बलूचिस्तान की एक खातून कराची में एक बेनाम कब्र के सामने बैठकर रो रही है,उसे लगता है की उसके गुमशुदा भाई को पाकिस्तानी सुरक्षा बलों ने गोली मारकर यहीं दफन कर रखा है। बलूच नागरिकों को मनमाने ढंग से हिरासत में लेकर गायब कर देने को लेकर विश्व भर में बदनाम पाकिस्तान की सेना अब बलूचों की लाशों को भी उनके परिजनों को सौंपने को तैयार नहीं है। बलूचिस्तान के युवाओं को लड़ाका बताकर गोली मारने की घटनाओं और उनकी लाशों को बेनाम सामूहिक कब्रों में दफनाने की घटनाओं में व्यापक वृद्धि हो रही है। हजारों महिलाओं के हाथों में पोस्टर होते है जिससे पता चलता है की उनके अपने सालों से गायब है और इसकी परवाह न तो पाकिस्तान की सरकार को है और न ही न्यायपालिका इस पर संज्ञान लेती है। इस साल 25 जनवरी को बलूच याकजेहती समिति ने बलूच लोगों के खिलाफ नरसंहार अभियान के शिकार हुए लोगों की याद में बलूच नरसंहार स्मृति दिवस मनाया था।
बलूच राष्ट्रवाद की मुखर समर्थक मेहरंग बलोच जेल में है। पाकिस्तान की सेना ने उन्हें जिंदा रहने भी दिया है या हजारों बलूचों की तरह उन्हें मार दिया गया है,लाखों लोग आशंकित है। बलूचिस्तान की आज़ादी के लिए नारा बुलंद करने वाले लोगों को पाकिस्तान की सेना पहले गायब करती है और फिर उनका वर्षों तक पता नहीं चलता। ऐसे सैकड़ों मामले विभिन्न अदालतों में विचाराधीन है। करीब डेढ़ दशक पहले अब्दुल गफ्फार लांगोव को पाकिस्तानी सुरक्षा बलों ने उठा लिया था,दो साल बाद वे मुर्दा मिलें,उनकी शरीर पर अत्याचारों के निशान थे। अब्दुल सामाजिक कार्यकर्ता महरंग बलोच के पिता थे। पाकिस्तान में जबरन गायब होने की घटनाएं एक गंभीर समस्या हैं। पाकिस्तान के दो अशांत प्रान्तों खैबर पख्तूनख्वा और बलूचिस्तान प्रांतों में ऐसे हजारों मामलें है। ह्यूमन राइट वॉच द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले डेढ़ दशक में ऐसे हजारों मामलों का उल्लेख किया गया है,पाकिस्तान कमीशन ऑफ़ इंक्वायरी ऑन एनफोर्स्ड डिसअपीयरेंस में दर्ज दस हजार से ज्यादा मामले इसकी पुष्टि करते है।
बलूच बलूचिस्तान को एक राष्ट्र और एक सांस्कृतिक राजनीतिक समुदाय के रूप में भी परिभाषित करते है जो अपनी स्वायत्तता,एकता और विशेष हितों के प्रति बहुत सचेत है। भारत के विभाजन के बाद से ही बलूचिस्तान में एक राष्ट्रवादी आंदोलन चल रहा है। बलूचिस्तान के लोगों का मानना है कि भारत पाकिस्तान बंटवारे के व़क्त उन्हें ज़बरदस्ती पाकिस्तान में शामिल कर लिया गया,जबकि वो ख़ुद को एक आज़ाद मुल्क़ के तौर पर देखना चाहते थे। बलूच निवासी खुद को पाक के अधीन नहीं रखना चाहते। बलोच राष्ट्रवाद उनके अलग देश बनाने की चाह का नतीज़ा है।
मानवाधिकार घोषणापत्र के अनुच्छेद 9 और 10 के अनुसार,किसी भी व्यक्ति को मनमाने ढंग से गिरफ्तार या हिरासत में नहीं लिया जाना चाहिए, और गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को तुरंत अपनी गिरफ्तारी के कारणों और आरोपों से अवगत कराया जाना चाहिए। साथ ही, हर व्यक्ति को उचित समय में सुनवाई और रिहाई का अधिकार है.अनुबंध के अनुच्छेद 1 के तहत, राज्य आत्मनिर्णय के अधिकार को बढ़ावा देने और उस अधिकार का सम्मान करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। यह लोगों के अपने प्राकृतिक संपदा और संसाधनों का स्वतंत्र रूप से स्वामित्व, व्यापार और निपटान करने के अधिकारों को भी मान्यता देता है। इस अनुबंध पर पाकिस्तान ने भी हस्ताक्षर किए है। यह अनुबंध मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा में सूचीबद्ध नागरिक और राजनीतिक अधिकारों और स्वतंत्रताओं को और अधिक विस्तार से बताता है। जबरन गायब किए गए लोगों की संख्या अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत पाकिस्तान की सरकार अपने दायित्वों का उल्लंघन करती है। ऐसे मामलों में संवैधानिक गारंटी के बावजूद,पाकिस्तान की न्यायपालिका अक्सर सुरक्षा एजेंसियों को जवाबदेह ठहराने में असमर्थ रही है। न्यायपालिका पर सेना का गहरा दबाव होता है और न्यायाधीशों से स्वतंत्र और न्याय संगत फैसलों की अपेक्षा भी नहीं की जा सकती।
बलूचिस्तान की ईरान और तालिबान के नियंत्रण वाले अफ़ग़ानिस्तान के साथ एक अस्थिर सीमा है। अरब सागर का एक विशाल समुद्र तट भी इसके हिस्से में है। बलूचिस्तान गैस,खनिजों और अन्य प्राकृतिक संसाधनों के मामले में पाकिस्तान के सबसे अमीर प्रांत के रूप में जाना जाता है। चीन की ओर से वित्त पोषित अरबों की परियोजना चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (सीपीईसी) का एक बड़ा हिस्सा यहीं है। पाकिस्तान की सेना और सरकार चीन और अमेरिका से समझौते करके बलूचिस्तान के प्राकृतिक संसाधनों को उनके हवाले कर रही है,जिससे ये देश,विदेशों से भी बलूचिस्तान की आवाजों को दबाने में उसकी मदद करें। हालांकि पाकिस्तानी सुरक्षाबलों के असहनीय अत्याचारों के बढ़ने से बलूचिस्तान में आज़ादी की मांग और ज्यादा जोर पकड़ रही है। दुनिया में यह एक ऐसा अनोखा आंदोलन बन गया है जहां पुरुषों से कहीं ज्यादा संख्या में महिलाओं ने आज़ाद देश के लिए हड़तालें और प्रदर्शन करने का जिम्मा उठा रखा है। बलूचिस्तान के तट पर पाकिस्तान के तीन नौसैनिक ठिकाने ओरमारा,पसनी और ग्वादर हैं। हर पांच किलोमीटर पर सैन्य चौकियां है लेकिन फिर भी बेखौफ बलूचिस्तानी महिलाएं असहनीय अत्याचार झेल कर भी हार मानने को तैयार नहीं है।