सपा ही नहीं, ससपा में भी दम, मत आंकिए कम!

राजीव रंजन तिवारी
छोटे और कमजोर लोगों के लिए आमतौर पर गांवों में एक कहावत कही जाती है- ‘देखन में छोटन लगे, घाव करे गंभीर।’ कुछ इसी तरह की बातें लोकतांत्रिक सियासत में भी देखने को मिलती रही है। मैं पहले भी बता चुका हूं कि भारतीय राजनीति पूरी तरह संभावनाओं पर टिकी हुई रहती है, इसलिए यहां कब, कौन बाजी मार ले जाए, कहा नहीं जा सकता। 
 
आजकल पूरे देश में उत्त
र प्रदेश विधानसभा चुनाव की चर्चा है। हर कोई अपने-अपने हिसाब से अपने समर्थक और विरोधी दलों को जीता-हरा रहा है। इस बीच यूपी में सत्तारुढ़ समाजवादी पार्टी (सपा) का घरेलू घमासान अब सबाब की ओर बढ़ रहा है। मतलब, अब यह माना जाने लगा है कि समाजवादी पार्टी खंडित होकर ही रहेगी। जिसमें से एक के मुखिया प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव खुद होंगे और दूसरे का बाद में पता चलेगा। उधर, सपा में टूट की संभावनाओं के मद्देनजर बदलते हालात पर कांग्रेस और भाजपा की भी नजर टिकी हुई है। समझा जा रहा है कि यदि अखिलेश यादव अलग पार्टी बनाते हैं तो उनकी कांग्रेस के साथ तालमेल हो सकती है। 
 
वहीं दूसरी ओर, पूरे दमखम के साथ सियासी हलके में उतरी चर्चित सिने अभिनेता राजपाल यादव की सर्व समभाव पार्टी (ससपा) भी इस गहमागहमी के बीच अपने लिए जगह तलाश कर रही है। हालांकि राजपाल यादव ने कहा है कि उनकी पार्टी सभी सीटों पर चुनाव लड़ेगी, पर लगता नहीं कि यह संभव है, क्योंकि सूत्र बता रहे हैं कि ससपा के नेता कांग्रेस, सपा, रालोद के संपर्क में हैं यानी तालमेल होने की दशा में उसे भी कुछ सीटें मिल सकती हैं। इतना ही नहीं, ससपा उस राजनीतिक घटनाक्रम पर भी नजर टिकाए हुए है, जो सपा परिवार में घमासान के बाद बदलेगा। शायद यही वजह है कि राजनीति के जानकार सिने स्टार राजपाल यादव की पार्टी को भी कम न आंकने की सलाह दे रहे हैं।
 
यूपी में उठे सियासी भूचाल में रोज-रोज नए-नए मोड़ आ रहे हैं। इसी क्रम में 30 दिसम्बर को बताया गया कि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के बीच गठबंधन को लेकर चर्चा हो रही है। माना जा रहा है कि समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के बीच यूपी चुनावों में गठबंधन हो सकता है। बता दें कि पिछले दिनों उम्मीदवारों की सूची जारी करते हुए सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव ने साफ कहा था कि उनकी पार्टी किसी से भी गठबंधन नहीं करेगी। जबकि सपा के महासचिव प्रो. रामगोपाल यादव ने फर्रुखाबाद में कहा कि सीएम अखिलेश के विरोधी हमारे विरोधी हैं। सीएम की सूची के प्रत्याशियों को मेरा समर्थन हैं। इससे पहले पार्टी के कद्दावर नेता आजम खान ने कहा था कि वह पार्टी में मचे घमासान से दुखी हैं। आजम ने कहा कि समाजवादी पार्टी में टिकट बंटवारे को लेकर मचे घमासान दुर्भाग्यपूर्ण है। 
 
