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विचारधाराओं के विभाजक नरेंद्र मोदी

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अनिरुद्ध जोशी

, शुक्रवार, 17 सितम्बर 2021 (12:08 IST)
नरेन्द्र मोदी सत्ता में किसी आंदोलन की बदौलत नहीं आए हैं। वे कड़ी मेहनत, संघर्ष और आलोचनाओं की आग में तपकर, निखरकर सत्ता के शीर्ष सिंहासन पर बैठे हैं। उनके पास किसी का सहारा नहीं था, किसी का आशीर्वाद नहीं था। कई वर्षों संघ, संन्यास और राजनीतिक जीवन में कार्य करने के बाद उनको मुख्‍यमंत्री का पद मिला, जहां उन्होंने 14 वर्षों तक सफलतम कार्य किया। इन 14 वर्षों के अनुभव के बल पर उन्होंने 2014 में लोकसभा चुनाव में कांग्रेस मुक्त भारत का नारा दिया।
 
 
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 2001 में उस वक्त एक पूर्णकालिक राजनेता बने थे, जब उन्हें गुजरात में अचानक मुख्यमंत्री बना दिया गया था। नरेन्द्र मोदी ने अपने इस राजनीतिक सफर में कई उतार-चढ़ाव देखे और एक विशेष विचारधारा के साथ वे हमेशा से रहे। प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्होंने संसद में अपने एक भाषण में कहा भी था कि ''हमें विचारधाराओं के साथ रहना है, नेता तो आते-जाते रहेंगे।''
 
नरेंद्र मोदी ने सत्ता में आने के बाद आतंकवाद और ग्लोबल वार्मिंग के मुद्दे को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जोर-शोर से उठाया था। इसका परिणाम यह हुआ कि जैश के आतंकवादी मसूद अजहर को प्रतिबंधित कर दिया गया और साथ ही सर्जिकल स्ट्राइक और एयर स्ट्राइक पर किसी भी देश का कोई विरोध नहीं रहा। इसके अलावा कई राष्ट्र यह मानने लगे कि आतंकवाद के मुद्दे पर एकजुट होकर कार्य करने की जरूरत है, लेकिन इस मामले में सऊदी अरब और ईरान चुप ही रहे।
सन 2014 में जब नरेंद्र मोदी को लोकसभा चुनाव में भाजपा ने अपना पीएम प्रोजेक्ट किया था तभी से देश ही नहीं दुनियाभर में इसको लेकर हलचल मच गई थी। उन्हें हिन्दुत्ववाद का एक मुखर और कट्टरपंथी चेहरा मानकर सभी ओर से विरोध के स्वर तेज हो गए थे। खुद भाजपा में भी इसको लेकर विरोध बढ़ गया था। हालांकि भारतीय जनता पार्टी के कई बड़े नेताओं के विरोध के बावजूद जब उन्हें पीएम प्रोजेक्ट किया गया तो देश की राजनीति में एक बदलाव की शुरुआत हुई और वह शुरुआत थी विचारधारों के स्पष्ट विभाजन की। 
 
यह विभाजन उसी तरह था कि जब 'महाभारत' का युद्ध प्रारंभ होने वाला था तो युधिष्‍ठिर ने बीच मैदान में खड़े होकर कहा था कि यहां बीच में एक रेखा विभाजित है। रेखा के उस पार कौरव और इस पार पांडव है। अभी भी जो लोग यह समझते हैं कि धर्म हमारी ओर है वे हमारे साथ आ सकते हैं। और, हमारी ओर के जो लोग यह समझते हैं कि धर्म कौरवों की ओर हैं वे कौरवों की ओर जा सकते हैं, क्योंकि यह स्पष्‍ट ही हो जाना चाहिए कि कौन किस तरफ है। लड़ाई प्रारंभ होने के बाद दोनों ही पक्षों के लिए यह समझना कठिन हो जाएगा कि कुछ लोग हमारी ओर होने के बावजूद हमारी ओर नहीं हैं।
 
 
इसी तरह जब मोदी जी सत्ता में आ रहे थे या आ गए तो कई लोगों ने भारतीय जनता पार्टी को छोड़कर अन्य पार्टियों में शामिल हो गए और कई ऐसे भी लोग थे जो अन्य पार्टी को छोड़कर भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए।
 
नरेंद्र मोदी के शासनकाल के पिछले 7 वर्ष को देंखे तो हमें अब यह स्पष्ट नजर आने लगा है कि या तो लोग उनके साथ हैं या बिल्कुल नहीं हैं। अब लड़ाई स्पष्ट रूप से विचारधाराओं की लड़ाई समझी जाने लगी है। हालांकि इन 7 वर्षों में नरेंद्र मोदी ने अपनी कट्टरपंथ वाली छवि को भी तोड़ा है। उन्होंने अल्पसंख्‍यकों की शिक्षा और अधिकार को लेकर जो कार्य किए हैं उसको लेकर अब यह भ्रम भी टूटा है कि वे अल्पसंख्‍यक विरोधी हैं, लेकिन यह स्पष्‍ट ही माना जा रहा है कि वे वामपंथ के विरोधी हैं।
 
 
उन्हीं के चलते देश के हर क्षेत्र में विभाजक की रेखा को स्पष्‍ट देखा जा सकता है। 2014 के पहले हम यह भी नहीं समझ पाते थे कि कौनसा मीडिया हाऊस किस खेमे का है परंतु आज सभी को यह समझ में आता है। इसी के साथ हम बॉलीवुड को भी अब स्पष्ट रूप से देख सकते हैं कि वह कितना विभाजित है। हालांकि यह भी कहा जा सकता है कि विभाजित तो ये सभी पहले से ही थे परंतु मोदीजी के आने के बाद अभी सभी को नजर आने लगे हैं। एक समय था कि जबकि पता नहीं चलता था कि कौनसी पार्टी किस पक्ष या विचारधारा की है परंतु अब विभाजन स्पष्‍ट है। खास बात यह भी देखने को मिली की जो पार्टियां एक दूसरे की कट्टर शत्रु थीं अब वे भी मोदी के खिलाफ एकजुट हो गई है। राजनीति, साहित्य, सिनेमा, खेल, मीडिया सभी ओर हमें स्पष्‍ट विभाजन नजर आता है।
 
 
सच है कि उनके आने के बाद से ही दक्षिणपंथी हिन्दू विचारधारा जोर पकड़ती जा रही है लेकिन यह भी सच है कि मोदीजी ने ऐसे सभी कट्टरपंथियों को साइड लाइन कर दिया है या चुप करा दिया है जो बहुत वाचाल थे। उन्होंने इन 7 वर्षों में दोनों ही ओर के कट्टरपंथ को अपनी सोच से दबाया भी है। 7 वर्षों में हमने देखा कि उन्होंने अपने विरोधियों की तारीफ की भी और उन्हें लोकतंत्र का पाठ भी पढ़ाया। उन्होंने हर प्रांत के लोगों के लिए कार्य किया और इसके लिए उन्होंने यह नहीं देखा कि कौनसा प्रांत भाजपा शासित है। ऐसे में अब हमें यह सोचने पर भी विवश होना पड़ रहा है कि मोदीजी बदल रहे हैं या उनकी विचारधार?

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