पर्यटन को वोट बैंक की राजनीति से जोड़ना समाज के लिए ठीक नहीं

Webdunia
- महेश तिवारी
 
उत्तर प्रदेश की राजनीति में विगत दिनों से लगातार उठापटक का दौर जारी है। चुनाव में राजनीतिक पार्टियां सत्ता हथियाने के पसोपेश में लगातार धर्म और जाति के आधार पर वहां की आम जनता को गुमराह करने में लगी हैं। ताजा उदाहरण के तौर पर भाजपा और मौजूदा सपा सरकार राम मंदिर के नाम पर अपने हितों को पूरा करने की फिराक में नजर आ रही हैं। विपक्षी पार्टियों बसपा, रालोद आदि के विरोध के बाद भी यूपी में वर्तमान में मंदिर मुद्दे को भुनाने में भाजपा के अलावा सपा भी कूूद पड़ी है। 
 
ऐसा वाकया चुनाव के पहले नजर आ रहा है। वोट बैंक की राजनीति साधने के लिए भाजपा अपने हिन्दू वोटरों को अपने खेमे में करने के लिए एक बार पुनः हर चुनाव की तरह राम का इस्तेमाल करती नजर आ रही है। यूपी में वर्तमान में शिक्षा, पानी, बिजली जैसी मूलभूत समस्याएं मुंह फैलाए नजर आ रही हैं, लेकिन भाजपा अपने वोट बैंक को मजबूत करने के लिए पर्यटन को बढ़ावा देने के नाम पर अयोध्या को विकसित करने और रामलला का नाम लेकर अपना बेड़ा पार करवाने की फिराक में भरसक कोशिश में दिख रही है। मोदी द्वारा लखनऊ में जाकर समान नागरिक कानून और जय श्रीराम का मुद्दा उठाना भी मुस्लिम वोटों तक अपनी पहुंच स्थापित करना कहा जा सकता है। जिस तरह मोदी फैक्टर ने लोकसभा में अपना जादू बिखेरा था, उसी को दोहराने के लिए भाजपा अपने तरकस से सारे बाण छोड़ने की फिराक में दिख रही है। मोदी ने दशहरा के मौके पर बुर्के और तीन तलाक का जिक्र करके अपने इरादे जाहिर कर दिए हैं। 
                                                          
उत्तर प्रदेश बीते पांच वर्षों में सबसे ज्यादा दंगा पीड़ित प्रदेश रहा है। जिस ओर किसी भी राजनीतिक पार्टी का ध्यान नहीं जा रहा है। प्रदेश की जनता मुजफ्फरनगर जैसे दंगे से पीड़ित है और प्रदेश का माहौल भ्रष्ट प्रशासनिक व्यवस्था से लाचार दिखता है, लेकिन कोई भी पार्टी जनता की ओर देखती नहीं नजर आ रही है। प्रदेश में स्वास्थ्य व्यवस्थाओं का हाल भी खस्ता है। प्रदेश में 'पूरा पोषण, पूरा प्यार हर बच्चे का है अधिकार' का सरकारी नारा भी कुपोषण की समस्या से पीछा नहीं छुड़ा पा रहा है। हर साल प्रदेश में दो लाख 32 हजार 250 बच्चे मौत की गोद में समा जाते हैं। 
 
सरकारी जिला अस्पताल और सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र की रिपोर्ट के अनुसार, राज्य के 12 लाख 60 हजार अति कुपोषित बच्चे हैं, जबकि 35 लाख बच्चे पौष्टिक आहार न मिलने से सूखा रोग से पीड़ित हैं। जो राज्य में चल रही 'मिड डे मिल' योजना के कार्यान्‍वहन पर सवाल खड़े करते हैं। प्रदेश में महिला शिक्षा की दर भी कम है। इस ओर प्रदेश की राजनीतिक पार्टियों को ध्यान देना होगा। प्रदेश की राजनीति के लिए मंदिर से पहले सामाजिक मुद्दे को उठाना होगा। प्रदेश आज अनेक समस्याओं से पीड़ित है।
                                      
