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प्रधानमंत्री द्वारा ट्रंप से दो टूक बात के बाद झूठा नैरेटिव ध्वस्त हुआ

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अवधेश कुमार

, सोमवार, 30 जून 2025 (15:36 IST)
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जी 7 के लिए कनाडा, उसके पहले साइप्रस और फिर क्रोएशिया तक की यात्रा अनेक अनेक अर्थों में विदेश नीति, समर-नीति से लेकर रक्षा, आंतरिक सुरक्षा तथा नैरेटिव के संदर्भ में जबरदस्त उपलब्धियों एवं परिणामों वाली मानी जाएगी। भारत के अंदर और बाहर विरोधियों को भी इस तरह सफलता को प्रतिध्वनित करने वाली यात्रा की कल्पना नहीं रही होगी। 
 
शायद इन शब्दों में किसी को अतिवाद दिखे किंतु क्या आपने कल्पना की थी कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ बातचीत में सीधे ऑपरेशन सिंदूर और भारत पाकिस्तान सैनिक टकराव रुकने संबंधी अमेरिकी दावे का ऐसा खंडन किया जाएगा? ऐसा नहीं है कि डोनाल्ड ट्रंप आगे भारत पाकिस्तान के संदर्भ में श्रेय लेने के लिए मध्यस्थता करने का दावा नहीं करेंगे। उन्होंने किया भी है। किंतु विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने दोनों नेताओं के बीच टेलीफोन पर 35 मिनट की हुई बातचीत का जो ब्यौरा दिया उसका ट्रंप प्रशासन द्वारा खंडन न किया जाना ही बताता है कि वक्तव्य पूरी तरह सच है। 
 
दो नेताओं की बातचीत में सामने वाले को कहा जाए कि आपने जो दावा किया वैसी बातचीत हमारे आपके बीच कभी हुई नहीं तो उस पर क्या गुजरेगी? विदेश सचिव विक्रम मिश्री की इन पंक्तियों को देखिए–, 'प्रधानमंत्री मोदी ने अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप को स्पष्ट रूप से कहा है कि ऑपरेशन सिंदूर के संबंध में कभी भी और किसी भी स्तर पर भारत-अमेरिका ट्रेड डील या अमेरिका की ओर से भारत और पाकिस्तान के बीच मध्यस्थता जैसे विषयों पर बात नहीं हुई थी। सैन्य कार्रवाई रोकने की बात सीधे भारत और पाकिस्तान के बीच हुई। दोनों सेनाओं की बात मौजूदा चैनल्स के माध्यम से हुई थी। पाकिस्तान के ही आग्रह पर ये बातचीत हुई थी।' 
 
ट्रंप ने क्या उत्तर दिया यह सामने नहीं है। जरा सोचिए, अगर ट्रंप जी 7 बैठक बीच में छोड़ अमेरिका नहीं लौटे होते और आमने-सामने बातचीत होती तो कैसा दृश्य होता? कहीं ऐसा तो नहीं कि भारत और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तेवर का आभास ट्रंप को हो और उन्होंने वहां से तत्काल निकल जाने में नहीं उचित समझा। 
 
निश्चित रूप से देश में कांग्रेस सहित सारी पार्टियों और झूठे नैरेटिव से नकारात्मक इकोसिस्टम खड़ा करने वाले समूहों को धक्का पहुंचा होगा। भारत-पाकिस्तान के सैनिक टकराव रुकने के संबंध में ट्रंप के लगातार वक्तव्यों को आधार बनाकर संकुचित राजनीति के लिए जिस तरह का उपहास प्रधानमंत्री, भारतीय विदेश नीति व रक्षा नीति का उड़ाया जा रहा था उन सब पर तुषारापात हुआ है। 
 
सामान्य शिष्टाचार है कि ट्रंप अंकल का एक फोन आते ही मोदी ने युद्ध रोकने का आदेश दे दिया का नैरेटिव चलाने वाले कम से कम अफसोस प्रकट करें। किसी ने नहीं सोचा कि जब भारत की वर्षों पुरानी नीति कश्मीर को द्विपक्षीय मामला मानने तथा तीसरे पक्ष के हस्तक्षेप न करने देने की है तो सरकार इससे परे नहीं जा सकती। वैसे भी नरेंद्र मोदी सरकार ने तो पाकिस्तान की सीमा में घुसकर आतंकवादी हमलों का प्रतिकार किया और नीतिगत बयान यही है कि केवल पाक अधिकृत कश्मीर को सुलझाना ही बचा हुआ है।
 
प्रधानमंत्री ने अपने भाषणों में ही पाकिस्तान से किसी स्तर की बातचीत या तीसरे पक्ष की मध्यस्थता को सीधे-सीधे नकारा। विदेश सचिव के वक्तव्य से यह धारणा भी खंडित हुआ कि इस बीच मोदी और ट्रंप के बीच कोई बातचीत हुई। वे कह रहे हैं कि उसके बाद दोनों नेताओं की पहली बातचीत थी। पूरे घटनाक्रम की स्थिति में यह तथ्य काफी महत्वपूर्ण है। यानी 9 मई को केवल अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस के साथ बातचीत हुई जिन्होंने पाकिस्तान द्वारा भारत पर बड़े हमले की जानकारी दी थी और जवाब में प्रधानमंत्री ने कहा था कि भारत उससे बड़ा जवाब देगा और दिया गया। यानी युद्धविराम की उसमें भी कोई बात नहीं। 
 
