एक शिक्षक की वर्तमान संदर्भ में भूमिका क्या है

डॉ. छाया मंगल मिश्र
शिक्षा के क्षेत्र में शिक्षक के व्यवसाय का ऐसा ही महत्व है जैसे कि ऑपरेशन करने के लिए किसी डॉक्टर का। शिक्षक ही शिक्षा और शिष्य के उद्देश्य पूरे करते हैं। इसलिए किसी भी शिक्षा प्रणाली या शिक्षा योजना की सफलता या असफलता शिक्षा क्षेत्र के सूत्रधार शिक्षकों के रवैये पर निर्भर करती है।
 
भारत सरकार द्वारा लागू की गई सभी शिक्षा नीतियों/ योजनाओं –कोठारी आयोग की रिपोर्ट (1964-66), शिक्षा नीति (1968), शिक्षा पर पंच वर्षीय योजना की रिपोर्ट और नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (1986) में शिक्षक के व्यवसाय के महत्व की पहचान की गई है।
 
इस तथ्य को और स्पष्ट करने के लिए प्राथमिक स्कूल के शिक्षण व्यवसाय का उदाहरण दिया जा सकता है जिसे विश्व में सबसे महत्वपूर्ण व्यवसाय माना गया है क्योंकि प्राथमिक स्कूल के शिक्षक छोटे बच्चों को ज्ञान और जीवन के मूल्य उन्हें समझ आने लायक भाषा में प्रदान करते हैं ताकि इन छोटे बच्चों का भविष्य सुरक्षित और सुनहरा बन सके।
 
अब क्योंकि आज के बच्चे कल देश का सुनहरा भविष्य हैं तो बच्चों को आज अच्छी शिक्षा देने का अर्थ कल देश के सुनहरे भविष्य का निर्माण करना है और इस कार्य में प्राथमिक स्कूल के शिक्षक निरंतर सकारात्मक भूमिका निभाते हैं।
 
माता-पिता बच्चे को जन्म देते हैं। उनका स्थान कोई नहीं ले सकता, उनका कर्ज हम किसी भी रूप में नहीं उतार सकते, लेकिन शिक्षक ही हैं जिन्हें हमारी भारतीय संस्कृति में माता-पिता के बराबर दर्जा दिया जाता है।
 
आगे चर्चा करें तो इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि प्राथमिक स्कूल के बाद माध्यमिक और उच्च माध्यमिक स्कूल भी छात्र/ छात्राओं के व्यक्तित्व निर्माण में अहम भूमिका निभाते हैं और जब हम किसी स्कूल की बात करते हैं तो वास्तव में उस स्कूल में कार्यरत विभिन्न विषयों के शिक्षक ही उस स्कूल में पढ़ने वाले सभी छात्र/ छात्राओं को अर्थपूर्ण शिक्षा प्रदान करते हैं।
 
जब अच्छी शिक्षा देने की बात आती है तो विद्यालय, महाविद्यालय और विश्वविद्यालय में पढ़ाने वाले सभी शिक्षक इसके प्रणेता नजर आते हैं। शिक्षा, शिक्षक और शिष्य के आत्मीय और निकटतम सम्बन्ध को कभी तोड़ा नहीं जा सकता है।
 
विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास के लिए एक सजग, उदात्त चरित्र, धार्मिक नैतिकता परिपूर्ण शिक्षक की आवश्यकता है ताकि हमारी आने वाली पीढ़ी को हम ऐसे भारतीय नागरिक बनाने में सफल हो सकें जो विश्व में भारत का नाम रोशन कर सकें और पुनः भारत को ‘जगतगुरु’की उपाधि प्राप्त करवा सके। हम सब की भी यही अभिलाषा है।
 
किसी भी राष्ट्र का आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक विकास उस देश की शिक्षा पर निर्भर करता है। अगर राष्ट्र की शिक्षा नीति अच्छी है तो उस देश को आगे बढ़ने से कोई रोक नहीं सकता अगर राष्ट्र की शिक्षा नीति अच्छी नहीं होगी तो वहां की प्रतिभा दब कर रह जाएगी बेशक किसी भी राष्ट्र की शिक्षा नीति बेकार हो, लेकिन एक शिक्षक बेकार शिक्षा नीति को भी अच्छी शिक्षा नीति में बदलने में सक्षम होता है।
 
