Dharma Sangrah

Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

देश को छोटा दिखाने का अपकर्म न करें

Advertiesment
हमें फॉलो करें modi on operation sindoor
webdunia

अवधेश कुमार

, सोमवार, 9 जून 2025 (16:15 IST)
हमारे सामने ऑपरेशन सिंदूर को लेकर देश के दो परस्पर विरोधी दृश्य हैं। विदेश गया सर्वदलीय सांसदों के प्रतिनिधिमंडल ने इस तरह भारत का पक्ष प्रस्तुत किया जैसे देश पाकिस्तान केंद्रित सीमा पार आतंकवाद, जम्मू कश्मीर तथा ऑपरेशन सिंदूर को लेकर पूरी तरह एकजुट है और कोई विपक्ष है ही नहीं। दूसरी ओर आप पहलगाम हमले से लेकर ऑपरेशन सिंदूर और उसके बाद देश के अंदर विपक्ष की भूमिका देखिए, किसी भी देशभक्त और सच्चाई का ज्ञान रखने वाले निष्पक्ष व्यक्ति का दिल दहल जाएगा या फिर उसको गुस्सा आएगा। 
 
ऐसा कोई दिन नहीं जब विपक्ष के बड़े नेता ऑपरेशन सिंदूर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार को घेरने की कोशिश नहीं कर रहे। लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी पहले दिन से प्रश्न उठा रहे हैं कि हमारे कितने लड़ाकू विमान को नुकसान हुआ। लगभग यही स्वर कांग्रेस के अध्यक्ष एवं राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे का है। जयराम रमेश ने तो लगता है जैसे ऑपरेशन सिंदूर को ही अपने सोशल मीडिया का मुख्य विषय बना दिया है। सबसे अंतिम हमला सिंगापुर शांग्रीला सम्मेलन में चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ सीडीएस अनिल चौहान के भाषण और ब्लूमबर्ग को दिए साक्षात्कार पर है। सभी नेता एक साथ टूट पड़े हैं कि अब सरकार बताए कि कितने राफेल नष्ट हुए इस पर संसद का विशेष सत्र बुलाएं तथा रिव्यू कमेटी यानी पुनरीक्षण समिति बनाया जाए।
 
इसमें यहां विस्तार से जाने की आवश्यकता नहीं है। सीडीएस का पूरा इंटरव्यू सबके सामने है। उसमें कहीं नहीं है कि पाकिस्तान ने हमारे कितने लड़ाकू विमान गिराए या हमें कोई बड़ी क्षति हुई। यह सामान्य बात है कि कोई भी युद्ध या लड़ाई एकपक्षीय क्षति वाली नहीं होती। यही सीडीएस ने कहा है। किसी को ज्यादा क्षति होगी किसी को कम। मूल बात यह है कि भारत ने पाकिस्तान के सैन्य दुस्साहस का ऐसा करारा प्रत्युत्तर दिया जिससे उसकी हुई व्यापक क्षति के बारे में दुनिया के विशेषज्ञ बता रहे हैं और उनसे संबंधित उपग्रह के चित्र आदि सामने ले जा चुके हैं।
 
कई बार लगता है कि हम सरकार को घेर रहे हैं सेना और देश को नहीं। किंतु इसका दूसरा पहलू यही है कि सरकार निर्णय करती है क्रियान्वित सेना करती है। सेना सरकार के लिए नहीं देश के लिए सैन्य कार्रवाई करती है। ऑपरेशन सिंदूर में सरकार ने यह तय नहीं किया होगा कि सेना कैसे कार्रवाई करे कि हथियार, लड़ाकू विमान , मिसाइल, रडार आदि का प्रयोग करें या कितने जवान उनमें लगें। जिस तरह पहलगाम हमले के बाद प्रधानमंत्री चीफ ऑफ़ डिफेंस स्टाफ, तीनों सेना के प्रमुखों से लेकर विदेश मंत्री, उनसे जुड़े मंत्रालय, रक्षा मंत्री, मंत्रालयों के अधिकारी एवं अन्य अलग-अलग आवश्यक क्षेत्र के शीर्ष लोगों से मिल रहे थे उससे साफ था की रणनीति पर गहराई से विचार हो रहा है। निश्चित रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने चरित्र के अनुरूप एक-एक पहलू समझने की कोशिश की होंगी। 
 
