तुलसी इस संसार में भांति-भांति के साहित्यकार

सुशील कुमार शर्मा
मगसम श्रोता प्रतिक्रिया मंच- एक रिपोर्ट
 
यह रिपोर्ट लिखते हुए फिर सोचा, अच्छा-अच्छा लिखूं या अच्छा-बुरा लिखूं? फिर सुधीरजी की बात याद आई और निश्चय किया सच्चा-सच्चा लिखूं। मंजिल ग्रुप साहित्यिक मंच से जबसे जुड़ा हूं, अपने आपको एक नए पैकेज में पा रहा हूं। एक नया उत्साह, नए जज्बात हर दिन एक नई रचना की प्रेरणा इस मंच से मिल रही है, हालांकि मेरे पास सीमित शब्दकोष है। 
 
सुधीरजी के स्वास्थ्य को लेकर हम सब चिंतित हैं। सुधीरजी इस पूरे साहित्यिक मंच के पुल हैं, जो अपने आत्मविश्वास से इतने अहंकारों को समेटे हैं। उनकी उपस्थिति मंच को एक नया उत्साह प्रदान करती है, वर्ना मंच नीरस-सा लगने लगता है। मंच का संयोजन, उसके पदाधिकारियों का चुनाव एवं कार्यशैली से मैं उतना ही अनभिज्ञ हूं जितने नए जुड़ने वाले सभी सदस्य। जितने भी संयोजक हैं उनके कर्तव्य, कार्य एवं क्षेत्र बंटे हैं। निश्चित रूप से अपनी योग्यता के बल पर उन्होंने यह स्थान अर्जित किया होगा। 
 
मंच के सुचारु संचालन के लिए सभी सदस्य भले ही कटिबद्ध न हों लेकिन अधिकांश सदस्य एवं पदाधिकारी पूर्ण समर्पण से कार्य कर रहे हैं तभी ये मंच निरंतर प्रगति के सोपानों की ओर अग्रसर है। वर्ना जहां 4 साहित्यकार आपस में एकसाथ नहीं बैठ सकते, वहां लगभग 12 हजार रचनाकारों को संकलित करना बहुत दुष्कर और दुरूह कार्य है। हर रचनाकार की अपनी सीमाएं होती हैं। अपनी बौद्धिक क्षमता होती है। अपने पारिवारिक संस्कार और स्वभावगत विशेषताएं एवं कमियां होती हैं। इन सारे घटकों का प्रभाव उसकी रचनाओं में परिलक्षित होता है। लेकिन इन सब विभिन्नताओं को समेटते हुए एक रचनाकार में एक मानवीय गुण, सहृदयता और समन्वय तथा दूसरों का सम्मान करने की भावना होना चाहिए, जो आजकल के (कुछेक) साहित्यकारों में कम ही नजर आ रही है। 
 
मंच के उद्देश्य सबको मालूम हैं। प्रमुख उद्देश्य भारत के सभी रचनाकारों, विशेषकर उन्हें जिन्हें अपनी प्रतिभा दिखाने के लिए मंच की आवश्यकता है, को एक विस्तृत एवं विशाल मंच प्रदान करना है। इस मंच का एक विशिष्ट उद्देश्य रचनाकारों के अंदर से 'मैं सर्वश्रेष्ठ हूं' की भावना को निकालना है। हर रचनाकार अपनी प्रत्येक रचना के साथ अहंकारी होता जाता है और कब वह अहंकार के शिखर पर बैठ जाता है, पता ही नहीं चलता। धीरे-धीरे उसके अंदर अहंकार का ऐसा प्रतिमान स्थापित हो जाता है, जो स्वभावगत होकर आचरण में परिलक्षित होने लगता है। 
 
हम सभी रचनाकार हमेशा यही कहते हैं कि 'मेरे अंदर कोई अहंकार नहीं है', 'मैं तो बहुत छोटा हूं' इत्यादि, लेकिन जैसे ही किसी ने हमें टोका या गलती निकाली या कोई कड़वी बात कह दी तो हमारे अंदर का अहंकार, जो विनम्रता का लबादा ओढ़े बैठा था, फुफकारने लगता है। 
 