प्रदेश के बुंदेलखंड जैसे क्षेत्र सूखे की समस्या से बेहाल हैं। किसानों को उनका पूरा हक तक नहीं मिल पाता है। किसानों की कर्जमाफी के बड़े-बड़े दावे के बाद भी किसान की आर्थिक स्थिति बदरंग नजर आती है और प्रदेश में मंदिर के मुद्दे को लेकर सियासत की जा रही है। पर्यटन को बढ़ावा देने के नाम पर मंदिर का मुद्दा उठाकर सियासी फायदे का जुगाड़ किया जा रहा है। मंदिर मुद्दा 1992 से यूपी विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव के वक्त वोटों के ध्रुवीकरण के लिए उठाया जाता है, लेकिन चुनाव के बाद यह मुद्दा ठंडे बस्ते में बंद हो जाता है। इस बार यह मुद्दा कुछ व्यापक पैमाने पर पर्यटन के विकास के रूप में भाजपा द्वारा उठाया जा रहा है। 
 
पर्यटन मंत्री द्वारा अयोध्या में पर्यटन के विकास के नाम पर लोगों को साधने की कोशिश की जा रही है, क्योंकि भाजपा की स्थिति वर्तमान समय में ठीक नजर नहीं आ रही है। वोटों के ध्रुवीकरण के लिए भाजपा की यह नीति कही जा सकती है। जब वर्तमान समय में यूपी देशी पर्यटन के मामले में दूसरे और विदेशी पर्यटकों के आने के मामले में देश में तीसरे स्थान पर है, फिर भाजपा की पर्यटन को बढ़ावा देने की नीति भलीभांति वोट बैंक की राजनीति से प्रेरित नजर आ रही है। देश के शीर्ष दस राज्यों को निकाल दें, तो उत्तर प्रदेश शेष उन्नीस राज्यों के बराबर की हिस्सेदारी पर्यटन के क्षेत्र में रखता है। फिर भाजपा की पर्यटन को बढ़ावा देने की नीति और नियत  साफ नजर आती है। 
                          
आज भी प्रदेश में बेरोजगारी, शराबखोरी और बीमारियों से निपटने के लिए एक रूपरेखा तैयार करनी होगी। समाज में अभी भी मूलभूत समस्याएं व्याप्त हैं, जिसे एक प्रदेश के लिए ठीक नहीं कहा जा सकता है। देश का और समाज के कल्याण के लिए धर्म और जातिगत राजनीति से ऊपर उठना होगा। क्षेत्र का विकास और लोगों को विकास पथ की ओर ले जाना सरकारी तंत्र का दायित्व होना चाहिए, बात की जाए तो उत्तर प्रदेश में प्रशासनिक ढांचा अपना आधार खोता जा रहा है। 
 
प्रशासनिक विफलता ऐसी कि आम लोगों की जिंदगी की कोई कीमत नहीं रह गई है। राजनीतिक लोगों का प्रशासन तंत्र पर ही बोलबाला दिखाई देता है। हत्या, लूट, बलात्कार और सांप्रदायिक दंगे आम बात होकर रह गए हैं प्रदेश के भीतर। प्रशासनिक अमला इन पर काबू पाने में नाकाम सा लगता है और प्रदेश सरकार भी सरकारी व्यवस्था में सुधार की ओर ध्यान नहीं दे पा रहीं है। प्रशासनिक तंत्र के लोग मथुरा जैसे स्थान पर हो रहे अभ्यास सत्र में ठीक से गन लोड तक नहीं कर पाते हैं,  जो बातें उन्हें ट्रेनिंग के समय बताई जाती है।
           
भाजपा को प्रदेश में अपनी राजनीति चमकाने के लिए मंदिर के मुद्दे को छोड़कर प्रदेश की जनता के हित के मुद्दे को उठाना होगा। प्रदेश में सामाजिक मुद्दे को उठाकर आगे आना होगा, तभी प्रदेश और भाजपा का भी कल्याण हो सकेगा।

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