उदाहरण के लिए उनके कौन-कौन से ऐसे प्रमुख आतंकवादी अड्डे हैं, जिन्हें ध्वस्त करने से न केवल प्रतिशोध पूरा होगा, बल्कि पाकिस्तान की सेना और सत्ता को प्रत्युत्तर मिलेगा तथा सीमा पार से आतंकवादी गतिविधियां वर्षों तक संभव नहीं हो पाएगी। उन्हें कैसे ध्वस्त करेंगे, कैसे ध्वस्त करेंगे, कहां से करेंगे, उनका सीमा पर क्या असर होगा तथा पाकिस्तान किस तरह की प्रतिक्रिया दे सकता है और उसकी प्रतिक्रिया के प्रत्युत्तर में हमें किस तरह की तैयारी रखनी है ताकि उसमें भी हम उसे पस्त कर सकें। निश्चित रूप से सैन्य रणनीतिकारों ने अपनी पूरी स्थिति से अवगत कराते हुए उन्हें आश्वस्त किया होगा या फिर उनकी जो आवश्यकता होगी उसके बारे में बात की होगी। 
 
सरकार यानी राजनीतिक नेतृत्व की भूमिका साहसपूर्वक निर्णय करने के साथ सेना को करवाई और रणनीति की संपूर्ण स्वतंत्रता देना तथा अपने व्यवहार एवं कदमों से आश्वस्त करना कि कार्रवाई में किसी तरह की आवश्यकता में कमी नहीं होगी। कहने का तात्पर्य कि पाकिस्तान की सैन्य प्रतिक्रियाओं का उत्तर हमारी सेना दे रही थी। यह भी सच है कि टकराव शुरू होने के बाद विदेश के प्रमुख नेताओं ने राजनीतिक नेतृत्व से ही संपर्क किया होगा। सरकार की ओर से अमेरिकी उपराष्ट्रपति, विदेश मंत्री, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार आदि ने कब-कब किसे कॉल किया इसका भी विवरण देश के सामने रखा जा चुका है। 
 
कहीं से ऐसा न एक संकेत है और न कोई कारण दिखता है जिससे डोनाल्ड ट्रंप युद्ध रोकने का दबाव बनाएं और भारत उसे स्वीकार कर ले। उनके भी वक्तव्य में क्या है?.. हमने दोनों देशों को समझाया …….. उन्हें कहा कि आपके साथ पूरा ट्रेड करेंगे….. दोनों देश के नेताओं ने बुद्धिमता का परिचय दिया….हमने दो न्यूक्लियर यानी नाभिकीय संपन्न देशों के बीच नाभिकीय टकराव रोका आदि आदि। इसी में एक जगह उन्होंने किसी तटस्थ स्थान पर मध्यस्थता में बातचीत कराने का भी वक्तव्य दे दिया। 
 
यह बात अलग है कि अपनी मध्य पूर्व यात्रा के दौरान उन्होंने बोल दिया कि हमने कोई मध्यस्थता नहीं की। सामान्य तौर पर भी जिन्होंने भारत के वक्तव्यों पर ध्यान दिया होगा उन्हें स्पष्ट है कि हमारे स्टैंड में किंचित भी अस्पष्टता नहीं थी।

10 मई को ही भारत ने साफ कर दिया कि किसी तरह की आतंकवादी घटना युद्ध मानी जाएगी। दूसरे, प्रधानमंत्री मोदी ने राष्ट्र के नाम संबोधन, फिर आदमपुर और बीकानेर के भाषणों में एक-एक बिंदु रख दिया कि आतंकवाद और बातचीत, व्यापार और आतंकवाद नहीं चलेगा। यहां तक कि पानी और खून भी एक साथ नहीं बहेगा।