आपको बता दें कि सीएम अखिलेश यादव के 235 उम्मीदवारों की सूची जारी करने के बाद प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल यादव ने भी 78 प्रत्याशियों की लिस्ट जारी कर दी। इससे पहले मुलायम सिंह यादव ने 325 उम्मीदवारों की सूची जारी की थी। इस लिस्ट में मुलायम सिंह यादव ने 53 मौजूदा विधायकों के टिकट काट दिए थे, जिसमें अखिलेश यादव के कई करीबियों के भी नाम थे। यूं कहें कि टिकट बंटवारे को लेकर मुलायम सिंह यादव के परिवार में एक बार फिर दरार देखने को मिल रही है। मुलायम द्वारा जारी लिस्ट में 108 उम्मीदवार ऐसे हैं, जो अखिलेश यादव को पसंद नहीं हैं, जबकि इस लिस्ट में शिवपाल यादव की पसंद के 164 विधायकों को टिकट मिला। मुलायम द्वारा लिस्ट में शिवपाल यादव के करीबियों को टिकट मिलने से एक बात सामने आ रही है और वह यह है कि शिवपाल का खेमा मजबूत हो रहा है। बता दें कि मुलायम से मुलाकात के बाद पार्टी अध्यक्ष शिवपाल ने अपनी लिस्ट जारी की थी।
 
इससे इत्तर आपको बता दें कि यूपी चुनावों की जब भी बात होती है तो ये मान लिया जाता है कि दलित और मुस्लिम वोट बसपा को सत्ता में वापस ला सकते हैं। यूपी में दलित और मुस्लिम आबादी करीब 40 प्रतिशत है। कई लोग ये मानते हैं कि पिछले कुछ वर्षों में यूपी में हुए दंगों के बाद मुसलमान मतदाता सपा से दूर जा सकते हैं, लेकिन पिछले कुछ चुनावों के नतीजों को देखें तो मायावती का दलित जनाधार चुनाव दर चुनाव सिकड़ुता जा रहा है यानी बसपा दूसरी जाति के समर्थन के बिना चुनाव नहीं जीत सकती। मायावती के अब तक की चुनावी जीत में बसपा को अगड़ी जाति खासकर ब्राह्मणों का समर्थन काफी अहम रहा है। 
 
2004 के लोकसभा चुनाव में बसपा ने राज्य की अनुसूचित जाति (एससी) के लिए आरक्षित 17 सीटों में से केवल पांच पर जीत हासिल की थी। 2009 के लोक सभा चुनाव में बसपा ने यूपी की 20 संसदीय सीटों पर जीत हासिल की थी लेकिन एससी सीट के मामले में पार्टी का आंकड़ा बुरा रहा और उसे केवल दो सीटों पर जीत मिली। 2014 के लोकसभा चुनाव में बसपा को करीब 20 प्रतिशत वोट मिले लेकिन वो एक भी सीट जीतने में विफल रही। 2012 के विधानसभा चुनाव में बसपा को करीब 25.9 प्रतिशत और सपा को 29.13 प्रतिशत वोट मिले, लेकिन बसपा राज्य की 85 सुरक्षित विधानसभा सीटों में से केवल 15 पर जीत हासिल कर सकी थी, वहीं सपा ने इनमें से 58 सीटों पर विजय हासिल की थी। साल 2009 में बसपा ने 47 सीटों पर जीत हासिल की थी। कई सीटों पर बसपा प्रत्याशियों का हार का अंतर पांच हजार वोटों से कम रहा था। राज्य की 80 संसदीय सीटों में से 67 (करीब 85 प्रतिशत) पर बसपा सीधी टक्कर में थी। 
 
जाहिर है कि बसपा की इस सफलता में केवल दलित वोटों का हाथ नहीं था। अब राजनीतिक पंडितों की नजर सिने स्टार राजपाल यादव की पार्टी सर्व समभाव पार्टी (ससपा) पर आकर टिक गई है। कहते हैं कि सपा के घर में झगड़ा, बसपा से वोटरों की दूरी और कांग्रेस का जर्जर सांगठनिक स्वरूप ससपा को बेहतर विकल्प दे सकता है। चूंकि राजपाल यादव जहां भी जाते हैं, वहां भारी भीड़ होती है और लोग उन्हें प्यार भी करते हैं। शायद इसीलिए यह उम्मीद जताई जा रही है कि यदि ससपा भले विकल्प न बने, लेकिन कांग्रेस, अखिलेश और रालोद से गठजोड़ कर कुछ सीटें तो हासिल कर ही सकती है। इसकी वजह स्पष्ट है कि ससपा की विचारधारा भी वही है जो कांग्रेस और सपा की है। यानी यदि सपा से वोट छिटकता है तो वह बसपा और भाजपा की ओर जाने के बजाय कांग्रेस और ससपा की ओर जा सकता है। 
 