साफ है कि ऑपरेशन सिंदूर पर विरोधियों द्वारा बनाया नैरेटिव शर्मनाक तौर पर झूठा था। ट्रंप को भी सीधे प्रधानमंत्री से यह सुनने के बाद कि भारत अब आतंकवाद को प्रॉक्सी वार नहीं, युद्ध के रूप में ही देखता है और 'ऑपरेशन सिंदूर' अभी भी जारी है, हमारी नीति और तैयारी का स्पष्ट आभास हो गया होगा। यानी आप क्या सोचते और चाहते हैं वह नहीं हमारी सुरक्षा हमारे लिए महत्वपूर्ण है और यही नीति का मुख्य आधार है।। 
 
सामान्य तौर पर यह व्यवहार भी हैरत भरा है कि एक ओर ट्रंप पाकिस्तान के फिल्ड मार्शल जनरल असीम मुनीर को रात्रि भोज दे रहे हैं और प्रधानमंत्री मोदी से अमेरिका आने का आग्रह कर रहे हैं। यह अमेरिका की कैसी रणनीति है? मोदी सरकार ने ट्रंप प्रशासन के साथ सही रणनीति अपनाया और दूसरी प्रतिबद्धताओं की बात कह मोदी ने ट्रंप के निमंत्रण को ठुकरा दिया। यह भी ट्रंप और उनके प्रशासन के लिए सामान्य धक्का नहीं था। 
 
कनाडा से अमेरिका जाकर कुछ घंटे बातचीत करते हुए क्रोशिया जा सकते थे। इसका आभास भी ट्रंप और उनके प्रशासन को होगा कि प्रधानमंत्री मोदी ने ऐसा कर भारत की नाराजगी प्रकट कर दिया है। मोदी को ट्रंप का आज्ञाकारी और न जाने क्या-क्या शब्द देने वाले कभी यह भी नहीं सोचते कि वह किसी व्यक्ति का नहीं 140 करोड़ भारतीयों के नेता और इस नाते भारत को छोटा दिखा रहे हैं। विचार इस पर होना चाहिए कि ट्रंप के व्यवहार में बदलाव आया क्यों? सबकुछ जानते हुए डोनाल्ड ट्रंप और उनका प्रशासन पाकिस्तान के साथ सम्मानजनक और सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार कैसे करने लगा?
 
तत्काल ऐसा लगता है कि अमेरिका ने ईरान के अयातुल्लाह खामेनेई की सत्ता समाप्त करने की रणनीति काफी पहले बना ली। पाकिस्तान किसी स्तर पर ईरान की ठोस मदद न कर सके इसकी तैयारी के तहत उसे पुचकारा गया। मुद्रा कोष से कर्ज दिलाने में मदद की, फिर भारत के साथ समानता का व्यवहार करते हुए उसे भी महान देश बताया और अब पहलगाम आतंकवादी हमले के मुख्य खलनायक तथा सरेआम मुसलमान को विशेष संस्कृति बताने वाले जनरल को इतना महत्व। 
 
इसके पहले किसी अमेरिकी राष्ट्रपति ने अन्य जनरलों को ऐसा महत्व नहीं दिया। पाकिस्तान ईरान की सीमा लगभग 900 किलोमीटर मिलती है। ईरान के रक्षा मंत्री का वह बयान उपलब्ध है कि आवश्यकता पड़ने पर पाकिस्तान अपना न्यूक्लियर हथियार मदद में देगा। इस्लाम के नाम पर ऐसी भयानक स्थिति पैदा न हो इसका ध्यान रखते हुए ट्रंप प्रशासन ने पाकिस्तान से संपर्क बढ़ाया होगा। संभव है इसी से आत्मविश्वास बढ़ा और पाकिस्तान भारत के विरुद्ध भौंहें टेढ़ी किया हो। पाकिस्तान के रक्षा मंत्री को इसका खंडन करना पड़ा। 
 
इसे भारतीय विदेश नीति की विफलता करार देना भी अनुचित है। भारत की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जो हैसियत है वह बनी हुई है। ऐसा नहीं होता तो जी7 के देश ही मांग नहीं करते कि सम्मेलन में भारत और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उपस्थिति होनी ही चाहिए। प्रधानमंत्री ने वहां आतंकवाद पर खड़ी-खरी सुनते हुए कहा भी आतंकवाद पर हमारा रवैया नहीं बदला तो इतिहास हमें माफ नहीं करेगा। 
 
एक ओर तो हम अपने अनुसार किसी पर प्रतिबंध हैं और दूसरे आतंकवाद के मुख्य केंद्र को समर्थन करते हैं। अमेरिका, यूरोप पाकिस्तान की भूमिका के बारे में पूरी जानकारी रखते हैं। किंतु उनकी सोच है कि पाकिस्तान अलग-थलग होकर पूरी तरह चीन के पाले में चला जाएगा और एक उग्रवादी अराजकतावादी देश बन जाएगा। ये नहीं चाहते कि पाकिस्तान को अलग-थलग कर उसे पूरी तरह चीन के पाले में जाने और उग्रवादी अराजकतावादी देश बनने की ओर धकेल दें। एक समय पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय जेहादी आतंकवाद का मुख्य केंद्र था। आज वह उसी रूप में उनके लिए खतरा नहीं है जैसा भारत के लिए है। अमेरिका की उसके पड़ोसी अफगानिस्तान और ईरान से उपस्थिति भी खत्म है।
 
भारत को इसका ध्यान रखते हुए ही नीतियां बनानी है और बना भी रहा है। आतंकवादी हमले होंगे तो सब साथ होने का बयान देंगे, लेकिन पाकिस्तान पर हमले में साथ नहीं मिलेगा। तो सबक यही है कि विरोधी मोदी विरोध के नाम पर भारत को छोटा दिखाने के लिए इस तरह झूठ नैरेटिव से बचें।

(इस लेख में व्यक्त विचार/विश्लेषण लेखक के निजी हैं। 'वेबदुनिया' इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेती है।)

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