कोरोना कोविड 19 प्रकोप में टेस्ट का सर्वाधिक महत्व है। इसकी अभी तक कोई सर्वस्वीकृत दवा उपलब्ध नहीं है। इसलिए परीक्षण में कोइ व्यक्ति कोरोना संक्रमित पाया गया तो तुरत उसे कोरंटाइन करके लक्षणों के अनुसार औषधियां एवं अन्य उपचार किए जाते हैं।
अगर टेस्ट किट ही सही परिणाम न दे तो फिर कोविड 19 के महामारी में फैलने का खतरा पैदा हो जाएगा। कारण, हम टेस्ट करेंगे और पता ही नहीं चलेगा कि वह संक्रमित है या नहीं। इस बीच वह अनेक को संक्रमित कर चुका होग। इस दृष्टि से विचार करें तो चीन से आयातित रैपिड़ टेस्ट का संदेह के घेरे में आना अत्यंत ही चिंताजनक है। भारतीय चिकित्सा परिषद यानी आईसीएमआर को तत्काल इससे टेस्ट करने पर विराम देना पड़ा है।
कहा गया है कि पहले फील्ड़ परीक्षण किया जाएगा एवं उसमें यदि परिणाम वैज्ञानिक मानक के अनुरुप आया तो फिर से आरंभ होगा। राजस्थान के डॉक्टरों ने इस टेस्ट किट की शिकायत की थी। राजस्थान सरकार के अनुसार इस किट से मिले नतीजों में छह से 71 प्रतिशत तक अंतर आ रहा है। इसके बारे में प्रश्न करने पर आइसीएमआर के डॉक्टर रमन गंगाखेड़कर ने कहा कि रैपिड टेस्ट में एक राज्य में कोरोना की पहचान कम होने की शिकायत मिलने के बाद तीन अन्य राज्यों से भी रिपोर्ट मांगी गई। सभी राज्यों का कहना था कि आरटी-पीसीआर टेस्ट में पॉजिटिव पाए गए सैंपल्स की जांच के दौरान रैपिड टेस्टिंग किट से मिले नतीजों में छह से 71 प्रतिशत तक अंतर पाया गया, जो चिंताजनक है।
वास्तव में इतना बड़ा अंतर सामान्य नहीं है। राजस्थान से पहले पश्चिम बंगाल ने भी किट पर सवाल उठाए थे। इसके बाद लैब में परीक्षण कराने का कोई मायने नहीं रह गया था। टेस्ट रोकने का फैसला केंद्र से गई टीम और राज्य से मिले फीडबैक के आधार पर लिया गया है। इसका मतलब हुआ कि केन्द्र की टीम को भी इसमें दोष नजर आया है।
तो इंतजार करिए कि फील्ड में यानी लोगों के बीच जाकर परीक्षण के परिणाम की। आईसीएमआर कह रहा है कि अगर किट का वैच खराब होगा तो इसे कंपनी से बदलवाया जाएगा। ऐसे प्रकोप में यदि कुछ दिनों केवल इस कारण रैपिड टेस्ट रोक दिया जाए तो इसका परिणाम भयानक हो सकता है। हालांकि राजधानी दिल्ली में इसका टेस्ट परिणाम 71.5 प्रतिशत सही भी पाया गया है। इसका अर्थ एक ही हो सकता है कि इसे बनाने वाली चीनी कंपनी ने लोगों के जीवन से ज्यादा अपने व्यवसाय का ध्यान रखते हुए अंधाधुंध तरीके से उत्पादन किया और सम्पूर्ण गुणवत्ता का ध्यान नहीं रखा।
कुछ किट काम कर रहे हैं और कुछ नहीं। यह मानवता के प्रति अपराध ही माना जाएगा। कहा जा रहा है कि खून में एंटीबॉडी की जांच के सिद्धांत पर आधारित इस किट का इस्तेमाल सर्विलांस के लिए किया जा रहा है। नतीजों में इतने बड़े अंतर के बाद सर्विलांस के लिए भी इसके इस्तेमाल पर सवालिया निशान लग गया है। जरा सोचिए, पिछले सप्ताह ही चीन से 6.5 लाख रैपिड टेस्टिंग किट का आयात हुआ था। आगे भी भारी संख्या में वहां से आने वाला है। अगर यह संदिग्ध हो गया तो पहली नजर में ही ऐसा लगता है कि हमारे लिए समस्या पैदा हो जाएगी।