आज के समय में शिक्षा का व्यवसायीकरण और बाजारीकरण हो गया है। शिक्षा का व्यवसायीकरण और बाजारीकरण देश के समक्ष बड़ी चुनौती है। पुराने समय में भारत में शिक्षा कभी व्यवसाय या धंधा नहीं थी। गुरु एवं शिक्षक ही वो हैं जो एक शिक्षार्थी में उचित आदर्शों की स्थापना करते हैं और सही मार्ग दिखाते हैं।
 
एक शिक्षार्थी को अपने शिक्षक या गुरु प्रति सदा आदर और कृतज्ञता का भाव रखना चाहिए। किसी भी राष्ट्र का भविष्य निर्माता कहे जाने वाले शिक्षक का महत्व यहीं समाप्त नहीं होता क्योंकि वह ना सिर्फ हमको सही आदर्श मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं बल्कि प्रत्येक शिक्षार्थी के सफल जीवन की नींव भी उन्हीं के हाथों द्वारा रखी जाती है।
 
वर्तमान युग है आधुनिकता का, वैज्ञानिकता का, व्यस्तता का, अस्थिरता का, जल्दबाजी का। आज का विद्यार्थी जीवन भी इन्ही समस्याओं से ग्रसित है। आज का विद्यार्थी जीवन पहले की तरह सहज, शांत और धैर्यवान नहीं ही रह गया है। क्योंकि आगे बढ़ना और तेजी से बढ़ना उसकी नियति, मजबूरी बन गई है। वह इसलिए कि यदि वह ऐसा नहीं करेगा तो ज़िंदगी की दौड़ में वह पीछे रह जायगा। तो यह वक्त का तकाजा है। ऐसे समय में विद्यार्थी जीवन को एक सही, उचित, कल्याणकारी एवं दूरदर्शी दिशा निर्देश देना एक शिक्षक का पावन कर्तव्य है। वैसे तो शिक्षक की भूमिका सदैव ही अग्रगण्य रही है क्योंकि-
“राष्ट्र निर्माता है वह जो, सबसे बड़ा इंसान है, किसमें कितना ज्ञान है, बस इसको ही पहचान है”
 
वर्तमान समय में विद्यार्थियों के संदर्भ में एक शिक्षक की भूमिका और अधिक महत्वपूर्ण होती जा रही है। उसके अनेक कारण हो सकते हैं। जैसे आज-कल विद्यार्थी बहुत ही सजग, कुशल, अद्यतन होने के साथ-साथ बहुत अस्थिर और अविश्वासी भी होते जा रहे हैं। इसके कारण चाहे जो कुछ भी हो परंतु एक शिक्षक को आज के ऐसे ही विद्यार्थियों को उचित प्रशिक्षण, सदुपयोगी शिक्षण और सटीक कल्याणकारी, दूरगामी मार्गदर्शन प्रदान करते हुए उन्हें भावी देश के कर्णधार, जिम्मेदार देशभक्त नागरिकों में परिणित करना है। एक शिक्षक की जिम्मेदारी बहुत अधिक होती है।
 
क्योंकि उसे ना केवल बच्चों का बौद्धिक, नैतिक, मनोवैज्ञानिक ,शारीरिक विकास करना है अपितु सामाजिक, चारित्रिक, एवं सांवेगिक विकास करना भी आज शिक्षक का ही कर्तव्य है। आदर्श शिक्षक का कार्य बहुत ही महत्वपूर्ण है। एक बात और कि जिस प्रकार शिक्षा एक अंतहीन प्रक्रिया है। उसी प्रकार शिक्षण भी अंतहीन प्रक्रिया है। क्योंकि कोई भी इंसान जैसे पूरी जिंदगी सीखता रहता है, सिखाता भी रहता है।
 
उसी प्रकार एक शिक्षक का कार्य भी शिक्षा देना है जो कि वह निरंतर देता रहता है। इसलिए उसे किसी विशेष प्रांगण किसी विषय, किसी विशेष समय अंतराल, किसी विशेष सहायक सामग्री की आवश्यकता नहीं होती। एक शिक्षक तो बिना किसी मांग के, बिना कहे अपना सर्वस्व ज्ञान अनुभव में डुबोकर प्रदान करने के लिए सदैव समाज के सामने तत्पर रहता है। वास्तव में एक शिक्षक की वर्तमान संदर्भ में भूमिका यह है कि जो एक विद्यार्थी के लिए उचित हो, कल्याणकारी हो, दूरगामी हो, प्रायोगिक हो, धनोपार्जन में सहायक हो ऐसी शिक्षा को निरंतर प्रदान करते रहना।
 

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