पिता पर मार्मिक कविता : मेरे साथ रहे तुम

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अमिय शुक्ल
 
परछाई की तरह मेरे साथ रहे तुम।  
मेरे हंसने पर हंसे मेरे रोने पर रोए तुम।  
अजीब सी सौंधी खुशबु थी तुम्हारी छुवन में 
कभी सख्त कभी नरम हुए तुम।  
जब भी डरे हुए होठों  से आवाज दी मैंने 
आकर हर परेशानी में मेरे से भी पहले खड़े हुए तुम।  
मेरे जीवन में तुम क्या थे, क्या हो 
लफ्जो में बयां करना मुनासिब नहीं 
तुम्हें आग के हवाले कर 
खुद को मैं जला बैठा
अब जो शख्स मुझमें है जी रहा 
वह और कोई नहीं वह हो तुम।   
 
जिस दिन मैंने तुम्हें कन्धा दिया 
अचानक एक दर्द उठा था मेरे सीने में 
एहसास हुआ कि जिम्मेदारी क्या होती है 
कंपकं पाते हुए हाथों से जब मैं अग्नि दे रहा था 
कैसे बताऊं कि मेरी गीली धुंधली आंखों ने क्या-क्या मंजर देखा था 
पर हाथों में एक अजीब सी ताकत भी मिली थी उस समय 
लगा मुस्काते हुए मेरे हाथों को थाम रहे हो तुम।  
 
फकीरों को राजा और राजाओं को फकीर होने का एहसास 
दिलाने का गुर तुम में ही था 
इन्हीं अदाओ के कारण आज भी 
हर दिल में तामीर हुए हो तुम। 
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