भारतीय जनता पार्टी से पहली बार 5 मार्च 1990 में भोजपुर विधायक सुन्दरलाल पटवा ने मध्यप्रदेश की कमान 15 मई 1992 तक संभाली, लेकिन यह कुछ समय तक राष्ट्रपति शासन के अधीन भी रहा। 8 दिसंबर 2003 से 23 अगस्त 2004 तक बड़ा मलहरा से विधायक उमा भारती के नेतृत्व में सरकार चली।
23 अगस्त 2004 से 29 नवंबर 2005 तक गोविंदपुरा विधायक बाबूलाल गौर ने मध्यप्रदेश का दिशा-निर्देशन किया। विदिशा के विधायक शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में 3 दिसंबर 2008 को मध्यप्रदेश का दिशा-निर्देशन शुरू हुआ, जो 2018 तक चलेगा।
आसान नहीं शिवराज की राह : 2018 में मध्यप्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनावों का समय जैसे-जैसे नजदीक आता जा रहा है, वैसे-वैसे प्रदेश में राजनीतिक हलचल भी तेज होती जा रही है। वैसे तो प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी बीते 14 सालों से सत्ता में है लेकिन शिवराज शासन की अगर बात की जाए तो गत 12 वर्षों से प्रदेश की बागडोर उनके हाथों में है। इन 12 सालों में शिवराज सिंह सरकार के नाम कई उपलब्धियां रहीं तो कुछ दाग भी उसके दामन पर लगे।
अगर उपलब्धियों की बात की जाए तो उनकी सबसे बड़ी सफलता मप्र के माथे से 'बीमारू राज्य' का तमगा हटाना रहा। बिजली उत्पादन के क्षेत्र में आज मप्र सरप्लस स्टेट में शामिल है, यहां 15,500 मेगावॉट बिजली की उपलब्धता है जबकि मांग सामान्यत: 6,000 मेगावॉट और रबी सीजन में अधिकतम 10,000 मेगावॉट रहती है। 'अटल ज्योति योजना' के अंतर्गत 24 घंटे बिजली देना एक महत्वपूर्ण कदम रहा। हालांकि बिजली आपूर्ति के इंफ्रास्ट्रक्चर का विकास हुआ है लेकिन देश के बाकी राज्यों के मुकाबले यह सबसे अधिक बिजली टैरिफ वाले राज्यों में शामिल है।
पर्यटन क्षेत्र 'हिन्दुस्तान का दिल देखो' : सड़कों की अगर बात की जाए तो गांवों तक पहुंच आसान हो गई है। पर्यटन के क्षेत्र में 'हिन्दुस्तान का दिल देखो' एड कैम्पेन से मप्र ने देश में उत्कृष्ट स्थान हासिल किया। इसके लिए 2008 में यूएस द्वारा मप्र को पर्यटन के क्षेत्र में सर्वश्रेष्ठ राज्य घोषित किया गया और वर्ष 2015 में 6 राष्ट्रीय पुरस्कार भी जीते।
कृषि क्षेत्र : लगातार 4 बार कृषि कर्मण अवॉर्ड जीतने वाला देश का पहला राज्य बना। 108 एम्बुलेंस, जननी योजना, लाड़ली-लक्ष्मी योजना, मुख्यमंत्री तीर्थदर्शन योजना शिवराज सरकार की वे उपलब्धियां हैं जिन पर वह बेशक अपनी पीठ थपथपा सकती है।
निवेश क्षेत्र : यह सत्य है कि विभिन्न क्षेत्रों में आशातीत निवेश न हुआ हो, लेकिन यह भी नहीं है कि निवेश हुआ ही नहीं है।
निवेश क्षेत्र : आईटी, ऑटॉमोबाइल, रक्षा, इनर्जी, फार्मास्युटिकल, टेक्सटाइल।
पर्यटन : सिंगल विंडो के माध्यम से तीव्र गति से 1 महीने के अंदर सरकारी प्रक्रिया पूरी की जा रही है। औद्योगिक लैंड बैंक की व्यवस्था भी सिर्फ मध्यप्रदेश में ही है।
