मालिक और कर्मचारी एक-दूसरे के पूरक होते हैं और एक-दूसरे के बिना दोनों का ही कोई अस्तित्व नहीं होता है। कोई भी उद्योग, संस्थान, व्यवसाय, दुकान आदि है तो मालिक और कर्मचारी भी स्वाभाविक रूप से होंगे ही।
अब सवाल यह उठता है कि मालिक और कर्मचारी के बीच रिश्ता कैसा होना चाहिए? इस सवाल का सीधा जवाब यह है कि दोनों के बीच रिश्ता ऐसा हो कि वे एक-दूसरे का पूरा-पूरा ख्याल रखें। कारण मालिक से कर्मचारी का अस्तित्व और कर्मचारी से मालिक का अस्तित्व बना रहता है। यह अस्तित्व भविष्य में तभी बना रह सकता है जब दोनों एक-दूसरे का खयाल रखें।
किसी भी संस्थान की तरक्की के लिए खुशनुमा माहौल का होना बहुत ही जरूरी होता है। मालिकों को अपने कर्मचारियों के लिए ऊर्जात्मक वातावरण तैयार करना चाहिए ताकि लोग खुशी-खुशी अपने काम को अंजाम देते रहें। इस तरह के माहौल में काम करने वाले लोगों की कार्यक्षमता बढ़ती है, फलस्वरूप अच्छा और बेहतरीन काम होता है। संस्थान का भी भरपूर विकास होता है एवं साथ ही साथ बेहतर साख का निर्माण भी होता है।
कर्मचारियों का भी कर्तव्य बनता है कि वे अपने संस्थान के बेहतरी के लिए समर्पण की भावना रखते हुए ईमानदारी से शानदार प्रदर्शन करें। उन्हें पूरे तन-मन से अपने संस्थान, उद्योग, व्यवसाय आदि के कार्य करना चाहिए ताकि विकास का वातावरण निर्मित हो सके। इससे मालिक मन में भी अपने कर्मचारियों के लिए सॉफ्ट कॉर्नर बनेगा, जो कि निश्चित रूप से कर्मचारियों के हित में ही होगा।
किसी भी संस्थान आदि का विकास उसमें काम करने वाले लोगों की कार्यकुशलता से होता है। अत: मालिक को अपने कर्मचारियों के कौशल को निखारने के लिए हमेशा उचित प्रयास करने चाहिए, जिससे लोग अपने काम को बेहतर तरीके से करने की योग्यता हासिल कर सकें। कर्मचारी बंधु्ओं को भी अपनी कार्य कुशलता बढ़ाने के लिए उचित प्रयास करते रहना चाहिए।
समय-समय पर संस्थान की ओर से उसमें काम करने वाले कर्मचारियों को उसके शानदार योगदान के लिए प्रोत्साहित भी करना चाहिए ताकि लोगों के बीच कुछ बेहतर करने की चाहत विकसित हो सके। इस प्रकार लोगों में अपने संस्थान के लिए कुछ अच्छा करने का जुनून पैदा होगा, फलस्वरूप अच्छा प्रदर्शन करने के लिए उचित माहौल बनेगा और जहां सभी लोग अच्छे काम करेंगे, वहां सब कुछ अच्छा ही होगा।
समय-समय पर मालिक और कर्मचारियों के बीच मेल-मिलाप होते रहना चाहिए ताकि अपनापन बना रहे। साथ ही विचारों का आदान-प्रदान भी होना चाहिए ताकि अच्छे सुझावों को अमल में लाया जा सके। हो सकता है किसी के विचार संस्थान के लिए मील का पत्थर साबित हों। लोगों को अपने विचार रखने की स्वतंत्रता हो ताकि वे खुलकर अपने विचार रख सकें।
कई बार ऐसा होता है कि मामूली सा इंसान भी लाख टके की बात कह जाता है। अत: मालिक और वरिष्ठ लोगों को अपने कर्मचारियों की बातें पूरी गंभीरता से सुनना चाहिए और सही लगने पर उचित कदम भी उठाया जाना चाहिए। आपस में मित्रवत वातावरण बनाए रखा जाना चाहिए और साथ ही साथ संस्थान के तरक्की के लिए सभी लोगों को एकजुट होकर प्रयास करना चाहिए।
प्रकृति का नियम है कि आप इस संसार में जो कुछ देते हैं वही वापस लौटकर आता है। यदि आप खुशी देते हैं तो खुशी ही मिलती है। मालिक हो या कर्मचारी, यदि आप किसी से नफरत करते हैं तो नफरत ही पैदा होगी तो क्यों न हम एक-दूसरे के प्रति स्नेह और प्रेम की भावना रखें ताकि सभी में सद्भाव पैदा हो।
मालिक और कर्मचारी के बीच 'सबका साथ... सबका विकास' की भावना प्रस्फुटित होना चाहिए, क्योंकि इसी में दोनों की तरक्की समाहित है। मालिक की सोच अपने संस्थान और कर्मचारियों के प्रति लाजबाव होना चाहिए क्योंकि इससे शानदार वातावरण निर्मित होगा और संस्थान तरक्की करेगा क्योंकि इससे यहां काम करने वाले कर्मचारियों में भी अपने संस्थान, व्यवसाय के प्रति कुछ बेहतर करने का जूनून पैदा होगा।