आईसीएमआर ने बयान दिया है कि चीन से आने के बाद लैब में किट की जांच की गई थी, जिसमें यह 71 प्रतिशत सही पाया जा रहा था। जाहिर है, यह उस सैम्पल सर्वे जैसा हुआ जिसमें आपने कुछ किट के जांच कर लिए वह सही पाया गया। हो सकता है चीन ने जानबूझकर इस पर खेप भेजे हों जिनमें जांच के लिए जाने वाले किट सफल हो जाएं। चीन के लिए ऐसा करना कोई नई बात नहीं है। दुनिया में कोरोना कोविड 19 फैलाने के आरोपी चीन ने अपने व्यापार प्रसार के लिए दुनिया के अनेक देशों में टेस्टिंग किट, पीपीई किट, मास्क आदि भारी मात्रा में भेजे हैं।
अपनी दानवीरता दिखाने के लिए उसने कुछ मुफ्त भी दिए हैं। लेकिन पूरी दुनिया से उसकी सामग्रियों की गुणवत्ता पर प्रश्न उठे हैं, सामग्रियां मानकों पर खरे नहीं उतर रहे। स्पेन ने सारे टेस्ट किट वापस कर दिया। नीदरलैंड ने मास्क से लेकर अन्य सामग्रियों का आदेश रद्द किया एवं जो उसके पास आया था उसे वापस किया। ऐसे देशों की सूची लंबी है जिनको चीन से निराशा मिली है। इसमें यह सवाल उठेगा कि आखिर दुनिया की इन सारी खबरों के बीच भारत ने वहां से सामग्रियां मंगाने का फैसला क्यों किया? उत्तर यही है कि हमारे पास विकल्प वही था। दुर्भाग्य यह है कि लाखों की संख्या में आए उसका पीपीई किट भी रास नहीं आ रहा है। डॉक्टर और स्वास्थ्यकर्मी उसकी भी शिकायत कर रहे हैं।
कोरोना कोविड 19 की भयावह आपात स्थिति में एक-एक क्षण का महत्व है। इसमें हम चीन से शिकायत भले कर दें, वह दूसरी खेपें भी भेज सकता है, पर इसमें जो समय का अंतर होगा उसकी भरपाई कैसे होगी? दूसरे, इसकी क्या गारंटी है कि आगे जो टेस्ट किट आएंगे वे गुणवत्ता पर खरे ही उतरेंगे? वैसे आईसीएमआर कह रहा है कि आरटीपीसीआर टेस्ट यानी नाक और गले से किए जाने वाले टेस्ट ही मुख्य हैं। भारत जैसे इतनी बड़ी आबादी वाले देश में इस तरह के टेस्ट से सारे संक्रमितों-असंक्रमितों का पता करना संभव हो ही नहीं सकता। इस टेस्ट की रिपोर्ट आने में समय लगता है एवं यह खर्चीला भी है। हम यह नहीं कह सकते कि भारत ने कोरोना से जूझने में अपना सर्वस्व नहीं झोंका है।
पिछले साढ़े तीन माह में जो भी प्रगति हुई है, उसी की वजह से वायरस ग्रसित लोगों की पहचान हो पा रही है। हमारे अनुसंधान एवं प्राप्तियों का रिकॉर्ड शानदार हैं। इसी समयावधि में किसी भी नई बीमारी का पीसीआर टेस्ट पहली बार सामने आया है, जो काफी सटीक है। यही नहीं, 70 वैक्सिन की खोज हो चुकी है उनमें से पांच का मनुष्यों पर ट्रायल भी शुरू हो गया है। ऐसा आज तक कभी किसी बीमारी में नहीं हुआ है। हमारे वैज्ञानिक दवाओं पर भी काम कर रहे हैं।