सुधीरजी की एक विशेषता जो इतने दिनों में मैंने परखी है, वह यह कि वे अपनी बात को जितनी प्रखरता एवं आक्रामक तरीके से रखते हैं, उतने ही दूसरों की रचनाओं को सराहने में भी सहृदयी हैं। रचनाकार को अपनी रचना को आकार देने में आक्रामक होना चाहिए लेकिन दूसरों की रचनाओं की सराहना करने में उतना ही सहृदयी होना चाहिए। अगर रचनाकार ने स्वाभाविक गलतियां की हैं या व्याकरण संबंधी गलतियां की हैं तो विनम्रतापूर्वक रचनाकार को जताना जानकार रचनाकार का दायित्व है लेकिन इसमें अपमान करने की भावना निहित न हो। जरूरी नहीं है कि हमें हर रचनाकार की हर रचना पसंद आए लेकिन नापसंदगी के बावजूद उस रचना पर शालीनता से टिप्पणी देकर उसका एवं रचनाकार का सम्मान करना जरूरी है। 
 
मंच के पटल पर कुछ रचनाकार दूसरों की रचनाओं को बुरा, उबाऊ और न जाने क्या-क्या कहते, उन्हें अपमानित करने से भी नहीं चूकते। ये सब हमारे अंदर का अहंकार ही तो है। ऐसे रचनाकार अपने स्वभाव की समीक्षा करें एवं दूसरों का सम्मान करना सीखें। आप कितने भी श्रेष्ठ रचनाकार क्यों न हों अगर आप सहृदय नहीं हैं तो आप अकेले रह जाएंगे और उपेक्षित रहेंगे। 
 
आजकल रचनाओं की चोरी आम बात हो गई है। न जाने ये कौन-सा मनोरोग है, जो ये चोरी करने को उकसाता है। दूसरों के बच्चे को आप लाड़-प्यार करोगे तो कोई नहीं रोकेगा किंतु अगर उसे पकड़कर आप अपना बच्चा कहोगे तो पिटाई भी होगी और अपमान भी झेलना पडेगा। जैसा कि हम देख चुके हैं कि मगसम के एक वरिष्ठ पदाधिकारी की हालत। आखिर उन्हें अपमानित होकर समूह छोड़कर जाना पड़ा था। इसी डर के कारण मैं सिर्फ अपनी प्रकाशित रचनाओं को ही पटल पर रखता हूं। 
 
सभापति महोदय ने पटल का आकलन करके बताया था कि सिर्फ 20 प्रतिशत रचनाकार श्रेष्ठ रचनाओं का सृजन कर रहे हैं बाकी 80 प्रतिशत सिर्फ पटल पर खानापूर्ति कर रहे हैं। रचना जब तक भाव, संकल्प और भाषा की कसौटी पर कसकर रचित नहीं की जाएगी, तब तक श्रेष्ठता की श्रेणी में नहीं आ पाएगी। हम सभी के लिए ये विचारणीय बिंदु हैं, इस पर सोचना होगा।
 
स्वभावत: सभी रचनाकार चाहते हैं कि उनकी रचना जन्मते ही लोगों के समक्ष आए और लोग उसकी प्रशंसा करें। यह तभी संभव है, जब आप एक स्वस्थ और सुंदर रचना को जन्म दें। अगर एक दिन में आप 5 से 10 रचना पटल पर रखेंगे तो लोग उनका आकलन नहीं करेंगे बल्कि बोरियत महसूस करेंगे और आपकी आने वाली अच्छी रचनाएं भी उपेक्षित हो जाएंगी।
 
इस रिपोर्ट में ये मेरे व्यक्तिगत विचार हैं, मेरा पटल की क्रियाशीलता पर आकलन है। जरूरी नहीं है कि आप सब लोग इससे सहमत हों। लेकिन इस रिपोर्ट पर आप सभी सुधीजनों की प्रतिक्रिया अपेक्षित है। 
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