Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

‘मजदूर के हंगामें’ में अपनी चुप्‍पी में गुमसुम ज‍िंदा ‘कॉमन मैन’

हमें फॉलो करें ‘मजदूर के हंगामें’ में अपनी चुप्‍पी में गुमसुम ज‍िंदा ‘कॉमन मैन’
webdunia

नवीन रांगियाल

देशभर में मजूदर हंगामा है। सारे न्‍यूज पेपर मजदूरों के पलायन की कहानी से भरे हैं। न्‍यूज चैनल पर स‍िर्फ मजदूरों के दर्द की कहानी है। सोशल मीड‍िया पर भी मजदूरों के दर्द पर आंसू बहाए जा रहे हैं।

हर तरफ मजदूर मजदूर और मजदूर है...

मजदूरों के इस हंगामें, रोने और शोर में देश का एक ऐसा वर्ग भी है ज‍िसकी तस्‍वीर और उसका दर्द कहीं गुम हो गया है। वो खबरों में नहीं है, चर्चा में नहीं है, कहीं उसकी तस्‍वीर नहीं द‍िखाई जा रही है। वो चुपचाप बगैर क‍िसी से कोई शि‍कवा और शि‍कायत के अपना दर्द और तकलीफ सह रहा है।

उसके पास न तो मनरेगा का जॉब कार्ड है और न ही राशन कार्ड। उसके पास न तो जनधन का खाता है और न ही मुफ्त में उसे चावल म‍िलता है।

उसके पास बाईक कार और घर के कर्ज की क‍िश्‍त है। उसके पास बच्‍चों के स्‍कूल की फीस है। उसकी नौकरी खतरे में है। उसे घर वालों का पेट भरना है और अपना सामाज‍िक स्‍तर भी संभालना है। उसके बैंक खाते का आंकडा लगातार घटता जा रहा है। वो जीरो बैलेंस के पास है। लेक‍िन उसकी मजबूरी है क‍ि वो अपना कर्ज उतारने के ल‍िए मजदूरों की तरह मजदूरी भी नहीं कर सकता।

ये वही मध्‍यमवर्गीय जीवन भोगने वाला औसत आदमी है ज‍िसने अभी- अभी वकालत शुरू की थी। अभी अभी आठ हजार की सेल्‍समैन की नौकरी लगी थी। अभी-अभी बीमा कंपनी में टारगेट पूरा करने के ल‍िए लोगों की जी हजुरी शुरू की थी। वो बीमा एजेंट हो सकता है, सेल्‍स एजेंट हो सकता है, कोर‍ियर बॉय हो सकता है, ड‍िल‍िवरी बॉय हो सकता है। क‍िसी मैनेजर की तरह साफ-सुथरे कपडों में मुस्‍कुराता हुआ चेहरा हो सकता है लेक‍िन उसकी गरीबी की सीमा वही जानता है। लेकिन इन सब के बावजूद वो अपनी गरीबी का रोना नहीं रोता। वो इंजीन‍ियर, पत्रकार, क्‍लर्क, बाबू, प्राइवेट स्‍कूल टीचर, टाइप‍िस्‍ट हो सकता है। सलून वाला या धोबी वाला कुछ भी हो सकता है।

ये मध्‍यवर्ग भी मजदूरों ज‍ितना ही शायद मजदूरों से ज्‍यादा ही मजबूर है लेक‍िन वो अपनी गरीबी का प्रदर्शन तक नहीं कर सकता। और कोई उसके बारे में बात भी नहीं कर रहा। टीवी न ही अखबार और न ही सोशल मीड‍िया।  
उसे क‍िसी सरकार का आसरा नहीं है। क‍िसी योजना का लाभ नहीं है। उसे अपने बूते ही अपनी तकलीफ को दूर करना है क्‍योंक‍ि वो बोलता भी नहीं सवाल भी नहीं पूछता और मदद की गुहार भी नहीं लगाता सिर्फ अपनी मजबूरी को छि‍पाकर झेलता रहता है धीरे-धीरे उससे पार पाने की कोशिश करता रहता है और पार पाने की इसी उम्‍मीद में ज‍िंदा भी रहता है। मध्‍यवर्ग का वो मजबूर आदमी।

नोट: इस लेख में व्‍यक्‍त व‍िचार लेखक की न‍िजी अभिव्‍यक्‍त‍ि है। वेबदुन‍िया का इससे कोई संबंध नहीं है।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

Quarantine Beauty Tips : जानिए घर पर Makeup Primer बनाने के आसान टिप्स