धोनी की शिखर साधना

गरिमा संजय दुबे
शिखर पर पहुंचने की राह जि‍तनी दुरूह होती है यदि प्रयास रंग लाने लगे, तो यह उतनी ही रोमांचक और आनंददायी होती। संघर्ष का अपना सौंदर्य होता है। हर प्रयास के बाद मिलने वाली सफलता का अपना रोमांच और शिखर पर पहुंच कर पीछे मुड़ कर देखना सुखद। किंतु शिखर का एक सच यह भी है कि या तो मनुष्य शिखर पर संतुलित नहीं रह पाता और शिखर से धरातल की और लुढ़कने लगता है।




यह शाश्वत सत्य है शिखर से उतार का, क्योंकि शिखर के बाद कोई शिखर नहीं होता या तो शिखर है या पतन। दूसरी स्थिति होती है शिखर के आदि हो जाने की, वहीं बने रहने की, वस्तुतः यह एक भ्रम है। शिखर अल्पकालीन सत्य है। बहुत जल्दी यह आपको विस्थापित कर किसी दूसरे का शिखराभिषेक कर देता है। अब आप पर निर्भर करता है कि आप इस शिखर की सत्यता पहचान कर अपने लिए विस्थापन का कौन सा मार्ग चुनते हैं। गरिमामय तरीके से नए को स्थान देकर अपनी स्वीकार्यता बनाए रखना या अड़े रहकर जबरन वहां से धकेले जाने का इंतजार कर, मजबूरी बनकर झेले जाना।
 
धोनी का संन्यास पहली तरह की शिखर साधना ही है। बहुत कम ऐसा होता है कि सबकुछ पा लेने के बाद कोई मनुष्य उसे इस तरह भोगने का सुख प्राप्त करे। कम ही होता है कि पाने के बाद और पाने की भूख न बढ़े, अपवाद ही होते है वे लोग जो अपने को साबित कर बड़ी ही सौम्यता से कदम पीछे ले लेते है। क्या धोनी का निर्णय सही है? मेरे हिसाब से एकदम सही, क्रिकेट देवता सचिन तेंदुलकर के निर्णय के एकदम उलट। सच्चे अर्थों में यह अपनी कला को कलात्मक तरीके से भोगना है। अक्सर बड़े-बड़े धुरंदर चूक जाते हैं किसी भी कला को सिर्फ आत्मसंतुष्टि का माध्यम बनाने में। बहुत नाम और धन कमा लेने के बाद भी आंकड़ों में उलझ जाते हैं। किसी दूसरे की प्रतिभा का ईमानदार आकलन नहीं कर पाते, स्वेच्छा से पद त्यागना तो दूर की बात है। आंकड़ों और गिनतियों में न उलझते हुए सिर्फ और सिर्फ क्रिकेट को जीने की उनकी कलात्मक भूख ने सही समय पर सही फैसला करवाया है। यह अपने आप को जाया करना नहीं है, अपने आप के लिए अपने तरीके से जीना है। कम को नसीब होती है यह मलंग दृष्टि। यह भी एक बड़ी बात है कि बिना किसी अहंकार के अपनी कम होती क्षमता को स्वीकारना और युवा नेतृत्व में विश्वास रख, उसके नायकत्व में खेलने को तैयार होना उच्च नैतिक और आध्यात्मिक मूल्यों को दर्शाता है।
 
अब उच्च आध्यात्मिक और नैतिक मूल्य दर्शाने के लिए हर बार किसी धार्मिकता का सहारा लेने की आवश्यकता तो नहीं है न।  और कौन कहता है कि खिलाड़ी आध्यात्मिक नहीं हो सकता। जिसके लिए खेल ही उसका धर्म बन जाए, उसके लिए खेल से बड़ा अध्यात्म और क्या होगा।  इतिहास गवाह है शिखर पर निवृति लेने वालों की चमक बनी रहती है। धोनी ने सचमुच अपने शिखर को साध लिया है अब पतन का कोई भय उन्हें नहीं हो सकता। और...और…कौन जाने कई ऊचाईयां उनका इंतजार कर रही हो, कौन जाने अभी उनके खेल में बहुत जान बाकी हो और कौन जाने क्रिकेट के इस फिनिशिंग कप्तान का, अपने क्रिकेट जीवन को फिनिशिंग देने का, यह अलहदा अंदाज हो ।

Show comments

क्या दूध वाली चाय-कॉफी सेहत को पहुंचा सकती है नुकसान?

गर्मी में वैक्सिंग के बाद दाने और खुजली की समस्या से राहत दिलाते हैं ये नुस्खे

ऑयली स्किन को मॉइश्चराइज और हाइड्रेट रखने के लिए अपनाएं ये 5 टिप्स

गर्मियों में चेहरे को हाइड्रेट रखने के लिए लगाएं गुलाब जल और खीरे से बना फेस मिस्ट

क्या पीरियड्स के दौरान स्तन और बगल में दर्द है चिंता का विषय ?

international tea day: अंतरराष्ट्रीय चाय दिवस, जानें इतिहास और इस दिन के बारें में

क्या सेब खाने के बाद होती है गैस की समस्या? जानें 3 प्रमुख कारण

सोने से पहले दूध में मिला लें ये 2 चीज़ें, सुबह आसानी से साफ होगा पेट!

Cardio Exercise करते समय होता है घुटने में दर्द? इन 10 टिप्स को करें ट्राई!

National Crush प्रतिभा रांटा के ये 5 स्टाइल कॉलेज गर्ल के लिए हैं बेहतरीन

अगला लेख