राखी के धागों से जुड़ी हैं मानवीय संवेदनाएं

ललि‍त गर्ग
रक्षाबंधन यानी सामाजिक और पारिवारिक एकबद्धता एवं एकसूत्रता का सांस्कृतिक पर्व। प्यार के धागों का एक ऐसा पर्व जो घर-घर मानवीय रिश्तों में नवीन ऊर्जा का संचार करता है। बहनों में उमंग और उत्साह को संचारित करता है, वे अपने प्यारे भाइयों के हाथ में राखी बांधने को आतुर होती हैं।


बेहद शालीन और सात्विक यह पर्व सदियों पुराना है - तब से अब तक नारी सम्मान एवं सुरक्षा पर केंद्रीत यह विलक्षण पर्व है। इस दिन बहनें अपने भाई के दायें हाथ पर राखी बांधकर उसके माथे पर तिलक करती हैं और उसकी दीर्घ आयु की कामना करती हैं। बदले में भाई उनकी रक्षा का वचन देता है। ऐसा माना जाता है कि राखी के रंगबिरंगे धागे भाई-बहन के प्यार के बंधन को मजबूत करते हैं और सुख-दुख में साथ रहने का विश्वास दिलाते हैं।
 
सगे भाई बहन के अतिरिक्त अनेक भावनात्मक रिश्ते भी इस पर्व से बंधे होते हैं जो धर्म, जाति और देश की सीमाओं से परे हैं। यह पर्व आत्मीयता और स्नेह के बंधन से रिश्तों को मजबूती प्रदान करने का पर्व है। यही कारण है कि इस अवसर पर न केवल बहन भाई को ही अपितु अन्य संबंधों में भी रक्षा के लिए राखी बांधने का प्रचलन है। गुरु शिष्य को रक्षासूत्र बांधता है तो शिष्य गुरु को। भारत में प्राचीन काल में जब स्नातक अपनी शिक्षा पूर्ण करने के पश्चात गुरुकुल से विदा लेता था तो वह आचार्य का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए उसे रक्षासूत्र बांधता था जबकि आचार्य अपने विद्यार्थी को इस कामना के साथ रक्षासूत्र बांधता था कि उसने जो ज्ञान प्राप्त किया है वह अपने भावी जीवन में उसका समुचित ढंग से प्रयोग करे। इसी परम्परा के अनुरूप आज भी किसी धार्मिक विधि विधान से पूर्व पुरोहित यजमान को रक्षासूत्र बांधता है और यजमान पुरोहित को। इस प्रकार दोनों एक दूसरे के सम्मान की रक्षा करने के लिये परस्पर एक दूसरे को अपने बन्धन में बांधते हैं।
 
राखी के दो धागों से भाई-बहन ही नहीं, बल्कि संपूर्ण मानवीय संवेदनाओं का गहरा नाता रहा है। भाई और बहन के रिश्ते को यह फौलाद-सी मजबूती देने वाला है। आदर्शों की ऊंची मीनार है। सांस्कृतिक परंपराओं की अद्वितीय कड़ी है। रीति-रिवाजों का अति सम्मान है। राखी के त्योहार का ज्यादा महत्व पहले उत्तर भारत में था। आज यह पूरे भारत में बड़े उत्साह से मनाया जाता है। महाराष्ट्र में इसे नारली पूर्णिमा के नाम से मनाया जाता है। लोग समुद्र में वरुण राजा को नारियल दान करते हैं। नारियल के तीन आंखों को भगवान शिव की तीन आंखें मानते हैं। दक्षिण भारत में इसे अवनी अविट्टम के नाम से जाना जाता है। 
 
पुराने जमाने में रक्षाबंधन का अलग महत्व था। आवागमन के साधन और सुविधाएं नहीं थीं। इसलिए ससुराल गयी बेटी के लिए यह सावन के महीने का विशेष पर्व था। राखी के बहाने स्वजनों और भाइयों से भेंट की भावना छिपी होती थी। सभी शादीशुदा लड़कियां मायके आती थीं। सखी-सहेलियां आपस में मिलती थीं, नाचती-गाती थी और अपने लगे हाथ सुख-दुख भी मिल-बांट लेती थीं।
 