मुख्य रूप से यही इस नई पार्टी ससपा के लिए अच्छे संकेत हैं। जानकारों का कहना है कि नए वर्ष में 8 जनवरी सिने स्टार राजपाल यादव अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सर्वधर्म समभाव के लिए काम करने वाली संस्था से ‘धरा धाम’ के शिलान्यास समारोह में बतौर मुख्य अतिथि उपस्थित होने आ रहे हैं। कहा जा रहा है कि उस सभा में तीस हजार से अधिक की भीड़ होगी। हालांकि वह पूरी तरह से गैर राजनीतिक कार्यक्रम है, लेकिन राजपाल के नाम पर भीड़ बढ़ने की उम्मीद है। ‘धरा धाम’ के प्रमुख सौरभ पाण्डेय ने बताया कि एक ही कैम्पस में मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा, गिरिजाघर समेत दुनिया के सभी धर्मों का प्रतीकस्थल बनाया जाना है, जो अपने आप में महत्वपूर्ण है। बकौल, सौरभ पाण्डेय दुनिया में इस तरह का कोई भी कैम्पस नहीं है। यह दुनिया का अद्वितीय परिसर होगा, जिसका शिलान्यास करने का सौभाग्य सिने स्टार राजपाल यादव को मिल रहा है।
 
एक और अहम बात है कि यदि कांग्रेस, अखिलेश और रालोद से ससपा का गठबंधन हो जाता है तो तीनों पार्टियों को लाभ होगा, क्योंकि सिने स्टार राजपाल यादव अन्य नेताओं की अपेक्षा ज्यादा भीड़ इकट्ठी कर लेंगे, इसमें कोई शक नहीं है। जो फायदे की बात है। अब उस भीड़ को वोट में बदलने का काम अन्य दलों के नेताओं का है। कौन किस तरह वोटरों को अपनी ओर आकर्षित कर पाता है। बहरहाल, हालातों के मद्देनजर यह कहा जा सकता है कि सिने स्टार राजपाल यादव की नई पार्टी सर्व समभाव पार्टी (ससपा) को भी कम नहीं आंका जा सकता। यह अलग बात है कि राजपाल यादव अपनी चुनावी रणनीति किस ढंग से बनाते हैं और उन्हें उसका कितना लाभ मिलता है।
Show comments
सभी देखें

जरुर पढ़ें

पेट पर सालों से जमा चर्बी को मोम की तरह पिघला देगा ये ड्रिंक

रात को सोने से पहले इस मसाले का दूध पीने से मिलेंगे चौंकाने वाले फ़ायदे

रिलेशन में ये संकेत देखकर हो जाएं सतर्क, ऐसे पता चलता है कि आपका रिश्ता हो रहा है कमजोर

Navratri Food 2024: नवरात्रि में फलाहार के 5 खास आइटम

नकली और असली केसर में कैसे करें पहचान? जानें ये 5 बेहतरीन तरीके

सभी देखें

नवीनतम

मेनोपॉज में नींद क्यों होती है प्रभावित? जानें इसे सुधारने के उपाय

प्रेग्नेंसी के दौरान मसूड़ों से खून आने से हैं परेशान, जानिए क्या ये है सामान्य

Gandhi Jayanti 2024: महात्मा गांधी पर हिंदी में रोचक निबंध

त्योहारों में पकवान और मीठे की वजह से बढ़ जाता है वज़न, तो अपनाएं ये आसान तरीके

26 सितंबर: ईश्वर चन्द्र विद्यासागर की जयंती, जानें 10 शिक्षाप्रद बातें

अगला लेख