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गोरक्षपीठ के रोम-रोम में बसती है अयोध्या

राम मंदिर भूमि पूजन की दूसरी सालगिरह (5 अगस्त) पर विशेष

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गिरीश पांडेय

पांच अगस्त की तिथि खुद में ऐतिहासिक है। दो साल पहले इसी तारीख को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की मौजूदगी में अयोध्या स्थित श्रीरामजन्म भूमि पर भव्य मंदिर के निर्माण के लिए भूमिपूजन किया था। इस मौके पर योगीजी की मौजूदगी मुख्यमंत्री के नाते औपचारिक हो सकती है, पर गोरखपुर स्थित गोरक्षपीठ के पीठाधीश्वर के रूप में उनकी उपस्थिति खुद में खास हो जाती है।

वजह यह है कि गोरक्षपीठ वही पीठ है जो करीब 100 सालों से राम मंदिर आंदोलन के केंद्र में रही है। इस दौरान पीठ की तीन पीढ़ियां बदल गईं, पर इस समयावधि में जब भी राम मंदिर को लेकर कोई महत्वपूर्ण घटना हुई, योगीजी के दादागुरु ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ से लेकर उनके (योगीजी) गुरुदेव ब्रह्मलीन महंत अवैद्यनाथ अयोध्या में मौजूद रहे।
 
यह कितना सुखद संयोग था कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद जब करीब 500 वर्ष पुराना यह विवाद खत्म हुआ और मंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन हुआ उस समय गोरक्षपीठ के पीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री थे।
 
इतिहास में ऐसी मिसालें अपवाद हैं कि किसी संस्था या संप्रदाय की दो पीढ़ियों ने करीब 100 साल से जिस मुद्दे को लेकर विषम परिस्थितियों में भी बिना रुके, बिना डिगे, बिना झुके लगातार संघर्ष किया हो, उसकी तीसरी पीढ़ी अपने पूर्वजों के उस सपने को साकार कर रही हो। 
 
अगर हम मंदिर आंदोलन पर एक नजर डालें तो इसमें गोरक्षपीठ की केंद्रीय भूमिका का पता चलता है। मसलन, पिछले करीब तीन दशकों से योगी आदित्यनाथ ने यह साबित किया कि वह अयोध्या के हैं और अयोध्या उनकी। मुख्यमंत्री बनने के बाद भी उन्होंने अयोध्या से अपने लगाव को यथावत रखा। वह अयोध्या, जिसके नाम से ही विपक्ष को करंट लगता था। जो लोग अपने मर्यादा पुरुषोत्तम को ही काल्पनिक मानते थे, उनकी अयोध्या योगीजी के लिए सर्वोपरि रही है।

दूसरी बार मुख्यमंत्री बनने के बाद उनकी पहली यात्रा अयोध्या की ही रही। अभी 1 अगस्त को भी वह अयोध्या गये थे। हनुमान गढ़ी और रामलला के दर्शन के बाद उन्होंने राम मंदिर निर्माण का भी जायजा लिया। 2 अगस्त को कैबिनेट की बैठक में भी राम मंदिर तक जाने वाली मुख्य सड़क को फोरलेन करके उसे काशी विश्वनाथ धाम कॉरिडोर की तरह विकसित करने का निर्णय लिया गया।
 
हाल की इन घटनाओं के इतर देखें तो राम मंदिर के बाबत सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद राम मंदिर न बनने तक रामलला को टेंट से हटाकर चांदी के सिंहासन पर एक अस्थाई ढांचे में ले जाने का काम योगीजी ने ही किया था।
 
गोरक्षपीठ को केंद्र में रखकर राम मंदिर आंदोलन के इतिहास पर गौर करें तो पता चलेगा कि देश की जंग-ए-आजादी और आजादी के तुरंत बाद के वर्षों में जब हिंदू और हिंदुत्व की बात करना भी गुनाह था, तब योगी आदित्यनाथ के दादागुरु ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ ने गोरक्ष पीठाधीश्वर और सांसद के रूप में हिंदू- हिंदुत्व की बात को पुरजोर तरीके से उठाया। न सिर्फ उठाया बल्कि राम मंदिर आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभाई। सच तो यह है कि करीब 500 वर्षों से राम मंदिर के आंदोलन 1934 से 1949 के दौरान आंदोलन चलाकर एक बेहद मजबूत बुनियाद और आधार देने का काम महंत दिग्विजयनाथ ने ही किया था। दिसंबर 1949 में अयोध्या में रामलला के प्रकटीकरण के समय वह वहीं मौजूद थे।
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उसके बाद तो यह सिलसिला ही चल निकला। नब्बे के दशक में जब राम मंदिर आंदोलन चरम पर था तब भी गोरक्षपीठ की ही केंद्रीय भूमिका रही। मंदिर आंदोलन से जुड़े सभी शीर्षस्थ लोगों अशोक सिंघल, विनय कटियार, महंत परमहंस रामचंद्र दास, उमा भारती, रामविलास वेदांती आदि का लगातर पीठ में आना-जाना लगा रहता था। उनकी इस बाबत तब के गोरक्ष पीठाधीश्वर ब्रह्मलीन महंत अवैद्यनाथ से लंबी गुफ्तगू होती थी। यही नहीं, 1984 में शुरू राम जन्मभूमि मुक्ति आंदोलन के शीर्षस्थ नेताओं में शुमार महंत अवैद्यनाथ आजीवन श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति के अध्यक्ष और राम जन्मभूमि न्यास समिति के सदस्य रहे।
 
दादागुरु और गुरु के सपने को योगीजी ने अपना बना लिया : बतौर उत्तराधिकारी महंत अवैद्यनाथ के साथ दो दशक से लंबा समय गुजारने वाले उत्तर प्रदेश के मौजूदा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर भी इस पूरे परिवेश की छाप पड़ी। सांसद के रूप में उन्होंने अपने गुरु के सपने को आवाज दी। मुख्यमंत्री बनने के बाद भी योगी ने साबित किया कि अयोध्या उनकी तब भी अपनी थी और आज भी अपनी। मालूम हो कि बतौर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जितनी बार गए, अयोध्या को कुछ न कुछ सौगात देकर आए। उनकी मंशा अयोध्या को दुनिया का सबसे खूबसूरत पर्यटन स्थल बनाने की है। इसके अनुरूप ही अयोध्या के कायाकल्प का काम जारी है।
 
मुख्यमंत्री होने के बावजूद अपनी पद की गरिमा का पूरा खयाल रखते हुए कभी राम और रामनगरी से दूरी नहीं बनाई। गुरु के सपनों को अपना बना लिया। नतीजा सबके सामने है। उनके मुख्यमंत्री रहते हुए ही राम मंदिर के पक्ष में देश की शीर्ष अदालत का फैसला आया। देश और दुनिया के करोड़ों रामभक्तों, संतों, धर्माचार्यों की मंशा के अनुसार योगीजी की मौजूदगी में ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जन्मभूमि पर भव्य एवं दिव्य राम मंदिर की नींव रखी। युद्ध स्तर इसका निर्माण भी जारी है। उम्मीद है कि 2024 तक रामलला की जन्मभूमि पर भव्य मंदिर बनकर तैयार भी हो जाएगा। (आलेख में व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं। वेबदुनिया का इससे सहमत होना जरूरी नहीं है।) 

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