सार्वभौमिक होते हैं ‘नुगरा व्यक्ति, नुगरे लोग’

डॉ. छाया मंगल मिश्र
‘नुगरा व्यक्ति, नुगरे लोग’ सार्वभौमिक होते है। ये देश, जाति, धर्म, लिंग, अपने-पराये की सीमा से परे होते हैं। संवेदना, कृतज्ञता, जमीर, ईमान, धर्म से इनका तगड़ा बैर होता है। घर से बाहर तक दुनिया में ऐसे लोगों की भरमार है।

ये इच्छाधारी होते हैं इसलिए पहचानना दुष्कर है वैसे ही जैसे- 'डॉन को पकड़ना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है'। विश्वास देकर विष बांटना उसका मूल धर्म होता है और सत्य को कुचलना उसका ईमान होता है। सब को अपना मोहताज बना देना उसका परम धर्म होता है।

साधु बनकर वह दान की याचना करता है और जंगी लुटेरा बन सबकुछ लूट लेता है। अपने हर अपराध और पाप को वह न्याय बताकर उसे सत्य की तरह सर्वत्र फैलाता है और अपना दल बनाकर सर्वत्र भगवान की तरह पूजे जाने की कवायद करता है। उसके गुणगान का विरोध करने वालों को हर तरह से मिटा देता है, हर मिटने वाले को वह मानव द्रोही घोषित करता है।
 
शाब्दिक अर्थों से गुरु द्वारा बतलाए गए सुमार्ग पर चलने वाला व्यक्ति ‘सुगरा’ है। और गुरु की शिक्षाओं को ना मानते हुए उसके विपरीत आचरण करने वाला व्यक्ति ‘नुगरा’ है। नुगरा शब्द सधुक्कड़ी भाषा में वो आदमी जो किसी आध्यात्मिक गुरु की शरण में नहीं गया हो। कबीरदासजी का दोहा है- ‘निगुरा बामन नहीं भला, गुरमुख भला...’
 
'आम फले नीचो नीवें, एरण्ड ऊंचो जाए। निगुर सुगुर की परखां, कह 'केशो' समझाए।'
 
विश्नोई संत कवि श्री केशो जी गोदारा, नुगरे एवं सुगरे व्यक्ति की पहचान बताते हुए समझाते है कि "जो व्यक्ति स्वभाव से मृदु एवं नम्र है, वह सुगरा है। जो अहंकारी एवं हठी है वो निगुरा है। इसके लिए केशोजी ने आम एवं एरण्ड (अरंडी) का उदाहरण दिया है।
 
नुगरों की नजरों में भगवान नहीं होता और खुद शैतानी दिल रखकर भगवान से भी बड़ा होने के खेल दिखाता है। मानवीय मूल्य, धर्म, कर्म और विश्वास मान्यताओं को एक खिलौने की तरह समझता है। इनका चोला ओढ़ सभी को भावुक बनाकर योजनाबद्ध तरीकों से लूटकर फिर सभी के लिए झूठे आंसू बहाता है। कहा गया है कि एक नुगरे व्यक्ति के स्थान पर सौ पापी ज्यादा अच्छे होते हैं। माना जाता है कि सौ पापी व्यक्ति जितना पाप नहीं कर सकते हैं, उससे ज्यादा पाप एक अकेला नुगरा व्यक्ति ही कर लेता है।
 
ऐसे कर्मों के लिए एक शब्द है ‘कृतघ्न’। अर्थ इसका भी एहसान फरामोश है, पर इसमें उलाहने और गाली की भी ध्वनि है। धन्यवाद/आभार करना बंद कर देने वाले को भी कृतघ्न कहते हैं। मालवी नुगरे का इसे पर्याय मान सकते हो। क्योंकि ‘नुगरा’ कहते हैं एहसान फरामोश को।
 
ये लोग 'ज़ॉम्बी' होते हैं। हम सभी कभी/हमेशा इनके शिकार होते हैं। काले चरित्र के ये लोग हर क्षेत्र में मौजूद हैं। ये किसी के सगे नहीं होते। कहीं आप भी तो इन सभी (अव)गुणों से (कु)सज्जित तो नहीं? आत्मावलोकन जरूर करें। क्योंकि इंसानी रूपी राक्षसों में ये लक्षण डी.एन.ए. में भी पाए जाते हैं।

पता नहीं क्यों 'जीया ने ज़ुकती मुवा ने मुक्ति'अर्थात उपदेशों, शिक्षाओं, नियमों एवं कुशल जीवन पद्धति को अपनाकर युक्तियुक्त जीवन जीते हुए मोक्ष को प्राप्त करना इनको घनघोर पापकर्म लगता है। ईश्वर इन्हें सद्बुद्धि देने में कोताही क्यों बरतते हो? क्या इन्हें अपने पास बुलाने में खुद को अपनी 'गलती से हो गई मिस्टेक' पर शर्मिंदगी होती है? देवा! इनसे रक्षा करो तुम्हारी सबसे खूबसूरत सृष्टि को ये उजाड़ने, विकृत, ध्वस्त और नरक करने में पूरी ताकत से लगे हुए हैं। त्राहिमाम...त्राहिमाम...
 

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