फैसले के बाद तमिलनाडु की राजनीति

Webdunia
अवधेश कुमार
तो उच्चतम न्यायालय ने शशिकला और उनके दो अन्य रिश्तेदारों के मामले में अपना फैसला सुना दिया। वास्तव में इस फैसले के कानूनी पहलू हैं जिनकी चर्चा जरुरी है लेकिन इसकी राजनीतिक परिणति अन्नाद्रमुक और तमिलनाडु के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। आय से अधिक संपत्ति रखने के मामले में उन्हें चार साल की सजा होने का मतलब है कि अगले 10 वर्ष तक वो चुनाव नहीं लड़ सकती। इस तरह जयललिता की मृत्यु के बाद तमिलनाडु की मुख्यमंत्री बनने का उनकी महत्वाकांक्षा ध्वस्त हो गई है। अगर साढ़े तीन साल वो जेल में गुजारने के बाद बाहर आती हैं तो उस समय क्या राजनीतिक परिस्थितियां होंगी, उस पर उनका राजनीतिक भविष्य निर्भर करेगा। किंतु जेल जाते-जाते उन्होंने तमिलनाडु विधायक दल का नया नेता निर्वाचित करवा दिया और ओ.पन्नीरसेल्वन को अन्नाद्रमुक की प्राथमिक सदस्यता से भी बर्खास्त कर दिया गया। इसका अर्थ यह हुआ कि वो जेल में रहते हुए भी स्व.जयलिता की तरह सरकार और पार्टी पर अपनी पकड़ बनाए रखना चाहती हैं। इसमें वो सफल होतीं हैं या नहीं यह समय बताएगा, किंतु इतना तो बेहिचक कहा जा सकता है कि शशिकला जयललिता नहीं है, कि जेल में रहते हुए भी अपने रुतबे से पार्टी पर पूरी तरह पकड़ बनाए रख सके।

 
शशिकला जिस तरह से सक्रिय होकर मुख्यमंत्री पद संभालने के लिए अडिग दिख रहीं थीं उससे साफ था कि उनको उच्चतम न्यायालय से राहत मिलने की पूरी उम्मीद थी। इसका कारण कर्नाटक उच्च न्यायालय द्वारा 11 मई 2015 को जया और शशिकला समेत सभी चार दोषियों को पूरे मामले से बरी कर दिया जाना था। उच्च न्यायालय ने 1000 पृष्ठों का फैसला सुनाया था और उसमें जो आधार दिए थे उससे शशिकला एवं उनके समर्थकों का उम्मीद बंधना स्वाभाविक था। ध्यान रखिए कि विशेष न्यायालय ने 27 सितंबर 2014 को मामले में जया, शशिकला और उनके दो रिश्तेदार वीएन सुधाकरन, इलावरसीं को चार वर्ष की सजा सुनाई थी।  इस मामले की सुनवाई तमिलनाडु के बाहर बेंगलुरु की विशेष न्यायालय में स्थानांतरित हुआ था। न्यायालय ने शशिकला और उनके संबंधियों पर 10 करोड़ और जयललिता पर 100 करोड़ का जुर्माना भी लगाया था। जया ने इस फैसले को कर्नाटक उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी जिसमें बरी होने का फैसला आया था। उच्च न्यायालय ने फैसले के कई आधार दिए थे। उसने कहा था कि जयललिता के पास आय से 8.12 प्रतिशत संपत्ति अधिक थी। यह 10 प्रतिशत से कम है जो मान्य सीमा में है। उसके अनुसार संपत्ति के आकलन को एजेंसियों ने बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत किया है। उसने कुल संपत्ति का आकलन 37 करोड़ किया था। न्यायालय ने यह भी कहा कि जो संपत्तियां खरीदीं गईं, उसके लिए आरोपियों ने राष्ट्रीयकृत बैंकों से बड़ा कर्ज लिया था। उच्च न्यायालय के अनुसार निचले न्यायालय ने इस पर विचार नहीं किया। यह भी साबित नहीं होता कि अचल संपत्ति काली कमाई से खरीदी गईं। आय के स्रोत जायज हैं। उच्च न्यायालय ने यहां तक कह दिया कि  निचले न्यायालय का फैसला कमजोर था। वह कानून की नजरों में नहीं टिकता।
 
ऐसी स्पष्ट टि‍प्पणी के बाद शशिकला यह उम्मीद कैसे कर सकतीं थी कि उच्चतम न्यायालय उनको सजा दे ही देगा। यह भी नहीं भूलिए कि मामले की सुनवाई के दौरान 76 गवाह अपने पुराने बयान से पलट चुके थे। ये वे लोग थे जो द्रमुक सरकार में गवाह बनाए गए थे। किंतु उच्चतम न्यायालय की पीठ ने उच्च न्यायालय के सारे आधारों को अस्वीकार कर निचले यानी विशेष न्यायालय के फैसले को मान्य रखा है। यह शशिकला और उनके समर्थकों के लिए बहुत बड़ा अनपेक्षित आघात है। अब शशिकला के सामने उच्चतम न्यायालय ने पुनरीक्षण याचिका दायर करने का विकल्प है किंतु उसमें उनको रियायत मिल ही जाएगी ऐसा कहना मुश्किल है। दरअसल, जयललिता पर 1991 से 1996 के बीच मुख्यमंत्री रहने के दौरान उस समय के मूल्यों के अनुसार आय से ज्यादा 66.44 करोड़ की ज्यादा संपत्ति इकट्ठा करने का आरोप था। उन पर शशिकला के साथ मिलकर 32 ऐसी कंपनियां बनाने का आरोप था, जिसके बारे में कहा गया कि इनका कोई व्यवसाय ही नहीं था। 
 
