एक पुरानी और मशहूर किताब है, जिसके लेखक रॉबर्ट शुलर हैं। इस पुस्तक का नाम (टाइटल) बहुत साफतौर से इस पुस्तक का भाव प्रदर्शित कर रहा है कि बुरा समय नहीं टिकता अपितु जो लोग मजबूत होते हैं वे लोग आसानी से जिंदगी की हर चुनौती से पार पाकर विजेता बन जाते हैं। वैश्विक महामारी कोरोना का यह समय भी कुछ-कुछ इसी प्रकार का है।इस दौर में जीवन में चुनौतियां कुछ अधिक नजर आ रही हैं। इन्हीं चुनौतियों के चलते हम असमंजस और अनिश्चितता की स्थिति में हैं।
असमंजस और अनिश्चितता दोनों ही सफलता के पग में बेड़ियों के समान काम करते हैं। यदि हमारे पैरों में बेड़ियां होंगी तो फिर हमारी सफलता की दौड़ निश्चय ही बाधित होगी। शायद इस समय हम में से अधिकांश लोगों के साथ ऐसा ही कुछ हो रहा है।जहां इस महामारी से उपजी नकारात्मकता हम सबकी मानसिकता पर आवश्यकता से अधिक हावी हो रही है। जिसके कारण बहुत से लोग असमंजस एवं अनिश्चितता की स्थिति में हैं।
बड़ी समस्या यह है कि जिनको इस विषयवस्तु का संपूर्ण ज्ञान नहीं है। वह दुनियाभर के लिए परामर्शदाता की भूमिका में हैं। कोई ऑक्सीजन लेवल पर ज्ञान दे रहा है, कोई फेफड़ों के संक्रमण पर ज्ञान दे रहा है तो कोई वायरस लोड पर उपदेश दे रहा है। संचार की आपाधापी के इस दौर में दुनिया में अधकचरा ज्ञान और जानकारी हम सबके लिए ऐसे दुर्गम पहाड़ के रूप में नजर आ रही है, जिससे पार पाना असंभव सा प्रतीत हो रहा है। संकट का समाधान असंभव प्रतीत होना, नैराश्य का प्रतीक है।
यह भी सत्य है कि कोरोना की कथित दूसरी लहर या पहली लहर का ही हिस्सा जो भी हो। यह इस समय कष्ट का कारक है।इसलिए दुनियाभर में सभी ने इस संकट को विकट मान लिया है। ऐसे में इस संकट से निपटने के लिए जो सबसे सरल उपाय है वह स्वयं पर अधिकाधिक काम करना।हम में से प्रत्येक को स्वयं को सुरक्षित रखने का प्रयास करना है।ठीक वैसे ही जैसे हवाई जहाज में हवा का दबाव कम होने पर सबसे पहले स्वयं को ऑक्सीजन मास्क लगाकर सुरक्षित रहने की सलाह दी जाती है। वैसा ही इस समय भी करना है, क्योंकि हमारी स्वयं की सुरक्षा ही अप्रत्यक्ष रूप से हमारे प्रियजन और परिजनों की सुरक्षा है।हमारी सुरक्षा ही हमारे समाज की एवं मोहल्ले की सुरक्षा है।
इसलिए दो बिंदुओं पर बहुत आवश्यक रूप से कार्य करना है।पहला तो यह कि हम डॉक्टर नहीं हैं तो हमको कोरोना के विषय पर आवश्यकता से अधिक ज्ञान और जानकारी ग्रहण करने की और उसे आगे वितरित करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि हम इसके विशेषज्ञ नहीं हैं, इसलिए हो ये रहा है कि जो अतिरिक्त ज्ञान हम ग्रहण कर रहे हैं,वह अप्रत्यक्ष रूप से हमारी नकारात्मकता में वृद्धि कर रहा हो।
विशेषज्ञता ना होने के चलते हमें इस ज्ञान को समझने-समझाने की पर्याप्त क्षमता नहीं है। यही कारण है कि इस कोरोना की आवश्यकता से अधिक जानकारी एक सामान्य व्यक्ति के लिए नुकसानदायक सिद्ध हो रही है। हम अपने अधूरे ज्ञान का बखान अपने घर, परिवार और समाज में करके इस बीमारी के प्रति स्वयं तो मानसिक एवं शारीरिक रूप से और अधिक नकारात्मक होते ही जा रहे एवं अपने आसपास के लोगों की मानसिकता को भी दूषित-प्रदूषित कर रहे हैं।
बस इतनी ही जानकारी पर्याप्त है कि घर से बाहर ना निकला जाए,आवश्यकतानुसार मास्क लगाया जाए, नियमित अंतराल पर सैनिटाइजर का उपयोग हो और सतत रूप से किसी भी साबुन से हाथ धोते रहें।इसके अलावा अन्य कोई भी जानकारी किसी भी नॉन मेडिको के लिए आवश्यक नहीं है। इसका दूसरा पक्ष है हमारी मानसिकता से जुड़ा है।फेशियल मास्किंग के साथ मेंटल मास्किंग भी अति आवश्यक है अन्यथा फेस मास्क का प्रभाव कम हो सकता है। हमको यह प्रयास करने हैं कि हम अधिक से अधिक सकारात्मक मानसिकता की ओर अपना ध्यान केंद्रित करें, तो संभव है कि हम सरलता से इस संकट से उबरने में सफल हो जाएंगे।
