Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

दीपक जोशी को आखिर पार्टी के नेताओं के सामने तीखे तेवर क्यों दिखाना पड़े?

राजबाड़ा-टू-रेसीडेंसी

हमें फॉलो करें दीपक जोशी को आखिर पार्टी के नेताओं के सामने तीखे तेवर क्यों दिखाना पड़े?
webdunia

अरविन्द तिवारी

बात यहां से शुरू करते है
 
जिन कैलाश जोशी ने मध्यप्रदेश में भाजपा को स्थापित करने के लिए अपना सर्वस्व दाव पर लगा दिया था, उनके बेटे, तीन बार विधायक रहे दीपक जोशी को आखिर पार्टी के नेताओं के सामने तीखे तेवर क्यों दिखाना पड़े। यह सब जानते हैं कि बिना जोशी की मदद के हाटपिपलिया से मनोज चौधरी चुनाव जीत नहीं सकते, इसलिए सब उन्हें साधने में लगे हैं। वीडी शर्मा और सुहास भगत उन्हें भोपाल बुला कर बात कर चुके है। कैलाश विजयवर्गीय और अनूप मिश्रा देवास जाकर मिल चुके हैं।

छनकर बात यह सामने आ रही है कि मनोज के चक्कर में जोशी को जिस तरह से मैदान से बाहर किया जा रहा है, उससे बेहद खफा है। सीधी बात है वनडे मैच के खिलाड़ी को आपको टेस्ट न सही रणजी में तो खिलाना ही पड़ेगा। खेल से बाहर करना तो नाइंसाफी ही है ना।   
<------------>
ज्योतिरादित्य सिंधिया के खास सिपहसालार तुलसी सिलावट का चुनाव मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और स्वयं सिंधिया से ज्यादा प्रतिष्ठा का प्रश्न मालवा निमाड़ के प्रभारी बनाए गए कैलाश विजयवर्गीय के लिए बन गया है। सांवेर से काग्रेस के तय उम्मीदवार माने जा रहे हैं प्रेमचंद गुड्डू से विजयवर्गीय के संबंध किसी से छुपे हुए नहीं हैं। दोनों एक दूसरे के मददगार रहे हैं और विजयवर्गीय ही गुड्डू को भाजपा में ले गए थे।

इन रिश्तों से इस चुनाव पर पैनी निगाहें लगाकर बैठे संघ के कर्ताधर्ता भी वाकिफ है। तीनों सोनकरों- राजेश, सावन और विजय के साथ ही खाती और कलौता समाज के मतों को साधना भी कोई छोटा-मोटा काम नहीं है। यही कारण है कि चुनाव भले ही सिलावट लड़ रहे हो पर चुनौती विजयवर्गीय के लिए उनसे ज्यादा है।
<------------>
समय का फेर है। बात ज्यादा पुरानी नहीं है। कुछ साल पहले जब कमलनाथ केंद्रीय मंत्री थे और प्रेमचंद गुड्डू उज्जैन से सांसद, तब कमलनाथ ने बाबा रामदेव के कुछ कार्यक्रम मध्यप्रदेश में तय करवाए थे। इनमें से एक उज्जैन में भी होना था।

तब गुड्डू ने इसे प्रतिष्ठा का प्रश्न बना कमलनाथ को खुली चुनौती देते हुए कार्यक्रम नहीं होने दिया था। वक्त बदला, अब जब भाजपा में गुड्डू को अपना कोई भविष्य नजर नहीं आया तो उन्हें मजबूर होकर आखरी दस्तक कमलनाथ के दरबार में ही देना पड़ी। कहा जा रहा है कि बहुत मान मनोव्वल के बाद कमलनाथ माने और अपनी नाराजगी जाहिर करने से भी नहीं चूके।         
<------------>
तेजतर्रार आईएएस अधिकारी राधेश्याम जुलानिया का मुकाम मध्यप्रदेश में कहां होगा, यह सब जानना चाहते हैं। मुख्यमंत्री उन्हें अहम भूमिका में ही देखना चाहेंगे। जिस तरह से आर परशुराम की अटल बिहारी वाजपेयी सुशासन संस्थान से असमय विदाई हुई और मुख्यमंत्री इस संस्थान को एक बड़ी भूमिका में देखना चाहते हैं। ऐसे में यदि वे जुलानिया को यहां डीजी बनाएं तो चौंकिए मत।

