राजवाड़ा टू रेसीडेंसी
हर नेता का काम करने का अपना एक अलग अंदाज होता है और वही उसे चर्चा में ला देता है। इन दिनों भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष विष्णुदत्त शर्मा जिस अंदाज में सक्रिय हैं, वह कुछ-कुछ भाजपा में प्रभात झा के दौर का एहसास करवा रहा है। पिछले 15 सालों में भाजपा के जितने भी प्रदेश अध्यक्ष रहे हैं, उनमें से झा ने ही मैदान में सबसे ज्यादा सक्रियता दिखाई थी। हालांकि इसका नुकसान भी उन्हें बाद में उठाना पड़ा। शर्मा भी इन दिनों प्रदेश भाजपा मुख्यालय में बैठने के बजाए मैदान में ज्यादा सक्रियता दिखा रहे हैं और लंबे अंतराल के बाद भाजपा में अध्यक्ष और कार्यकर्ताओं के बीच सीधा संवाद स्थापित हो रहा है।
केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल की मध्यप्रदेश में बढी सक्रियता के पीछे कुछ-न-कुछ तो राज है। पटेल इन दिनों अकसर मध्यप्रदेश में देखे जा रहे हैं और मंत्रियों, सांसदों और विधायकों से मुलाकात के साथ-साथ कार्यक्रमों में भी खूब शिरकत कर रहे हैं। मध्यप्रदेश में पटेल का अपना एक नेटवर्क है और इस नेटवर्क से जुड़े लोग भी अपने नेता की सक्रियता के बाद बेहद सक्रिय हैं। सोशल मीडिया पर भी पटेल की असरकारक मौजूदगी नजर आती है और मेल-मुलाकात का उनका जो अंदाज है, वह भी उन्हें पार्टी के दूसरे नेताओं से एक अलग कतार में ला खड़ा करता है। देखते हैं आगे क्या होता है, क्योंकि जहां आग लगती है वहीं से तो धुआं निकलता नजर आता है।
मंत्री विजय शाह गाहे-बगाहे सुर्खियों में आ ही जाते हैं। विवादों से भी उनका पुराना नाता रहा है। भाजपा में उनके 'शुभचिंतकों' की भी कमी नहीं है। पिछले दिनों इंदौर के एक स्पा में विदेशी युवतियों के साथ जो लोग पकड़े गए, उनमें से 3 शाह के विधानसभा क्षेत्र से वास्ता रखते थे। जैसे ही इन लोगों के नाम सामने आए, पार्टी के ही लोगों ने शाह के साथ इनके फोटो वायरल कर दिए। नतीजा यह हुआ कि अगले दिन चाहे सोशल मीडिया हो या फिर प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, हर जगह छापे की खबर के साथ शाह के इन अय्याश नेताओं के साथ फोटो ही नजर आए।
कमलनाथ प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रहेंगे, नेता प्रतिपक्ष का पद छोड़ेंगे या दोनों पदों पर बने रहेंगे, यह तो अब कांग्रेस के नेताओं और कार्यकर्ताओं के बीच चर्चा का विषय ही नहीं रहा है। अब चर्चा का मुद्दा तो यह है कि के. वेणुगोपाल और मुकुल वासनिक जैसे कांग्रेस के दिग्गज नेता भी उनके सामने नतमस्तक नजर आ रहे हैं। इसका कारण यह है कि मध्यप्रदेश में संगठन से जुड़े कुछ मुद्दों पर इन दोनों नेताओं की सिफारिशों को जिस अंदाज में कमलनाथ ने नजरअंदाज किया, वह कांग्रेस की राजनीति में फिलहाल उनके बढ़े हुए कद का अहसास करवा रहा है। दिल्ली के रुख से यह साफ हो गया है कि अभी तो मध्यप्रदेश कांग्रेस में वही होगा जो कमलनाथ चाहेंगे।