राखी का त्योहार कब शुरू हुआ इसे ठीक से कोई नहीं जानता। कहते हैं देव और दानवों में जब युद्ध शुरू हुआ तो दानव हावी होते नजर आने लगे। इससे इन्द्र बड़े परेशान हो गए। वे घबराकर बृहस्पति के पास गए। इन्द्र की व्यथा उनकी पत्नी इंद्राणी ने समझ ली थी। उसने रेशम का एक धागा मंत्रों की शक्ति से पवित्र कर इन्द्र के हाथ में बांध दिया। वह श्रावण पूर्णिमा का दिन था। लोगों का विश्वास है कि इस युद्ध में इसी धागे की मंत्रशक्ति से इन्द्र की विजय हुई थी। उसी दिन से श्रावण पूर्णिमा के दिन रेशमी धागा बांधने की प्रथा चली आ रही है। शायद इसी प्रथा के चलते पुराने जमाने में राजपूत जब युद्ध के लिए जाते थे तो महिलाएं उनके माथे पर तिलक लगाकर हाथ में रेशमी धागा बांधती थीं। इस विश्वास के साथ कि धागा उन्हें विजयश्री के साथ वापस ले आएगा।
 
स्कंध पुराण, पद्मपुराण और श्रीमद्भागवत में वामनावतार नामक कथा में रक्षाबंधन का प्रसंग मिलता है। कथा कुछ इस प्रकार है- दानवेन्द्र राजा बलि ने जब 100 यज्ञ पूर्ण कर स्वर्ग का राज्य छीनने का प्रयत्न किया तो इन्द्र आदि देवताओं में खलबली मच गई और वे सभी भगवान विष्णु से प्रार्थना करने पहुंचे। तब भगवान वामन अवतार लेकर ब्राह्मण का वेष धारण कर राजा बलि से भिक्षा मांगने पहुंचे। गुरु के मना करने पर भी बलि ने तीन पग भूमि दान कर दी। भगवान ने तीन पग में सारा आकाश पाताल और धरती नापकर राजा बलि को रसातल में भेज दिया। इस प्रकार भगवान विष्णु द्वारा बलि राजा के अभिमान को चकनाचूर कर देने के कारण यह पर्व बलेव नाम से भी प्रसिद्ध है। 
 
रक्षाबंधन महत्व एवं मनाने की बात महाभारत में भी उल्लेखित है कि जब ज्येष्ठ पाण्डव युधिष्ठिर ने भगवान कृष्ण से पूछा कि मैं सभी संकटों को कैसे पार कर सकता हूं, तब भगवान श्रीकृष्ण ने उनकी तथा उनकी सेना की रक्षा के लिए राखी का त्योहार मनाने की सलाह दी थी। उनका कहना था कि राखी के इस रेशमी धागे में वह शक्ति है जिससे आप हर आपत्ति से मुक्ति पा सकते हैं। इस समय द्रौपदी द्वारा श्रीकृष्ण को तथा कुंती द्वारा अभिमन्यु को राखी बांधने के कई उल्लेख मिलते हैं।
 
एक अन्य कथा के अनुसार सिंकदर जब विश्वविजय के लिए निकला तो उसकी पत्नी ने अपने पति के हिंदू शत्रु महाराज पुरू को राखी बांधकर मुंहबोला भाई बना लिया था और उससे सिकंदर को न मारने का वचन ले लिया था। पुरू ने युद्ध के दौरान हाथ में बंधी राखी का मान रखा और सिकंदर को जीवनदान दे दिया।
 
राखी की सबसे प्रचलित और प्रसिद्ध कथा के अनुसार मेवाड़ की विधवा महारानी कर्मावती को जब बहादुरशाह द्वारा मेवाड़ पर हमला करने की पूर्वसूचना मिली तो वह घबरा गयी। रानी कर्मावती बहादुरशाह से युद्ध कर पाने में असमर्थ थी। तब उसने मुगल शासक हुमायूं को राखी भेजकर रक्षा की याचना की। हुमायूं ने राखी की लाज रखी और मेवाड़ पहुंचकर बहादुरशाह के विरुद्ध मेवाड़ की ओर से लड़ते हुए कर्मावती और उसके राज्य की रक्षा की।
 
