संविधान में महिला अधिकारों का क्रियान्वयन...

Webdunia
-डॉ. दीपिका भटनागर

किसी भी देश की तरक्की तब तक संभव नहीं मानी जा सकती, जब तक कि उस देश की महिलाएं कंधे से कंधा मिलाकर न चले। स्त्री एवं पुरुष दोनों की ही सृष्टि के सृजन एवं मानवीय सभ्यता के विकास में सृजनात्मक भूमिका रही है। पुरुष एवं स्त्री दोनों ही एक ही सिक्के के दो पहलू, एक-दूसरे के पूरक व सहयोगी हैं।


 
आज हमारे देश को एक विकासशील देश का दर्जा दिया जा रहा है। पूरे विश्व में भारत का नाम सभ्यता व संस्कृति के नाम से भी जाना जाता है। देशभर में नारी उत्थान की बात एक चर्चा का विषय बनी हुई है, परंतु इस देश की भावी पीढ़ी जिस के गर्भ से जन्म लेती है उसी स्त्री को सही मायनों में उसके सांविधानिक अधिकारों की जानकारी सही एवं पूर्ण रूप से नहीं है। भारतीय महिलाओं की स्थिति प्रारंभ से ही उतार-चढ़ाव के दौर से गुजरती रही है। यही कारण है कि महिला विकास यात्रा संक्रमण से गुजर रही है जिसमें सकारात्मक एवं नकारात्मक दोनों ही तत्वों का समन्वय है।
 
प्रत्येक व्यक्ति जन्म से ही कुछ मूल अधिकारों के साथ इस धरती पर आता है। ये अधिकार उसके जन्म से लेकर मरण तक उसके साथ रहते हैं। जीवन जीने की स्वतंत्रता, समता का अधिकार, विकास के अवसर प्राप्त करने का अधिकार या अन्य प्रकार के अधिकार, प्रत्येक अधिकार में महिलाओं के साथ भेदभाव किया जाता है। अधिकार होने बावजूद उन्हें कई बार अधिकार के प्रयोग से वंचित होना पड़ता है।
 
भारतीय संविधान भारत की महत्वपूर्ण राष्ट्रीय धरोहर है। 26 जनवरी 1950 का दिन भारतीय इतिहास में स्वर्णाक्षरों में लिखा गया। इसी दिन देश सदियों की दासता व उतार-चढ़ाव के पश्चात नए गणराज्य के रूप में उभरकर आया। मूल अधिकारों का उद्गम स्वतंत्रता का संघर्ष है। मूल अधिकार ऐसे आधारभूत अधिकार होते है, जो मनुष्य का चहुंमुखी विकास करते हैं।
 
भारतीय संविधान के अंतर्गत महिलाओं को कई सांविधानिक अधिकार प्रदान किए गए हैं, जो निम्नानुसार हैं-
 
अनुच्छेद 14, 15 समता का अधिकार वर्णित करता है कि ये सभी व्यक्तियों पर समान रूप से लागू होते हैं, चाहे वे नागरिक हो या गैरनागरिक। अनुच्छेद 15 धर्म, जाति, लिंग मूल वंश व जन्म स्थान समानता के आधार हैं। अनुच्छेद 15 (3) स्त्रियों के लिए विशेष उपबंध है। अनुच्छेद 16 लोक सेवाओं में अवसर की समानता का अधिकार प्रदान करता है। अनुच्छेद 23 मानव दुर्व्यवहार, बेगार, बलात्‌ श्रम आदि का प्रतिषेध करता है। 
 
स्त्रियों का अनैतिक व्यापार मानव दुर्व्यवहार का ही एक रूप है। 'स्त्री तथा लड़की अनैतिक व्यापार दमन अधिनियम 1956' पारित किया गया जिसके अंतर्गत मानव दुर्व्यवहार एक दंडनीय अपराध घोषित किया गया। अनुच्छेद 39 राज्य द्वारा अनुसरणीय कतिपय नीति-निर्देशक तत्व के अंतर्गत सभी नागरिकों के लिए जीविका के पर्याप्त साधनों की उपलब्धि, स्त्रियों को समान कार्य के लिए पुरुषों के बराबर वेतन, स्त्रियों की शोषण से रक्षा आदि अधिकारों से महिलाओं को गरिमामय जीवन-यापन को प्रेरित करता है। अनुच्छेद 42 काम की न्यायसंगत और मानवोचित दशाएं सुनिश्चित करता है अर्थात स्त्री से कठोर परिश्रम वाला काम न लेना, खतरनाक मशीनों पर कार्य न करवाना, अत्यधिक समय तक काम न करवाना आदि। 
 
अनुच्छेद 51 (3) के मूल कर्तव्य के अंतर्गत भारत के सभी लोगों में समरसता और समान भ्रातृत्व की भावना का निर्माण करें, जो धर्म, भाषा व प्रदेश या वर्ग पर आधारित सभी भेदभाव से परे हो। ऐसी प्रथाओं का त्याग करें, जो स्त्रियों के सम्मान के विरुद्ध है। अनुच्छेद 243 (घ) में महिलाओं के लिए पंचायतों के अंतर्गत कतिपय स्थान आरक्षित किए गए हैं। अध्यक्षों के 1/3 स्थान महिलाओं के लिए आरक्षित होंगे।
 
समय-समय पर संविधान में महिलाओं की स्थिति को मजबूत करने के लिए संशोधन किए जाते रहे हैं, क्योंकि इस पुरुष-प्रधान समाज में महिलाओं के साथ लैंगिक आधार पर किए जा रहे भेदभाव को समाप्त करने के लिए उनके अधिकारों को न केवल सुनिश्चित करना जरूरी है बल्कि उन अधिकारों का क्रियान्वयन भी आवश्यक है।

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