जीवन को सजा लीजिए 'अपनों' के अपनेपन से

प्रज्ञा पाठक
एक दिन मैंने घर के बाहर अपनी गाड़ी रोकी। उतरते ही दीदी की हंसी सुनाई दी। बहन की हंसी से लगा, मानो दिनभर का बोझ उतर गया। ऐसा महसूस हुआ, जैसे ये निर्मल हंसी मेरे सारे वर्तमान और आगामी कष्ट भी हर लेगी। एक अजीब-सा सुकून, दिव्य शांति, मनोनुकूल सुख जैसा कुछ उस एक पल में अनुभूत हुआ। 
 
स्मरण कीजिए, ये हंसी मेरे अकेले के घर में नहीं है, आपके घर में भी है बल्कि हर घर में है। वो पवित्र हंसी आपकी मां की हो सकती है, बहन की हो सकती है, जीवनसंगिनी की हो सकती है या बेटी, भाभी, बहू किसी की भी हो सकती है।
 
ये हंसी हृदय की शुचिता से उपजी होकर भावों की पुनीत गंगा में स्नात हर उस 'अपने' के लिए उमड़ती है, जो किसी न किसी रिश्ते में संबंधित से आबद्ध हो। हमें इस हंसी की महत्ता समझनी चाहिए। यदि ये हंसी हमारे जीवन में न हो, तो नैतिक बल से हम सर्वथा दूर होंगे, क्योंकि अपनों का ऐसा सकारात्मक साथ ही तो जीने और काम करने की वजह बनता है।

 
यह हम सभी का अनुभूत सत्य होगा कि रिश्ता चाहे दांपत्य का हो, अभिभावकत्व का या बंधुत्व का हो, सर्वत्र हृदय का वो स्पर्श आवश्यक है, जो अपनेपन के मुदित भाव से उत्पन्न होता है। इसके बिना मन में सूनेपन की वो आंधी चलती है, जो हमारी सारी ऊर्जा को निष्क्रियता की ओर मोड़ देती है।
 
फिर यह तो सर्वविदित है कि कर्महीन जीवन बोझ के अतिरिक्त कुछ नहीं। जीवन कभी सरल रेखा की तरह नहीं चलता, उतार-चढ़ाव आते ही हैं। सुख के साथ दु:ख और खुशियों के साथ विसंगतियां अविछिन्न रूप में चले आते हैं। ऐसे में स्वजनों का सहयोग ही लड़ने और लड़कर जीत जाने का जज्बा पैदा करता है। एक गृहस्थ का बल उसके परिजन ही होते हैं। वे खुशी के क्षणों में उसके हमकदम बनकर उसके लिए महत्वपूर्ण सहभाव रचते हैं और दु:ख या संकट के अवसरों पर उसकी ताकत बनकर खड़े होते हैं।

 
हमें ये निश्चित रूप से समझ लेना चाहिए कि परिवार सिर्फ कुछ व्यक्तियों का समूह नहीं है बल्कि ये वो शक्तिपुंज है, जो हमें कर्माभिमुख करता है, हमारे अस्तित्व को प्राणवान बनाता है और इसकी सामूहिकता में हमारी व्यक्तिवत्ता शानदार विकास पाती है। हां, इतना अवश्य ख्याल रखना चाहिए कि परिवार से ये सब लाभ पाने के लिए हमें इसकी जड़ों को स्नेह जल से सींचना होगा। अपनी आत्मीयता देने पर इसकी हार्दिकता निश्चित रूप से उपलब्ध होगी।

 
स्मरण रखिए, अपनों का साथ जीवन को सरल, सहज और सफल ही नहीं बनाता बल्कि संतोष के, शांति के उन इंद्रधनुषी रंगों से भी भर देता है जिनकी वजह से जिजीविषा अर्थात जीने की इच्छा या चाह बनी रहती है और यही चाह व्यक्ति के जीवन में कर्म और सफलता का मणिकांचन योग लाती है।
 
इसलिए आज से उन सारी हंसियों को सहेज लीजिए जिनके बिना आपका जीवन सूना है। उन सारी भावनाओं को स्वयं के भीतर जज्ब कर लीजिए, जो आपके लिए उमड़ी हैं। उन सभी दुआओं को अपनी झोली में समेट लीजिए, जो 'अपनों' ने पूरे मन से आप पर लुटाई हैं। उन शुभेच्छाओं को अपने हृदय में धारण कीजिए, जो निर्मल आत्माओं ने आपको सोल्लास भेजी हैं और उन आशीषों व मंगलकामनाओंरूपी पुष्पों को अपने दामन में चुन लीजिए जिनकी सुगंध से आपके मन-प्राण सदा ऊर्जावान बने रहते हैं और आपका ये जीवन सही अर्थों में जीने योग्य बन पाता है।
 

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