कई मोर्चों पर चूक : कई मोर्चों पर उनसे चूक भी हुई, वरना 2015 में भाजपा का गढ़ कहे जाने वाले रतलाम और झाबुआ लोकसभा सीट उपचुनाव के लिए बतौर सीएम रहते हुए दर्जनभर सभाएं, 15 मंत्रियों, 16 सांसदों, 60 विधायकों के साथ चुनाव प्रचार एवं 1,500 करोड़ की घोषणाओं के बावजूद शिवराज की झोली में हार क्यों आई? देवास में जीत का अंतर भी चेहरे पर खुशी लाने वाला नहीं, बल्कि माथे पर बल लाने वाला रहा। हालात की अगर समीक्षा की जाए तो भले ही सरकार अपनी उपलब्धियों को आज अखबारों में बड़े-बड़े विज्ञापन देकर तरक्की का श्रेय ले रही हो लेकिन धरातल पर शिवराज सरकार की लोकप्रियता में निश्चित ही कमी आई है।
आत्मघाती मुद्दे : व्यापमं, किसान आंदोलन और हत्याएं : व्यापमं घोटाला भ्रष्टाचार की सारी हदें पार गया, क्योंकि सैकड़ों छात्रों और गवाहों की मौत का कलंक दामन से मिट नहीं सकता है। इतना ही नहीं, किसान आंदोलन में किसानों पर गोली चलाना एक बहुत ही गलत कदम रहा।
दरअसल, यह सरकार के अतिआत्मविश्वास एवं प्रशासन तंत्र द्वारा गलत फीडबैक का नतीजा रहा। स्वयं को 'किसान का बेटा' कहने वाले शिवराज के 13 वर्षों के शासन में खुद मध्यप्रदेश सरकार द्वारा विधानसभा में जारी आंकड़ों के अनुसार 15,129 किसान आत्महत्या कर चुके हैं।
एक तरफ सरकार दावा कर रही है कि राज्य में 4 सालों में कृषि विकास दर 20% बढ़ी है तो दूसरी तरफ उसके पास इस प्रश्न का कोई जवाब नहीं है कि प्रदेश का किसान असंतुष्ट क्यों है? कभी प्याज तो कभी टमाटर सड़क पर फेंकने के लिए मजबूर क्यों है? कैग की एक रिपोर्ट के अनुसार कृषि की खेती के सामान खरीदी में प्रदेश में 261 करोड़ की धांधली हुई है।
स्वास्थ्य सेवाओं की बात की जाए तो उनमें भी गिरावट आई है। शिशु मृत्युदर और कुपोषण के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं। शिक्षा के क्षेत्र में ढेर सारे इंजीनियरिंग कॉलेज खोले जाने के बावजूद उनमें से न तो अच्छे इंजीनियर निकल रहे हैं और न ही इन कॉलेजों से निकलने वाले युवाओं को नौकरी मिल पा रही है जिसके कारण बेरोजगारी की समस्या बढ़ती जा रही है। प्रदेश में अवैध खनन ने भी सरकार की साख ही नहीं, राज्य के राजस्व पर भी गहरा वार किया है।
अगर सरकार की नाकामयाबियों के कारणों को टटोला जाए तो बात प्रदेश की नौकरशाही पर आकर रुक जाती है। संघ की बैठक में भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय तक ने नौकरशाही के हावी होने का मुद्दा उठाया था। प्रदेश की बेलगाम और भ्रष्टाचार में डूबी ब्यूरोक्रेसी के कारण प्रदेश में न तो गुड गवर्नेंस हो पा रही है और न ही सरकार द्वारा घोषित योजनाओं का क्रियान्वयन हो पा रहा है।
आंतरिक कलह से भी चौहान के रास्ते में कांटे : तो देखना दिलचस्प होगा कि जिस भाजपा सरकार को प्रदेश की जनता ने लगातार 3 बार सिर-आंखों पर बैठाया, वो शिवराज की प्रशासन और नौकरशाहों पर उनकी ढीली होती पकड़ के कारण विपक्ष का रास्ता दिखाएगी या फिर कांग्रेस की आपसी फूट एवं किसी और बेहतर विकल्प के अभाव में एक मौका और देगी?