अदाणी समूह को लेकर राजनीति में मचा हंगामा और सोशल मीडिया पर उठा तूफान आश्चर्यजनक नहीं है। देश में राजनीति को लेकर जिस स्तर का तीखा शत्रुतापूर्ण विभाजन है उसमें हमने लगातार ऐसे मामलों पर बवंडर और हंगामे देखे हैं, जिनकी आवश्यकता नहीं थी।
कहने का तात्पर्य नहीं कि विपक्षी दलों या मोदी सरकार व भाजपा विरोधियों को अमेरिकी संस्था हिंडेनबर्ग रिपोर्ट आने के बाद सच्चाई जानने के लिए प्रश्न नहीं उठाना चाहिए। पर कोई विदेशी संस्था रिपोर्ट दे और हम ऐसी स्थिति पैदा कर दें जिससे लगे कि भारत की अर्थव्यवस्था हिल गई है यह परिपक्व व्यवहार नहीं माना जा सकता। लंबे समय से कांग्रेस सहित कुछ विपक्षी दलों और नेताओं ने ऐसी तस्वीर बनाने की कोशिश की है मानो अडाणी समूह और उनके अध्यक्ष गौतम अडाणी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार हर सीमाओं को लांघकर सरकारी संस्थाओं के संरक्षण में आगे बढ़ा रही है।
राहुल गांधी गौतम अडाणी का नाम ले- लेकर पिछले कई सालों से हमले कर रहे हैं। विपक्ष कह रहा है कि भारतीय जीवन बीमा निगम से लेकर बैंकों में आम आदमी का पैसा है और अडाणी के कारोबार डूबने के साथ उन सबकी जिंदगी की कमाई लूट जाएगी।
हम किसी कॉर्पोरेट घराना या कंपनी समूह को पाक साफ होने का प्रमाण पत्र नहीं दे सकते, पर अदाणी कंपनियों के शेयर कीमतों में आई जबरदस्त गिरावट के साथ ही अलग-अलग संस्थाओं ने अपना वक्तव्य दे दिया है। भारतीय रिजर्व बैंक ने स्पष्ट कहा है कि एक नियामक के तौर पर वह वित्तीय स्थिरता के लिए पैनी नजर रखता है। आरबीआई के अनुसार बैंकिंग व्यवस्था मजबूत और स्थिर है। आरबीआई को यह स्पष्टीकरण इस नाते देना पड़ा, क्योंकि विपक्ष के माहौल से ऐसी तस्वीर बन रही है कि भारतीय मुद्रा बाजार संकट में आ गया है। जब अपने देश में हम शुद्ध व्यावसायिक व आर्थिक मुद्दों तथा किसी विदेशी संस्था या देसी संस्था द्वारा लगाए गए आरोपों में तथ्यों की जांच किए बगैर हंगामा करते हैं तो उसका संदेश दुनिया भर में नकारात्मक जाता है एवं निवेशकों के अंदर आशंका पैदा होती है। इस कारण रिजर्व बैंक द्वारा स्पष्टीकरण अपरिहार्य हो गया था।
अडानी समूह को कर्ज देने वाले बैंक ऑफ बड़ौदा और स्टेट बैंक दोनों ने स्पष्ट किया था कि उन्होंने नियमों के मुताबिक कर्ज दिया और अतिरिक्त कर्ज का कोई प्रस्ताव नहीं है। भारतीय जीवन बीमा निगम ने भी स्पष्ट किया कि उन्होंने केवल ₹36254 रुपया अदानी समूह के शेयर में लगाया है और अभी भी मुनाफे की स्थिति में है। यह भी साफ है कि अदाणी समूह की कुल परिसंपत्ति उसको मिले कर्ज से ज्यादा मूल्य के हैं। बावजूद अगर विपक्ष और विरोधी मानने के लिए तैयार नहीं तो इसे क्या कहा जाए। रिपोर्ट के बाद अनेक प्रकार का अफवाह भी अलग-अलग माध्यमों के इकोसिस्टम से दुनिया में प्रसारित हो रहा है। साफ लग रहा है कि योजनाबद्ध तरीके से इकोसिस्टम काम कर रहा है। एक दिन में लगभग ढाई अरब शेयर किसी समूह का बेच दिया जाना सामान्य नहीं हो सकता।
हिंडनबर्ग समाजसेवी संस्था नहीं है कि भारत और आम निवेशकों के हित के लिए रिपोर्ट जारी करेगा। वह स्वयं मानता है कि शार्ट सेलर है और अडाणी समूह के शेयरों के गिरने से उसे लाभ होगा। हिंडनबर्ग के आरोपों में से चार को मुख्य मानकर उल्लिखित किया जा सकता है। एक, अदाणी समूह पर कर्ज बहुत ज्यादा है और उसका मूल्यांकन उसकी वित्तीय हैसियत से ज्यादा किया गया है। दो, अदाणी समूह लिक्विडिटी यानी तरलता जोखिम में है क्योंकि उसके पास लघुकालीन देनदारियां बहुत ज्यादा है। तीन, अडाणी समूह ने टैक्स हैवन देशों में शेल कंपनियां बनाकर अपनी कंपनियों में निवेश कराया और भारी कमाई की। चार, अदाणी समूह का ऑडिट लगातार संदेह के घेरे में है। इस संबंध में तर्क देते हुए कहा है कि 8 वर्ष में कंपनी ने 5 चीफ फाइनेंशियल ऑफिसर बदले। यह उसके खाता बही से संबंधित गड़बड़ी का संकेत देता है।