यह भी कहा कि अब अगर आतंकवादी घटना हुई तो सेना को सीधा नुकसान उठाना पड़ेगा। हम इसे केवल आतंकवादियों की नहीं मानकर पाकिस्तान सरकार और सेना की कार्रवाई मानेंगे और उसी प्रकार प्रत्युत्तर देंगे। सबसे बढ़कर पाकिस्तान से बातचीत होगी तो केवल पाक अधिकृत कश्मीर पर। 
 
बावजूद आप लगातार प्रश्न उठा रहे हैं तो इसे भारत या सेना का कतई समर्थन नहीं कहा जाएगा। यह सेना व देश दोनों का विरोध है। विडंबना देखिए कि अमेरिका भी नहीं कह रहा है कि हमने दबाव डालकर युद्धविराम कराया या रुकवाया, मध्यस्थता शब्द भी कहीं से नहीं आ रहा। अमेरिका गए प्रतिनिधिमंडल को भी ट्रंप प्रशासन के लोगों ने ऐसा नहीं कहा, हमारा दुश्मन और पाकिस्तान का समर्थन करने वाला चीन तक नहीं कह रहा कि भारत ने दबाव में युद्ध रोका और भारत-पाक के बीच बातचीत होगी। 
 
अब देश को पूछना चाहिए कि राहुल गांधी, खड़गे, जयराम रमेश, अखिलेश यादव आदि को यह जानकारी कहां से मिल गई? दूसरे, अगर हमारी सेना ने वीरतापूर्वक पाकिस्तान को पस्त किया तो फिर आप युद्ध में क्षति का प्रश्न किससे पूछ रहे हैं? जब आप किसी सैन्यबल वाले शत्रु देश को सबक सिखाने गए हैं तो माना गया होगा कि हमारी भी क्षति हो सकती है। भारी क्षति उठाकर भी सबक सिखाने की मानसिक तैयारी से ही कार्रवाई हुई होगी। 
 
युद्ध में क्षति हुई या विमान ही नष्ट हो गए तो इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं है। क्या आतंक विरोधी युद्ध में अमेरिका और नाटो को सैनिक क्षति नहीं हुई? क्या छोटे से गाजा के विरुद्ध कार्रवाई में इजराइल को कोई क्षति नहीं हुई? क्या यूक्रेन के साथ युद्ध में रुस को क्षति नहीं हुई ?

ऐसी कौन सी सैन्य करवाई है जिसमें क्षति नहीं होगी? क्या कांग्रेस के शासनकाल में 1971 की विजय में भी भारत को सैन्य सामग्रियों के अलावा जवानों के संदर्भ में क्षति नहीं हुई? क्या 1965 का युद्ध बिना क्षति के हुई? 1962 के भारत चीन युद्ध में तो ऐसी क्षति हुई जिसकी चर्चा तक में आज भी शर्म आती है।
 
आप अपनी संकुचित राजनीति के लिए नरेंद्र मोदी सरकार को पराजित या छोटा दिखाने के हल्ला बोल अभियान में सीधे-सीधे देश और सेना को छोटा दिखा रहे हैं। आपको अगर पाकिस्तान जैसे शत्रु से सुरक्षित होना है तो हर स्तर पर अपनी क्षति उठाने, बलिदान देने के लिए भी तैयार रहना होगा।

यह संभव नहीं कि आप कार्रवाई करेंगे और प्रत्युत्तर न मिले तथा कोई क्षति नहीं हो। मुख्य बात यह होती है कि हमारी क्षति और हमारे बलिदान का पूरा मूल्य हमें प्राप्त हुआ या नहीं। इस मायने में देखें तो जैसी कार्रवाई भारत ने की, जिस ढंग का प्रत्युत्तर दिया संपूर्ण विश्व में उसका लोहा माना गया और हमारे स्वदेशी तकनीक से निर्मित हथियारों की मांग पूरी दुनिया में बढ़ी है।
 
(इस लेख में व्यक्त विचार/विश्लेषण लेखक के निजी हैं। 'वेबदुनिया' इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेती है।)

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

आप कौन? : लिटरेचर फेस्टिवल की इनसाइड स्टोरी