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'कुर्सियों पर बैठते हो! आग तो तुम्हारी कुर्सियों के नीचे सुलग रही है'

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श्रवण गर्ग

आज ‘सम्पूर्ण क्रांति दिवस' है और मैं 5 जून 1974 के उस ऐतिहासिक दृश्य का स्मरण कर रहा हूं जो पटना के प्रसिद्ध गांधी मैदान में उपस्थित हुआ था और मैं जयप्रकाशजी के साथ मंच के निकट से ही उस क्रांति की शुरुआत देख रहा था जिसने अंततः वर्ष 1977 में दिल्ली में इंदिरा गांधी की सत्ता को पलट कर रख दिया था।

इसके एक दिन पहले 4 जून को पटना की सड़कों पर कांग्रेस हुकूमत की ओर से जो हिंसा की गई थी मैं उसका ज़िक्र यहां नहीं कर रहा हूं। मैं उन दिनों पटना में रहते हुए जयप्रकाशजी के साथ कदम कुआं स्थित निवास पर उनके काम मैं सहयोग कर रहा था और कोई एक साल उनके सान्निध्य में रहने और काम करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था।

जयप्रकाश जी की सलाह पर मैंने बिहार आंदोलन पर जो पुस्तक उस समय लिखी थी और सर्व सेवा संघ, वाराणसी ने प्रकाशित की थी वह आज भी उस समय का एकमात्र प्रामाणिक दस्तावेज है जो लोकनायक ने स्वयं पढ़कर स्वीकृत किया था और अपने हस्ताक्षर से टिप्पणी लिखी थी। पुस्तक ‘बिहार आंदोलन : एक सिंहावलोकन’ में दर्ज किया गया 5 जून का दृश्य प्रस्तुत कर रहा हूं:

‘पांच जून की सभा कई मानों में ऐतिहासिक थी। सभा का प्रारम्भ प्रख्यात उपन्यासकार श्री फणीश्वरनाथ रेणु द्वारा स्वर्गीय श्री रामधारी सिंह दिनकर की उस प्रसिद्ध कविता के वाचन से शुरू हुआ जो उन्होंने जयप्रकाशजी पर लिखी थी और जिसे उन्होंने स्वयं पटना के गांधी मैदान में सुनाया था। रेणु जी के बाद आचार्य राममूर्ति बोले: 'आठ अप्रैल का दिन संकल्प का दिन था आज का दिन समर्पण का है। भारत की आज़ादी के इतिहास का उत्तरार्ध लिखा जा रहा है। उसे युवक और छात्र ही लिखेंगे। एक आदमी आया और उसने बिहार की जनता के सिरहाने एक आंदोलन रख दिया। यह देश न जाने कितने काल तक जेपी के प्रति कृतज्ञ रहेगा। जेपी ने इस अधमरे देश को प्राण दिए हैं।' सारी सभा मंत्रमुग्ध होकर सर्वोदय आंदोलन के ओजस्वी वक्ता को सुनती रही।

आचार्य राममूर्ति के बाद जेपी ने बोलना शुरू किया: 'बिहार प्रदेश छात्र-संघर्ष समिति के मेरे युवक साथियो, बिहार प्रदेश के असंख्य नागरिक भाइयो और बहनो!’ एक-एक शब्द लोगों को भेदने लगा: 'किसी को कोई अधिकार नहीं है कि जयप्रकाश नारायण को लोकतंत्र की शिक्षा दे। यह पुलिसवालों देश है?? यह जनता का देश है। मेरा किसी से झगड़ा नहीं है। हमें (हमारा) तो नीतियों से झगड़ा है, सिद्धांतों से झगड़ा है, कार्यों से झगड़ा है। चाहे वह कोई भी करे, मैं विरोध करूंगा। यह आंदोलन किसके रोकने से, जयप्रकाश नारायण के रोकने से नहीं रुकने वाला है। कुर्सियों पर बैठते हो! आग तो तुम्हारी कुर्सियों के नीचे सुलग रही है। यूनिवर्सिटी-कॉलेज एक वर्ष तक बंद रहेंगे। सात तारीख़ (जून) से असेम्बली के चारों गेटों पर सत्याग्रह होंगे। अब नारा यह नहीं रहेगा ‘विधानसभा भंग करो’, नारा रहेगा ‘विधानसभा भंग करेंगे’, इस निकम्मी सरकार को हम चलने ही न दें। जिस सरकार को हम मानते नहीं, जिसको हम हटाना चाहते हैं, उसे हम कर क्यों दें? हमें कर-बंदी का आंदोलन करना होगा।’

अपने डेढ़ घंटे से अधिक समय के भाषण के अंत में जेपी ने कहा: 'यह संघर्ष केवल सीमित उद्देश्यों के लिए नहीं हो रहा है। इसके उद्देश्य तो बहुत दूरगामी हैं।भारतीय लोकतंत्र को ‘रीयल’ याने वास्तविक तथा सुदृढ़ बनना, जनता का सच्चा राज क़ायम करना, समाज से अन्याय, शोषण आदि का अंत करना, एक नैतिक, सांस्कृतिक तथा शैक्षणिक क्रांति करना, नया बिहार बनाना और अंततोगत्वा नया भारत बनाना है। यह सम्पूर्ण क्रांति है।’

पांच जून को गांधी मैदान में दिए जेपी के ‘सम्पूर्ण क्रांति' के उद्घोष के बाद देश की राजनीति की धारा ही बदल गई। पांच जून के बाद दिल्ली में जनता पार्टी की सरकार क़ायम होने तक का भी एक लम्बा इतिहास और सफ़र है और उस इतिहास को एक साक्षी के रूप में बनते हुए देखने का भी मुझे गर्व है। हम सब जानते हैं कि जेपी ने 1974 में जिस ‘सम्पूर्ण क्रांति’ का आह्वान किया था उसका काम अभी अधूरा है।

हमें भरोसा है कि इसे पूरा करने में वे लोग भी अपनी आहुतियां देंगे जो इस समय दिल्ली और बिहार की सत्ताओं में हैं और 5 जून 1974 को जेपी के साथ पटना के गांधी मैदान में भी उपस्थित थे। कहने को बाक़ी तो और भी बहुत कुछ है पर फिर कभी। 'सम्पूर्ण क्रांति’ के नायक जेपी की स्मृति को प्रणाम।

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