 के कमरे में रहती थीं। फूलन की मां अक्सर उनसे मिलने आती थीं और कई बार पैसे लेकर भी जाती थीं।
1996 में शेखर कपूर ने फूलनदेवी पर बैंडिट क्वीन नाम से फिल्म बनाई थी। इस फिल्म में फूलन के किरदार में उन्होंने सीमा बिस्वास को लिया, जो बहुत हद तक फूलन जैसी दिखती थी। बोल्ड सीन, गाली गलौज और न्यूड सीन की वजह से यह फिल्म काफी विवादित रही। सेंसर बोर्ड ने कई कट के बाद इस फिल्म को रिलीज करने की अनुमति दी थी। ऐसे में सीमा बिस्वास के लिए काम करना भी कम मुश्किल नहीं रहा। कुछ बहुत ज्यादा न्यूड सीन के लिए बॉडी डबल का सहारा लिया गया। कुछ सीन इतने ज्यादा न्यूड थे कि शॉट के दौरान डायरेक्टर और कैमरामैन के अलावा किसी को आने की अनुमति नहीं थी। ये सीन करने के बाद सीमा बिस्वास रात-रातभर रोती थीं। यहां तक कि सेट पर सभी लोग फूलनदेवी की कहानी सुनकर रोते थे।
रिलीज़ से पहले जब फिल्म की अनसेंसर्ड कॉपी सीमा के घर पहुंची तो सीमा ने अपनी मां की गोद में सिर रखकर सोने का नाटक करते हुए यह फिल्म देखी। पूरा घर बंद कर फिल्म देखी गई। जब फिल्म पूरी हुई तो सीमा बिस्वास के पिता ने कहा यह रोल तो हमारी सीमा ही कर सकती थी, तब कहीं जाकर सीमा को थोड़ी राहत मिली।
25 जुलाई 2001 को गोली मारकर फूलन की हत्या कर दी गई थी। यह हत्या शेरसिंह राणा ने की थी। राणा ने दावा किया था कि सवर्णों को मारने का बदला लेने के लिए उसने फूलन को मारा।