Dharma Sangrah

नाम में ही सबकुछ रखा है साहब...

डॉ. प्रवीण तिवारी
नाम में क्या रखा है? यह जुमला आम तौर पर इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन सच पूछिए तो नाम में ही सबकुछ रखा है। कुछ सालों पहले एक जिम में मुझे इंस्ट्रक्टर के तौर पर एक अच्छा दोस्त मिला। कम हाइट थी, लेकिन बॉडी बिल्डिंग का अच्छा खिलाड़ी था।



उसके व्यक्तित्व की सबसे दिलचस्प बात थी उसका नाम। मुझे कई दिनों तक विश्वास नहीं हुआ कि उसने अपना जो नाम बताया है वो भी कोई रख सकता है। मेरे इस भाई का नाम था रावण। वो हिंदू धर्म छोड़ चुका था और बौद्ध धर्म को स्वीकार कर चुका था। जब उसे पता लगा कि मैं पढ़ने लिखने वाला आदमी हूं तो उसने वो पुस्तकें, जो उसे धर्म परिवर्तन की प्रक्रिया के लिए दी गई थीं मुझे देनी शुरू की।
 
बाबा अंबेडकर की तस्वीरों वाली कई पुस्तकें उसने मुझे दीं। साथ ही उसने कुछ कार्यक्रमों में भी मुझसे चलने के लिए कहा। ऐसे लोगों का पूरा जीवन ही मेरे लिए किसी पुस्तक से कम नहीं होता है और मैं उनके जीवन को गंभीरता से पढ़ता हूं। उसका हाव भाव, अंदाज सबकुछ किसी विक्षिप्त जैसा होता जा रहा था। धर्म का जहर वो लोग ऐसे युवाओं की रगों में भरते हैं जो बरसों से भेद की चिंगारियों को हवा देते रहे हैं। यह राजनीति के लिए जरूरी है।
 
मेरे इस दोस्त का नाम भी एक विद्रोह और नाराजगी के भाव से रखा गया था। हालांकि उसने बाद में यह जानकारियां जुटा ली थी कि रावण प्रकांड पंडित था, ज्योतिष का महान ज्ञानी था, भगवान शिव का अनन्य भक्त था आदि इत्यादि। उसकी जानकारियों में मैंने भी बहुत इजाफा किया। उसने वही चवन्नी छाप किताबें पढ़ी थी, जिसमें धर्म परिवर्तन करवाने के मकसद से बहुत कुछ ऊल जुलूल लिखा गया था। मैंने उससे कहा- गोस्वामी तुलसीदास ने बहुत सुंदर तरीके से तुम्हारे नाम का वर्णन किया है वो बालकांड में कहते हैं..दस सिर ताहि बीस भुजदंडा। रावन नाम बीर बरिबंडा॥
 
रावण के दस सिर और बीस भुजाएं थीं और वह बड़ा ही प्रचंड शूरवीर था। कोई भी व्यक्तित्व आकर्षक लग सकता है लेकिन यह इस बात पर निर्भर करता है कि उसे किस तरह से रखा जा रहा है। आपने टेलीविजन पर रामायण भी देखी और रावण भी देखा, दोनों को देखने के बाद रावण की छवि अलग-अलग तरीके से सामने आती है। इन तमाम किस्से कहानियों के बावजूद यह तो तय है कि रावण सनातन परंपरा में एक खलनायक की ही भूमिका रखता है। यही वजह है कि उसे बुराई का प्रतीक बनाया गया है और बुराई के प्रतीक का नाम कोई भी अपने बच्चों को नहीं देना चाहेगा। रावण के शाब्दिक अर्थ के तौर पर तेज गर्जना, दहाड़ जैसे अर्थ सामने आते हैं, लेकिन कोई इसके शाब्दिक अर्थ के बारे में जानने की जरूरत नहीं समझता। सब जानते हैं रावण मतलब बुरा, खलनायक या अंधकार का प्रतीक।
 
