नाहिद को 'ना' कहने वालों, 'हद' में रहो ना...

स्मृति आदित्य
मैं बच्चों को गाते हुए सुनना पसंद करती हूं चाहे वह लड़का हो या लड़की। और इसकी एक बड़ी वजह है। कोई भी नन्ही आवाज जब गाती है तो सीधे दिल में उतरती है क्योंकि यह आवाज अभी दुनियादारी नहीं जानती, छल-कपट और चालाकियों से वाकिफ नहीं है। यहां तक कि ईश्वर इस आवाज से कितना प्रसन्न होता होगा इससे भी बेखबर है वह। बस उसका गाना ही ईश्वर के साक्षात दर्शन है।

असम की नन्ही गायिका नाहिद को मिले फतवे कहते हैं कि उसके गाने से ईश्वर नाराज होगा... ईश्वर के इन ठेकेदारों से पूछेगा कोई कि कितना जानते हो अल्लाह, खुदा, ईश्वर और भगवान को ..... जाने कितने नाम से पुकारते हो पर उसे जानना तो दूर उसकी परिभाषा के पास तक नहीं पहुंच सके हो तुम।  
 
मैं भी दावा नहीं करती जान लेने का। लेकिन मैं बस इतना जानती हूं जब कोई छोटी उम्र में कलाकार बनता है तो मन को गहरे तक मोहता है। भावुकता की इतनी-इतनी लहरें आलोडित होती है कि आंखों से आंसू बरसने लगते हैं। कैसे कोई इतना पवित्र आवाज के साथ अभिव्यक्त हो सकता है। मुग्धता के अतिरेक में मैं महसूस करती हूं कि बस यही है ईश्वर..बस यहीं कहीं है उसका अस्तित्व। 
 
पता नहीं संगीत जैसी पावन विधा से खुदा की तौहीन कैसे और क्यों कर हो सकती है? ईश्वर की आराधना का सदियों से यह तरीका रहा है। नात गाते हुए भी तो हम तरन्नुम में होते हैं.... आयतें भी तो सुर में गाई जाती हैं। बात यहां हिन्दू और मुस्लिम की नहीं नन्ही और सच्ची आवाज की है।    
 
चाहे दक्षिण भारत सूर्यलक्ष्मी हो या असम की नाहिद . ..यह वही आवाजें हैं जो आगे चलकर बड़ें मंचों से बड़ी गायकी पेश करेंगी। किस जमाने में रहते हैं हम? किस किस्म की सोच रखते हैं? फतवे जारी करते हुए कभी नहीं लगता इन्हें कि किन मासूमों के खिलाफ खड़े हो रहे हैं हम? तुम अल्लाह के नुमांइदे हो तो जानते होंगे कि बच्चे तो हर धर्म में ईश्वर को प्यारे लगते हैं।

यह तुम्हारे भीतर का कौन सा भय है जो नाजुक सी मलाला से भी डर जाता है और सुहाना सैयद से भी... तुमको जायरा वसीम भी आसान शिकार लगती है और यहां तक कि मिकी माऊस जैसा कार्टून भी तुमको शैतान का बच्चा लगता है.... तुमको सानिया का स्कर्ट भी बुरा लगता है क्योंकि उसके खेलने के कौशल से तुम्हें कोई लेना-देना नहीं है। किसी मुल्क में तुम्हें दो बूंद जिंदगी की इतनी बुरी लगती है कि बच्चों को पोलियो ड्रॉप नहीं पिलाने दिए तुमने.... तुम कहते हो महिलाएं रोमांटिक उपन्यास नहीं पढ़ सकती पर रोमांस तुम्हें उन्हीं महिलाओं के साथ करना है...और हां अरब के मौलाना अब्दुल अजीज बिन अबदुल्ला ने तो यह भी कह दिया था कि अगर पुरुष बहुत भूखे हों तो अपनी पत्नी को खा सकते हैं.... कहीं कोई अंत है इन अजीबोगरीब फतवों का....भगवान ने सबको अपनी स्वतंत्र चेतना दी है आगे बढ़ने के लिए,अपना मुकाम तय करने के लिए...तुम उस हद में प्रवेश कैसे कर सकते हो....नाहिद को 'ना' कहने वालों, 'हद' में रहो ना... 
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