गंभीर रोगियों पर ड्रग ट्राईल भी कई अस्पताल जल्द शुरू करेंगे। वायोटैक्नोलॉजी विभाग ड्रग से संबंधित 16 प्रस्तावों को वित्तीय मदद भी दे रहा है। हमारे देश की अनेक कंपनियां पीपीई बना रही है और वह गुणवत्ता पर खरी उतरी है। वेंटिलेटर का निर्माण भी हो रहा है। कई कंपनियों के वेंटिलेटर और पीपीई को आईसीएमआर ने मान्यता दे दी है। रेलवे जैसा विभाग अपने दो चयनित कारखानों में से एक में पीपीई एवं दूसरे में वेंटिलेटर का निर्माण कर रहा है। महिन्द्रा कंपनी ने वेंटिलेटर का निर्माण सबसे पहले आरंभ किया।
कहने का तात्पर्य यह कि इस संकट में भारत ने जो आंतरिक क्षमता दिखाई है उस पर फोकस करके तीव्र गति से बढ़ावा देने और ज्यादा से ज्यादा कंपनियों को गुणवत्ता सिद्ध सामग्रियों के निर्माण की अनुमति देकर इस श्रेणी की समस्याओं का सामाधान किया जा सकता है। यह सच बहुत कम लोगों को मालूम है कि भारत ने आज दुनिया में सबसे सस्ता तथा सबसे जल्दी परीक्षण परिणाम देने वाला टेस्ट किट विकसित कर लिया है। उत्तर प्रदेश के नोएडा में स्थित न्यू लाइफ कंसल्टेंट एंड़ ड़िस्ट्रीब्यूटर कंपनी की न्यू लाइफ लैबोरेट्री नामक स्वदेशी कंपनी ने ऐसी रैपिड़ किट तैयार की है जो 5 से 15 मिनट में कोरोना की जांच कर रिपोर्ट देने में सक्षम है।
इस पर खर्च करीब 500 रुपए ही आएगा। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायोरालॉजी (एनआईवी) पूणे से मंजूरी मिलने के बाद आईसीएमआर ने किट का उत्पादन की अनुमति प्रदान कर दी है। भारतीय औषधि नियंत्रक की अनुमति के साथ रैपिड किट का उत्पादन शुरु हो गया है। जो दो कंपनियां इनका उत्पादन करेंगी वो हैं की न्यू लाइफ और वायोजेनिक्स। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने लैबों को अनुसंधान एवं निर्माण करने के लिए प्रोत्साहित किया तथा हरसंभव मदद दिया जिसका परिणाम सामने है। अभी उत्तर प्रदेश का मध्यम, लघु एवं सूक्ष्म उद्योग विभाग यानी एमएसएमई इसकी मदद कर रहा है।
लेकिन देश की जरुरतों को देखते हुए इसका उत्पादन व्यापक पैमाने पर हो तो हमें चीन से लेने की जरुरत नहीं रह जाएगी। सोशल डिस्टेंसिंग के कारण समस्या है, क्योंकि एक साथ निकट आकर काम नहीं किया जा सकता। किंतु सम्पूर्ण सेनिटाइजेशन और पीपीई के साथ उत्पादन के लिए ज्यादा लोगों को लगाया जा सकता है। रैपिड टेस्ट संदिग्ध के खून से होने के कारण नतीजे कुछ मिनटों में ही आ जाएंगे। जिस प्रमुख जांच की बात आईएमसीआर कह रहा है वह संदिग्ध के स्वाब (थूक लार) से होती है इसलिए नतीजे आने में समय लग जाता है। इस दिशा में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में भी एक किट विकसित किया गया था लेकिन उसे अभी मान्यता नहीं मिली है। माई लैब ने जो किट विकसित वह बिल्कुल उन्नत श्रेणी का है। तो हमारे यहां क्षमता है, परिणाम भी आ गए हैं, बस इसके उत्पादन को बढ़ावा देने की है।
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