नाम सिर्फ शब्दों तक सीमित नहीं होता। वर्तमान परिदृश्य में हमारे देश में नाम से ज्यादा महत्वपूर्ण कुछ दिखाई नहीं पड़ती। यदि नाम की अहमियत नहीं होती तो विजातीय विवाह करने वाली इंदिरा जी को महात्मा गांधी अपना नाम क्यूं देते? यह देश नाम से चलता है। यहां आज भी चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह और अशफाक उल्लाह के नाम रगों में खून की रफ्तार तेज कर देते हैं। यहां आज भी तैमूर लंग और दूसरे आक्रांताओं के नाम सुनकर जख्म हरे हो जाते हैं। आपके बच्चे आपकी बपौती हैं लेकिन लोगों की भावनाएं नहीं। नाम एक मैसेज भी देता है। जब गांधी जी इंदिरा जी को बेटी कहते हैं, तो इसके कुछ मायने होते हैं। वो वैसे भी उन्हें बेटी मानते थे, लेकिन नाम देने का मकसद उस नाम से जुड़ी भावनाएं थीं। यह भावनाएं कितनी ताकतवर हो सकती हैं इसका उदाहरण देश ने साठ साल तक देखा है। जिस परिवार का गांधी से दूर-दूर तक लेना देना नहीं था, वह गांधी परिवार बन गया और जिन गांधी के नाम पर परिवार बना उनका अपना परिवार जाने कहां खो गया। बहुत साफ है रिश्तों से ज्यादा अहमियत भावनाओं और नामों के इस्तेमाल की है।
 
कई कथित बुद्धिजीवियों ने हाल में असहिष्णुता का मुद्दा उठाया था। बिहार चुनाव के बाद वो सब अपने बिलों में घुस गए। एक बार फिर किसी के बच्चे के नाम पर लोगों में कथित असहिष्णुता देखने को मिली है। यह हमारे देश की खूबसूरती है कि यहां हमें सचमुच की आजादी मिलती है, पाकिस्तान, कोरिया या चीन जैसे देशों की तरह आजादी का दिखावा नहीं किया जाता। हम सचमुच कुछ भी करने के लिए आजाद हैं, लेकिन क्या यह आजादी हमें एक जिम्मेदारी का अहसास भी नहीं कराती है? क्या हमें भी आजाद देश में लोगों की भावनाओं को आजाद रहने का मौका नहीं देना चाहिए? पाकिस्तानी झंडे और नारों को लेकर भी मैंने इसी तरह का एक ब्लॉग लिखा था। हमारे कुछ अपने, पाकिस्तानी झंडों को घरों पर लगाते दिखाई पड़ते हैं। क्या उन्हें इस तरह की आजादी मिलनी चाहिए? उन पर पाबंदी हो या आजादी मिले, से ज्यादा जरूरी यह जानना है कि क्या उन्हें खुद ही इस देश की परिपाटी पर चलते हुए ऐसे किसी कदम से परहेज नहीं करना चाहिए, जो हमें पराएपन का एहसास कराता है?
 
आपसे उम्मीद नहीं करते कि आप बच्चों के नाम किसी क्रांतिकारी या देश भक्त के नाम पर रखेंगे। लेकिन किसी कुख्यात चोर, डकैत या हत्यारे के नाम पर नामकरण होगा तो भावनाएं आहत होंगी ही। जो शाब्दिक अर्थ बताने की बेवकूफी करते हैं उन्हें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि व्यक्तित्वों से नाम बनते हैं, नाम से व्यक्तित्व नहीं बनते हैं। चंद्रशेखर सीताराम तिवारी बोल दें तो शायद लोग न पहचाने, लेकिन जैसे ही पंडित जी को चंद्रशेखर आजाद कहते हैं तो सबकी छाती चौड़ी हो जाती है। तो याद रखिए बच्चों के नाम सोच समझकर रखें क्यूंकि नाम में बहुत कुछ रखा है।
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