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एक लाईक का सवाल है

मनोज लिमये
आपने अकादमिक स्तर की कोई भी उपलब्धि हासिल की हो, चाहे आप पी.एच.डी कर स्वयं के नाम के आगे डॉ. लिखते हों या आपको समाज में थोड़ी बहुत इज्जत दी जाती हो। परंतु ये सब बातें नाकाफी हैं, यदि आप किसी सोशल नेटवर्किंग साईट का हिस्सा नहीं हैं। मोबाईल आया तो शुरुवात में तरह-तरह के जतन  किए और उसे चलाने के गुर सीखे। लेकिन ऊपर वाले से मेरी यह लघु प्रसन्नता देखी नहीं गई। 
मोबाईल तेजी से अपना स्वरुप बदलते गए और मैं पिछड़ेपन की पराकाष्ठा पर पंहुचता गया। अपने आपको बाजार और समाज की मांग के अनुरूप बनाए रखने  हेतु मैंने जो प्रपंच किए, वो मुझसे बेहतर कोई नहीं जानता। मोबाइल की दुकानों पर काम करने वाले छोटे-छोटे बच्चों को उनकी हैसियतानुसार मक्खन लगा-लगा  कर मैंने पूरी गंभीरता से टच स्क्रीन वाले इन छुई-मुई मोबाइलों को चलाने का कौशल अभी ठीक प्रकार से सीखा ही था कि ये सोशल नेटवर्किंग वाला गिद्ध मेरे सिर  पर मंडराने लगा। 
 
फेसबुक वाला मामला प्रचलन में आया हुआ था और मुझे अपनी अकादमिक और बुद्धिमान वाली छवि को बनाए रखने के लिए इसका संचालन सीखना बेहद अहम  था। जब मुझे इस बात का भली भांति ईल्म हो गया कि यदि मुझे इस वर्चुअल समाज में बने रहना है तो फेसबुक वाले इस तिलस्म को तोड़ना जरूरी है तो मैंने इसे सीखने का निर्णय बिना शंख बजाते हुए ले ही डाला। 
 
अब जीवन का यदि कोई ध्येय था, तो वो सिर्फ और सिर्फ फेसबुक पर विजय प्राप्त करने का था। 200 रुपयों को बिना डोली के विदा कर बाजार से मैंने एक पुस्तिका खरीदी और बरसों पूर्व इंटर परीक्षा में की गई पढ़ाई की तर्ज पर फेसबुकिया गुर सीखने में अपना सर्वस्व झोंक दिया। शाहरुख खान ने सही कहा था, कि यदि आप किसी को सच्चे मन से चाहो, तो सारी कायनात आपको उससे मिलाने में लग जाती है। मैंने फेसबुक पर अपना अकाउंट निर्मित किया और प्रथम बैंक अकाउंट खोलने से भी अधिक प्रसन्नता मुझे तब हुई जब मेरे अकाउंट खोलने के क्रिया कलापों को सफलता भी मिल गई। मेरी मेहनत रंग लाई और मै भी अन्य फुरसती लोगों की भांति परिचितों को पोस्ट कर के पकाने लगा। 
 
मैं इस सफलता का जश्न मना भी नहीं पाया था, कि मेरे दफ्तर के साथियों तथा मिलने-जुलने वालों ने मुझे यह कह कर शर्मिंदा करना आरंभ कर दिया, कि मैं जो भी पोस्ट करता हूं, उस पर ना तो कोई प्रतिक्रिया आती है और ना ही मेरी पोस्ट को कोई लाईक करता है। मामला जब तक मेरे हाथ में था मैंने ईमानदार प्रयास किये, किंतु अब मेरी शक्ति जवाब दे चुकी है। लाईक और प्रतिक्रिया के अभाव में फेसबुक के मंच पर मेरी स्थिति बाजार में विचरण करने वाले भिखारियों के समान हो चुकी है। 
 
हालांकि मुझे ज्ञात है कि फेसबुक रुपी रावण को मारना तब तक अंतिम उपलब्धि नहीं है जब तक ट्वीटर तथा इंस्टाग्राम जैसे मेघनाद और कुंभकर्ण पर विजय प्राप्त ना हो फिर भी मेरी यही प्रार्थना है कि या तो मैं वाकई कुछ ऐसा लिख सकूं, जिसे लोग ना सिर्फ लाईक करें वरन उस पर प्रतिक्रिया भी दें या फिर तकनीकी कारणों की आड़ में अपना फेसबुक अकाउंट ही बंद कर दूं। फैसला आपका क्योंकि लाईक और प्रतिक्रिया आपकी। 
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