पिछले दिनों इंदौर में हुए आदिवासी युवक-युवतियों के कार्यक्रम में जिस तरह की स्थिति का सामना मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को करना पड़ा, उसके बाद इंदौर से ही इस वर्ग के युवाओं की परेशानियों को समझने का काम शुरू हुआ है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रांत सह संघचालक के दायित्व से मुक्त होने के बाद इन दिनों भाजपा में बेहद सक्रिय डॉ. निशांत खरे इस मामले में अहम भूमिका निभा रहे हैं। पिछले दिनों में इंदौर कलेक्टर मनीष सिंह के साथ आदिवासी छात्रावासों में पहुंचे और वहां रह रहे युवाओं से सीधा संवाद किया और उनकी परेशानियों को जाना। इसका नतीजा आने वाले समय में देखने को मिल सकता है। वैसे जिस कार्यक्रम में मुख्यमंत्री को अप्रिय स्थितियों का सामना करना पड़ा, उसकी कमान भी डॉक्टर खरे के हाथों में ही थी।
कांग्रेस के दिग्गज नेता कांतिलाल भूरिया और जोबट से विधानसभा उपचुनाव हारने के बाद भूरिया के खिलाफ बेहद मुखर हुए महेश पटेल के बीच जो जंग चल रही है, उसका पहला नतीजा तो कांतिलाल भूरिया के पक्ष में गया है। उपचुनाव हारने के बाद पटेल ने आलीराजपुर जिला कांग्रेस अध्यक्ष पद से जो इस्तीफा दिया था, वह ताजा जंग में पार्टी प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ ने मंजूर कर लिया है। लेकिन इस जंग का दूरगामी नतीजा बड़े भूरिया के लिए नुकसानदायक दिख रहा है। पटेल का इस्तीफा झाबुआ-रतलाम संसदीय क्षेत्र से एक बार फिर दिल्ली पहुंचने का सपना संजोए बैठे भूरिया के लिए 2024 में बहुत घाटे का सौदा साबित होने वाला है।
इंदौर से 2 बार विधायक रह लिए सत्यनारायण पटेल कांग्रेस का राष्ट्रीय सचिव और उत्तरप्रदेश का सह प्रभारी बनाए जाने के बाद से ही वहां प्रियंका गांधी के खास सिपहसालारों में से एक हैं। उत्तरप्रदेश में महिलाओं और युवाओं को साधने के लिए कांग्रेस जिस अंदाज में काम कर रही है, उससे वहां पार्टी के पहले से कुछ अच्छा होने की स्थिति बन रही है। नतीजा तो वक्त पर ही पता चलेगा लेकिन फिलहाल तो पटेल उन नेताओं की कतार में आ खड़े हुए हैं जिनका प्रियंका और राहुल गांधी के साथ सीधा संवाद हो जाता है।
पुलिस मुख्यालय के साथ ही वल्लभ भवन के गलियारों में भी यह चर्चा चल पड़ी है कि मध्यप्रदेश का अगला डीजीपी कौन होगा? मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के रुख को लेकर कुछ भी अंदाज इस मामले में लगाना बेहद मुश्किल है। बड़े साहब यानी मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैंस की पसंद माने जा रहे राजीव टंडन तो तकनीकी बाध्यता के कारण इस पद पर काबिज हो नहीं पाएंगे। पंजाब में प्रधानमंत्री के साथ हुए ताजा घटनाक्रम के बाद दिल्ली में कैबिनेट सचिव सुरक्षा के पद पर पदस्थ सुधीर सक्सेना के इस पद पर काबिज होने की संभावना सबसे ज्यादा मानी जा रही है। वे दिल्ली दरबार के बेहद भरोसेमंद अफसर हैं और इसका फायदा भी उन्हें मिलेगा।
चलते-चलते
मध्यप्रदेश की ताकतवर आईएएस अफसर रश्मि शमी के भाई असीम अरुण कानपुर के पुलिस कमिश्नर का पद छोड़कर कन्नौज जिले की सदर सीट से विधानसभा का चुनाव लड़ने जा रहे हैं। असीम अरुण के पिता श्री राम अरुण उत्तरप्रदेश के डीजीपी भी रहे हैं।
पुछल्ला
यह पता करना जरूरी है कि इंदौर में कांग्रेस के 2 विधायक संजय शुक्ला और विशाल पटेल अचानक शहर कांग्रेस अध्यक्ष विनय बाकलीवाल से क्यों दूरी बनाने लगे हैं? दोनों नाराज विधायकों को शहर महिला कांग्रेस के अध्यक्ष शशि यादव का भी साथ मिल रहा है।