धारा बदलने वाले होंगे फ्रांस के राष्ट्रपति चुनाव

शरद सिंगी
मैक्रोन और ली पेन
इस पखवाड़े यूरोप सहित विश्व के कई देशों ने एक बड़ी राहत की सांस ली जब फ्रांस के राष्ट्रपति चुनावों के पहले चरण में खड़े हुए ग्यारह उम्मीदवारों में यूरोपीय संघ के प्रबल समर्थक मैक्रोन काफी अधिक मतों के अंतर से प्रथम स्थान पर आए। फ्रांस में राष्ट्रपति पद के चुनाव दो चरणों में होते हैं। प्रथम चरण के चुनावों में सभी दल अपने-अपने उम्मीदवार खड़े करते हैं और कुछ निर्दलीय भी होते हैं। इस चरण में सर्वाधिक मत पाने वाले प्रथम दो उम्मीदवार अगले चरण में प्रवेश करते हैं। दूसरे और अंतिम चरण में मुकाबला सीधा होता है। जाहिर है कि दो उम्मीदवारों में से जिसे पचास प्रतिशत से अधिक मत मिलेंगे वह राष्ट्रपति निर्वाचित घोषित किया जाएगा। 
 
पाठकों को यहां मैक्रोन के बारे में कुछ जानकारी देते हैं। वे एक निवेश विशेषज्ञ पूर्व बैंकर हैं और राजनीति के नए खिलाड़ी। वर्तमान राष्ट्रपति ओलांदे की मंत्रिपरिषद में मात्र दो वर्षों तक वित्तमंत्री रहे। इस कार्यकाल के दौरान उनके द्वारा व्यापार-व्यवसाय के लिए किए गए अनुकूल सुधारों से उन्हें लोकप्रियता मिली। उन्होंने सन् 2016 में अपनी ही एक स्वतंत्र पार्टी का गठन किया, मंत्री पद से इस्तीफा दिया और राष्ट्रपति चुनावों में स्वयं की उम्मीदवारी की घोषणा कर दी। खुली आर्थिक नीतियों, उदारवादी सोच तथा यूरोपीय संघ को मज़बूत करने की नीति का समर्थन करने के कारण उदारवादी जनता इनके साथ जुड़ती चली गई। 
 
दूसरी ओर मैक्रोन के मुकाबले में हैं प्रथम चरण में दूसरे नंबर पर आने वाली घोर दक्षिण पंथी महिला उम्मीदवार ली पेन। ली पेन के चुनावी वादों में प्रमुख थे गैरकानूनी आप्रवासियों को तुरंत बाहर खदेड़ना, शरणार्थियों की संख्या को कम करना, जो मस्जिदें उग्रवाद को बढ़ावा देती हैं उन्हें बंद करना। यूरोपीय संघ की सदस्यता की नए सिरे से समीक्षा करना और इस मुद्दे पर राष्ट्रीय मत संग्रह करवाना। ली पेन का दूसरे नंबर पर आना यूरोप में एक प्रकार की चेतावनी भी है उन उग्रवादी संगठनों को जिन्होंने फ्रांस में कहर मचाया हुआ है। जो उग्रवाद को कड़ाई से निपटने के समर्थक हैं उनके लिए ली पेन एक अभीष्ट उम्मीदवार हैं।

अंतिम मुकाबले में मैक्रोन के जीत की संभावनाएं इसलिए बढ़ गई हैं क्योंकि प्रथम चरण में उनके जीतने के बाद वर्तमान राष्ट्रपति ओलांदे समेत कई प्रभावशाली नेताओं और प्रथम चरण में हारे हुए अधिकांश उम्मीदवारों ने दूसरे चरण के लिए मैक्रोन समर्थन की घोषणा कर दी है।   
 
ज्ञातव्य है कि इस समय विश्व में प्रबल राष्ट्रवाद की जो एक लहर चल रही है उसमें प्रजातंत्र, चुनाव प्रणाली, मीडिया, मध्यमार्ग, वामपंथ और दक्षिण पंथ सभी एक परिवर्तन के दौर से गुजर रहे हैं। सच तो यह है कि दुनिया अब पहले जैसी नहीं रही। फ्रांस में छह दशकों के बाद  पहली बार ऐसा हुआ है कि वाम या दक्षिण पंथी मुख्य दलों का कोई उम्मीदवार राष्ट्रपति चुनाव के दूसरे चरण में नहीं पहुंचा। मतदाता प्रयोग करने से डर नहीं रहा। सभी दल अपनी परंपरागत सोच को बदलने या आधुनिक संदर्भों में नई व्याख्या करने में जुटे हैं अन्यथा हाशिए में चले जाएंगे, क्योंकि मतदाता राष्ट्रवादी विचारधारा की ओर तेजी से आकर्षित होने लगा हैं। 
 
पहले लोगों में धैर्य था अब अधीर हो चुके हैं। अन्याय को बर्दाश्त करने शक्ति कम हो चुकी है। किसी भी नव निर्वाचित नेता को अधिक समय देने को तैयार नहीं है। परिणाम अतिशीघ्र चाहिए। प्रश्नों के जवाब वस्तुनिष्ठ हो गए हैं। उनका उत्तर सीधे हां या नहीं में चाहिए। कोई घुमाव फिराव या किन्तु-परन्तु नहीं। कार्यकाल के  मूल्यांकन में अब पांच वर्ष भी नहीं लगते। जनता का मत बदलने में देर नहीं लगती। इस बात को भारत के केजरीवाल के उदहारण से समझा जा सकता है, जिनको पूरे सम्मान और उत्सव के साथ  सर पर बैठाया और फिर तीन वर्ष के भीतर ही बिना मुरव्वत झटक दिया। 
 
बढ़ते राष्ट्रवाद ने अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों में ट्रंप को बिना किसी राजनीतिक अनुभव के शीर्ष पर बैठा दिया। अमेरिका के बाद फ्रांस ऐसी दूसरी महाशक्ति होगी जिसमें लगभग नगण्य राजनीतिक अनुभव वाले व्यक्ति का शीर्ष पर पहुंचना तय माना जा रहा है, किन्तु यहां उम्मीदवार राष्ट्रवाद नहीं अपितु खुलेपन और उदारवाद की पैरवी करने वाला है। अतः यूरोपीय संघ को सशक्त देखने की चाह रखने वाले किन्तु ब्रिटेन के यूरोपीय संघ से निकलने के निर्णय से निराश वे यूरोपीय नागरिक, फ्रांस के इस परिणाम से उत्साहित हैं। 
 
यदि मैक्रान जीतते हैं तो जर्मनी की महिला चांसलर एंजेला मर्केल को एक नया सशक्त साथी मिलेगा जो यूरोपीय संघ को एक रखने के लिए अभी तक अकेली जूझ रही थीं। अरे, लेकिन रुकिए, जर्मनी में भी तो इस वर्ष चुनाव होने हैं और देखना उसमें भी पड़ेगा कि जीत राष्ट्रवाद की होती है या उदारवाद की यानी उदारवादी एंजेला मर्केल बनी रहेंगी या नहीं, यह भी एक यक्ष प्रश्न है। खैर, इस उथल-पुथल पर हमारी पैनी नज़रें गड़ी रहेंगी, क्योंकि ये सारी घटनाएं किसी न किसी रूप में भारत पर प्रभाव डालेंगी, जिनका विश्लेषण भी हम समय-समय पर करते रहेंगे। 
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