वैसे भी इस संस्थान को अब सुशासन के अलावा योजना से संबंधित काम भी सौंपकर वजनदार किया जा रहा है। ऐसे में वहां जुलानिया की मौजूदगी अहम हो जाएगी। एक कयास उनके एनवीडीए या पीईबी पहुंचने का भी है। देखें क्या होता है।
<------------>
ग्वालियर में भाजपा के शहर अध्यक्ष पद पर नियुक्ति के बाद जिस तरह से वहां के नेताओं ने एकजुट होकर संगठन महामंत्री सुहास भगत को निशाने पर लिया था, वह तो चौंकाने वाला था ही लेकिन इससे भी ज्यादा चौंकाने वाला है केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर का चुप्पी साध लेना।

नाराजी इजहार करने का तोमर का अपना तरीका रहता है और इसका अहसास जब सुहास भगत को हुआ तो उन्होंने खुद ही तोमर को फोन लगा इस विवाद का पटाक्षेप करने की कोशिश की। दरअसल तोमर इस घटनाक्रम के बाद भगत से दूरी बनाए हुए थे और उपचुनाव के पहले की इस दूरी में पार्टी के दिग्गजों को चिंता में डाल दिया था। 
<------------>
हर अफसर मनीष सिंह नहीं हो सकता, यह ढाई महीने के इस बेहद कठिन दौर में इंदौर वाले अच्छे से समझ गए। शहर में किस काम में किस का कैसा उपयोग हो सकता है यह मनीष सिंह अच्छे से जानते हैं और इसी का फायदा भी हमेशा लेते हैं। हुआ यह कि शहर को अनलॉक करने से पहले तीन जोन मैं बांटने की बात चली और मुद्दा यह उठा की इसे जनता तक बहुत सरल तरीके से कैसे पहुंचाया जाए तो कलेक्टर को ख्यात वास्तुविद हितेंद्र मेहता का ख्याल आया। मेहता ने मिनटों में काम आसान कर दिया। उन्होंने ऐसा नक्शा बनाकर प्रशासन को दिया, जिसमें तीनों जोन स्पष्ट तौर पर रेखांकित थे और जनता के साथ ही प्रशासन की परेशानी भी खत्म हो गई।        <------------>
संघ लोक सेवा आयोग में अनलॉक होने के बाद पहली प्राथमिकता पर जो काम होना है उनमें से एक है मध्यप्रदेश के राज्य प्रशासनिक सेवा और राज्य पुलिस सेवा के अफसरों की डीपीसी। इंदौर में पदस्थ इन सेवाओं के दो दमदार अफसर राप्रसे के विवेक श्रोत्रिय और रापुसे के अरविंद तिवारी जल्दी ही आईएएस और आईपीएस हो जाएंगे।

श्रोत्रिय को तो काफी पहले आईएस हो जाना था लेकिन विभागीय परीक्षा देरी से पास होने के कारण होने के कारण वे साथियों से कुछ पिछड़ गए। तिवारी की बैच बहुत बड़ी होने के कारण उन्हें भी पदोन्नति का लाभ विलंब से मिल रहा है। राप्रसे में 18 तो रापुसे में 8 लोगों को पदोन्नति का लाभ मिलना है।
<------------>        
 
चलते- चलते : यह बहुत हिम्मत का काम है। सत्ता खोने के बाद कमलनाथ ने दिग्विजय सिंह से पल्ला कैसे झटका, यह एक यक्ष प्रश्न है। जवाब सुरेश पचोरी, सज्जन सिंह वर्मा और एनपी प्रजापति, विजयलक्ष्मी साधौ से मिल सकता है।

मंत्रिमंडल के माइक टू यानी गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा के दबदबे का अंदाज इसी बात से लगाया जा सकता है कि अबोलापन दूर करने के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को उनके घर जाना पड़ा।
 
पुछल्ला : जरा पता लगाइए क्यों आईपीएस की तबादला सूची जारी नहीं हो पा रही है और अविनाश लवानिया व श्रीमंत शुक्ला के कलेक्टर बनने के आदेश कहां अटक गए?
 
(इस लेख में व्यक्त विचार/विश्लेषण लेखक के निजी हैं। इसमें शामिल तथ्य तथा विचार/विश्लेषण 'वेबदुनिया' के नहीं हैं और 'वेबदुनिया' इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेती है।)

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

sankashti chaturthi vrat katha:आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की संकष्टी चतुर्थी की व्रत कथा