राखी के बारे में प्रचलित ये कथाएं सोचने पर विवश कर देती हैं कि कितने महान उसूलों और मानवीय संवेदनाओं वाले थे वे लोग, जिनकी देखादेखी एक संपूर्ण परंपरा ने जन्म ले लिया और आज तक बदस्तूर जारी है। आज परंपरा भले ही चली आ रही है लेकिन उसमें भावना और प्यार की वह गहराई नहीं दिखायी देती। अब उसमें प्रदर्शन का घुन लग गया है। पर्व को सादगी से मनाने की बजाए बहनें अपनी सज-धज की चिंता और भाई से राखी के बहाने कुछ मिलने के लालच में ज्यादा लगी रहती हैं। भाई भी उसकी रक्षा और संकट हरने की प्रतिज्ञा लेने की बजाए जेब हल्की कर इतिश्री समझ लेता है। अब राखी में भाई-बहन के प्यार का वह ज्वार नहीं दिखायी देता जो शायद कभी रहा होगा।
 
इसलिए आज बहुत जरूरत है दायित्वों से बंधी राखी का सम्मान करने की। क्योंकि राखी का रिश्ता महज कच्चे धागों की परंपरा नहीं है। लेन-देन की परंपरा में प्यार का कोई मूल्य भी नहीं है। बल्कि जहां लेन-देन की परंपरा होती है वहां प्यार तो टिक ही नहीं सकता। ये कथाएं बताती हैं कि पहले खतरों के बीच फंसी बहन का साया जब भी भाई को पुकारता था, तो दुनिया की हर ताकत से लड़कर भी भाई उसे सुरक्षा देने दौड़ पड़ता था और उसकी राखी का मान रखता था। आज भातृत्व की सीमाओें को बहन फिर चुनौती दे रही है, क्योंकि उसके उम्र का हर पड़ाव असुरक्षित है। बौद्धिक प्रतिभा होते हुए भी उसे ऊंची शिक्षा से वंचित रखा जाता है, क्योंकि आखिर उसे घर ही तो संभालना है। नई सभ्यता और नई संस्कृति से अनजान रखा जाता है, ताकि वह भारतीय आदर्शों व सिद्धांतों से बगावत न कर बैठे। इन हालातों में उसकी योग्यता, अधिकार, चिंतन और जीवन का हर सपना कसमसाते रहते हैं। 
 
इससे भी बड़ी चिंता का विषय यह है कि आज तो कन्या भ्रूणहत्या का रास्ता खोलकर भविष्य में जैसे राखी बांधने की परंपरा का अंत करने की ही साजिश रची जा रही है। इसलिए राखी के इस परम पावन पर्व पर भाइयों को ईमानदारी से पुनः अपनी बहन ही नहीं बल्कि संपूर्ण नारी जगत की सुरक्षा और सम्मान करने की कसम लेने की अपेक्षा है। तभी राखी का यह पर्व सार्थक बन पड़ेगा और भाई-बहन का प्यार शाश्वत रह पाएगा। 
Show comments
सभी देखें

जरुर पढ़ें

76वां गणतंत्र दिवस : कर्तव्य पथ की परेड से लेकर बीटिंग रिट्रीट तक, जानिए भारतीय गणतंत्र की 26 अनोखी बातें

Republic Day Parade 2025: वंदे मातरम् और जन गण मन में क्या है अंतर?

तन पर एक भी कपड़ा नहीं पहनती हैं ये महिला नागा साधु, जानिए कहां रहती हैं

Republic Day 2025 : गणतंत्र दिवस के निबंध में लिखें लोकतंत्र के इस महापर्व के असली मायने

76th Republic Day : गणतंत्र दिवस पर 10 लाइन में निबंध

सभी देखें

नवीनतम

खजूर से भी ज्यादा गुणकारी हैं इसके बीज, शुगर कंट्रोल से लेकर इम्यूनिटी बूस्ट करने तक हैं फायदे

76वां गणतंत्र दिवस : कर्तव्य पथ की परेड से लेकर बीटिंग रिट्रीट तक, जानिए भारतीय गणतंत्र की 26 अनोखी बातें

Republic Day 2025: 26 जनवरी को ही क्यों मनाया जाता है गणतंत्र दिवस ? पढ़ें रोचक जानकारी

26 जनवरी गणतंत्र दिवस पर भाषण हिंदी में, जानिए शुरुआत कैसे करें?

Happy Republic Day Wishes 2025: गणतंत्र दिवस के 10 बेहतरीन शुभकामना संदेश

अगला लेख