1996 में तत्कालीन जनता पार्टी के नेता और अब भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने मुकदमा दायर किया था। इसमें अभियोजन पक्ष ने जयललिता की संपत्ति का ब्योरा देते हुए आरोप लगाया कि आरोपियों ने जो 32 कंपनियां बनाईं वो सिर्फ काली कमाई से संपत्तियां खरीदती थीं। इसके अनुसार इन कंपनियों के जरिए नीलगिरी में 1000 एकड़ और तिरुनेलवेली में 1000 एकड़ की जमीन खरीदी गई। उन पर गोद लिए गए बेटे वी.एन. सुधाकरण की शादी पर 6.45 करोड़ रुपए तथा अपने घर में अतिरिक्त निर्माण पर 28 करोड़ रुपए लगाने का आरोप लगा। इसके अनुसार जब वो पहली बार 1991 में मुख्यमंत्री बनीं तो अपनी संपत्ति तीन करोड़ रुपए घोषित की। मुख्यमंत्री के रुप में वो एक रुपया मासिक वेतन लेतीं थीं। उनके खिलाफ आरोप यह लगाया गया कि पांच वर्ष की अवधि में उनकी संपत्ति अगर 66.4 करोड़ रुपये की हो गई तो केवल भ्रष्टाचार के कारण। 1996 में उनके घर पर छापा के बाद मिले सामानों की तस्वीरें सारे अखबारों ने प्रथम पृष्ठ पर प्रकाशित किया था। वो चौंधिया देने वाली तस्वीरें थीं। उस समय 28 किलो सोना, 800 किलो चांदी, 10500 साड़ियां, 91 घड़ियां और 750 जोड़ी जूते मिले थे। यह सब अभी तक रिजर्व बैंक की बेंगलुरु शाखा में जमा है। कहा गया कि जयललिता अपनी संपत्ति की आय का स्रोत बताने में असफल रहीं। शशिकला पर इस सारे मामलों में उन्हें उत्प्रेरित करने तथा समान भागीदारी का आरोप था। जब उच्चतम न्यायालय ने फैसला दे दिया उसके बाद हम यह नहीं कह सकते कि वाकई वे दोषी नहीं थी, उच्चतम न्यायालय के फैसले पर कोई प्रश्न नहीं उठा सकता। 
 
बहरहाल, जयललिता हमारे बीच नहीं है। आज अगर वो जिंदा होतीं तो उन्हें फिर मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र देना पड़ता और वो भी जेल जातीं। ऐसी सजा के बाद उन्हें भी 10 वर्षों तक राजनीति से अलग रहना पड़ता। उच्च्तम न्यायालय ने यही कहा है कि चूंकि वो नहीं है इसलिए उनका मुकदमा बंद किया जाता है। किंतु चाहे 1996 हो या 2001 या 2014 तीनों समय जब जयललिता संकट में पड़ीं या उनको जेल जाना पड़ा तो उनके समर्थन में पूरे तमिलनाडु में लोग सड़कों पर छातियां पीटते उतरे। उनके समर्थक यह मानने को तैयार ही नहीं थे कि वो भ्रष्टाचार कर सकतीं हैं। समर्थकों का यही विश्वास उनकी ताकत थीं जिसकी बदौलत वो राजनीति करतीं रहीं। आप कल्पना करिए। आज अगर जयललिता जीवित होतीं और यह फैसला आया होता तो पूरे तमिलनाडु में क्या स्थिति होती! फिर से लोग सड़कों पर होते और कोहराम मच गया होता। इसी से साबित होता है कि शशिकला जयललिता नहीं है। जयललिता के व्यक्तित्व में एक करिश्मा था जिसने भ्रष्टाचार के आरोप लगने के बावजूद राजनीति में उनको जिन्दा रखा और अन्नाद्रमुक भी एक बना रहा। वो जेल में रहीं, लेकिन उनका प्रभाव सरकार एवं पार्टी दोनों पर कायम रहा। नेता उनका हर आदेश मानने के लिए तत्पर रहते थे। क्या शशिकला के साथ ऐसा ही होगा? 
 
इसका उत्तर हां में देना कठिन है। आप देख लीजिए, उनको सजा हो गई, पर तमिलनाडु में कहीं कोई जन ज्वार नहीं है। यही तथ्य अन्नाद्रमुक पार्टी तथा सरकार दोनों के भविष्य को लेकर आशंका पैदा करता है। भविष्य का नहीं कह सकते, किंतु अभी तक कोई एक नेता अन्नाद्रमुक में नहीं जिनका नेतृत्व सबको स्वीकार हो। इसमें सरकार का पूरे कार्यकाल तक कायम रहना तथा पार्टी का एक रहना दोनों पर गंभीर प्रश्न चिन्ह बना रहेगा। जललिता जिन्दा रहतीं और 10 वर्ष तक प्रत्यक्ष राजनीति से दूर रहने के बंधन के बावजूद उनका करिश्मा अन्नाद्रमुक नेताओं को अनुशासन में बांधे रखने तथा पार्टी को एक रखने में कामयाब होता। ऐसा शशिकला के संदर्भ में कतई संभव नहीं है। जाहिर है, आने वाले समय मेंतमिलनाडु में एक नई राजनीतिक रिक्ती दिक्षाई देगी जिसे भरने के लिए एक नई शक्ति के उभरने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है। 
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