आवश्यक नहीं है कि दुनियाभर की कोरोना की स्थिति की जानकारी आपके पास हो।क्योंकि हम सरकार का अंग या मीडिया कर्मी नहीं हैं कि हमें सब जानकारी एकत्रित करके दुनिया को देनी है।कोरोना की आवश्यक जानकारियां देने का कार्य सरकार और मीडिया से जुड़ी संस्थाएं सतत रूप से कर रही हैं। हमें और आपको यह कार्य करने की आवश्यकता नहीं है।
इन फिजूल की जानकारियों से अनजाने में ही हम और अधिक नकारात्मकता में डूबते जाएंगे, फिर उबरने में कठिनाई होगी।यदि हम अंदर से नकारात्मक हैं तो बहुत सारी ऐसी केमिकल रिएक्शन हमारे शरीर के अंदर होंगी, जो भिन्न-भिन्न प्रकार के नकारात्मक हार्मोन का निर्माण करेंगी। इस सबसे हमारी वैचारिक एवं शारीरिक क्रियाएं स्वयमेव नकारात्मक होती चलेंगी। हमको सिर्फ मानवी जीवन के सकारात्मक पक्षों को सतत रूप से स्मरण करना है।
यह वही मानवीय समाज है जिसने दो-दो विश्वयुद्ध झेले हैं। कुछ देशों ने परमाणु हमलों का तो कुछ में परमाणु विकिरणों की दुर्घटनाओं का सामना सफलतापूर्वक किया है। प्लेग, चेचक, हैजा, पोलियो, कालरा, सार्स एवं एड्स जैसी अनेक महामारियां आज या तो समाप्त हैं या नियंत्रित हैं। तो इस कोरोना का भी इलाज है।वैक्सीन भी आ चुकी है, ऐसे में थोड़े से धैर्य के साथ संतुलित रहने की जरुरत है। कष्ट है, किन्तु सिर्फ विलाप के सतत आलाप से समाधान नहीं होगा।संकट के समुद्र में बहिए मत, मजबूती से टिके रहने का प्रयास हो। संभवतया यही परीक्षा है।
हम जीत जाएंगे, बशर्ते हमारा स्वयं पर विश्वास बना रहे। जो परिस्थितियां हमारे सामने हैं।उसमें परेशान होने के स्थान पर यह विचार करें कि हम इन परेशानियों को परास्त कर लेंगे। मन को शांत रखें, इससे मानसिकता सकारात्मक बनी रहेगी।इस हेतु योग-ध्यान, अच्छी चीजें पढ़ना-सुनना और देखना या ऐसा अन्य कुछ जो हमको हर्षित करे।मीडिया, सोशल मीडिया की नकारात्मकता के स्थान पर अपनों से, अपनों के बीच, अपनों के लिए समय व्यतीत करें लाभ होगा।
किसी भी प्रकार के मानसिक अवसाद से दूर रहने के समस्त उपक्रम इस समय बहुत काम के हैं।।चिकित्सा विज्ञान के अनुसार, मानसिक अवसाद हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बहुत क्षति पहुंचाता है। इस समय हर हालत में हमारी मानसिक और शारीरिक रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि की आवश्यकता है। सामान्य व्यक्ति और सफल व्यक्ति में यही बुनियादी अंतर है कि सामान्य व्यक्ति सरलता से डर के आगे समर्पण कर देता है, वहीं जो सफल व्यक्ति है वह डर के आगे जीत देखता है एवं अन्तोत्गत्वा जीत प्राप्त भी करता है।
यह हम सबने सुना होगा, किन्तु अब पुनः स्मरण की आवश्यकता है। एक कैदी को मृत्युदंड दिया गया, लेकिन कुछ वैज्ञानिकों ने विचार किया कि इस कैदी पर एक प्रयोग किया जाए, तब उस कैदी को बताया गया कि उसे फांसी की बजाय विषधर सांप से डसवाकर मारा जाएगा।फांसी वाले दिन उसके सामने एक बड़ा विषधर सांप लाया गया।उसके बाद कैदी की आंखों पर पट्टी बांधकर उसे बिठा दिया गया।इसके बाद उसे सांप से ना डसवाकर एक साधारण पिन चुभाई गई, परन्तु कुछ पलों में उस कैदी की मृत्यु हो गई।
मृत्यु उपरांत परीक्षण में उसके शरीर में सर्प विष मिला, जो उसके मानसिक भय से उपजा था व उसकी मृत्यु का कारण बना। आशय यह कि हमारी मानसिक स्थिति के अनुसार ही हम में सकारात्मक या नकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न होती है।अधिकांश व्याधियों का मूल हमारी नकारात्मक विचार ऊर्जा है।
नकारत्मक विचार भस्मासुर होते हैं, जो हमें ही भस्म करने का कार्य करते हैं, लेकिन हम अनेक अवसरों पर इसे समझ नहीं पाते।संक्रमण से हार जाने वालों की तुलना में संक्रमण से जीतने वालों की संख्या बहुत अधिक है। बल और विवेक से कार्य करें। जीत हमारी ही होगी। (लेखक मोटिवेशनल स्पीकर हैं)
(इस लेख में व्यक्त विचार/विश्लेषण लेखक के निजी हैं। 'वेबदुनिया' इसकी कोई जिम्मेदारी नहीं लेती है।)