अदाणी समूह की कंपनियों के ऑडिटरों पर भी उसने संदेह व्यक्त किया है। हमारे यहां रामचरितमानस, भगवद्गीता, वेद पुराण सब पर प्रश्न उठ सकता है, लेकिन ऐसा लगता है जैसे हिंडेनबर्ग रिपोर्ट सबसे ऊपर है जो प्रश्नों और संदेहों से परे है। अडाणी समूह ने 413 पृष्ठों में हिंडनबर्ग के आरोपों का उत्तर दिया, जिसे उसने खारिज किया है। उसने स्वीकार कर लिया तो स्वयं का रिपोर्ट ही गलत साबित हो जाएगा।
हम अपने देश के कारोबारी, संस्थाओं आदि पर विश्वास न कर विदेशी संस्था को परम विश्वासी मान रहे हैं। विपक्षी नेताओं को विश्व में कॉर्पोरेट संघर्ष, शेयर बाजार, मुद्रा बाजार, ऑडिट आदि के बारे में मान्य जानकारी लेने की कोशिश करनी चाहिए थी। जब भी किसी कंपनी पर ऐसी स्थिति पैदा होती है ऑडिटर के जिम्मे आता है कि वह बही खाते पर स्पष्टीकरण दे। हिंडनबर्ग ने ऑडिटरों को ही संदेह के घेरे में ला दिया है। अमेरिका और कुछ दूसरे देशों में ऐसी संस्थाएं हैं, जो कंपनियों का ऑडिट करती हैं, रेटिंग जारी करती हैं और इन पर एकाधिकार मानती हैं।
व्यवसाय की नई ऑडिट कंपनियों को वो संदेह के घेरे में लाती हैं, क्योंकि इससे उनके व्यवसाय पर असर पड़ता है। भारत इस समय ऐसी स्थिति में है जहां उसे कमजोर करने, दबाव में लाने, उसके शेयर मार्केट, वित्तीय और आर्थिक हैसियत को चोट पहुंचाने के साथ विश्व भर में बढ़ती उसकी कंपनियों की साख गिराने के लिए अनेक प्रकार के षड्यंत्र और कुचेष्टायें हो रही हैं। चीन के साथ हमारा राजनीतिक और सामरिक ही नहीं आर्थिक एवं व्यापारिक टकराव भी हैं। चीन के बेल्ट एवं रोड इनीशिएटिव के विरुद्ध भारत कई देशों के साथ मिलकर काम कर रहा है। इसी में श्रीलंका के अंदर अडाणी ने वैसे बंदरगाह, ऊर्जा और अन्य निर्माण की परियोजनायें कई गुना ज्यादा निविदा भर कर लिया जिसे चीन लेना चाहता था। 2022 के आरंभ में ही अडाणी ने पुनेरिन और मन्नार में 500 मेगावाट के अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं ली। चीन के दूतावास ने बयान जारी कर कहा कि वह सौर ऊर्जा परियोजना से बाहर हो गया है।
पूर्व राजपक्षे प्रशासन ने चीन के साथ सौर ऊर्जा परियोजना को रद्द कर दिया था। इसी तरह इजराइल का हाईफा बंदरगाह चीन लेना चाहता था जिसे अदाणी ने लिया है। अडाणी समूह आईफा में रियल स्टेट परियोजना विकसित करने के साथ एआई प्रयोगशाला स्थापित कर रहा है जो भारत और अमेरिका में स्थित उसकी एआई प्रयोगशालाओं के साथ जुड़ा होगा। पिछले 6 साल में अदाणी समूह ने वहां एल्बिट सिस्टम्स, इजरायल वेपन सिस्टम्स, और इजरायल इनोवेशन जैसी कंपनियों के साथ महत्वपूर्ण साझेदारियां की है।
अडाणी ने पिछले सितंबर में सिंगापुर के एक सम्मेलन में चीन पर सीधा हमला करते हुए कहा कि बेल्ट और रोड इनीशिएटिव का विरोध हो रहा है और चीन अलग-थलग पड़ेगा। कल्पना कर सकते हैं कि अडाणी के विरुद्ध चीन और उसके समर्थक देशों के सत्ता प्रतिष्ठान में कैसा वातावरण रहा होगा।
संपूर्ण दुनिया की अर्थव्यवस्था कांप रही है उसमें विश्व में सबसे तेज गति का सेहरा भारत के सिर है। यह ब्रिटेन को पछाड़कर पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है। अदाणी समूह भारत का सबसे तेजी से बढ़ता हुआ और विश्व में अपना विस्तार करने वाला समूह रहा है । इसलिए इस बात को स्वीकार करने का ठोस आधार है कि सुनियोजित तरीके से भारत को धक्का पहुंचाने की कोशिश हुई है। आम माहौल ऐसा बनाया गया मानो नरेंद्र मोदी के सबसे निकटतम और सबसे कृपा प्राप्त व्यक्ति अदाणी और उनका समूह ही हो।
जो व्यक्ति राष्ट्र के लिए अपनी पत्नी, मां, पिता, भाई सबका परित्याग कर सकता है वह किसी एक औद्योगिक समूह को गलत तरीके से सहयोग करेगा यह कैसे माना जा सकता है? समस्या यह है कि नरेंद्र मोदी और भाजपा के विरुद्ध उच्चतम सीमा तक नफरत पालने और सत्ता से उन्हें हटाने के लिए कुछ भी कर गुजरने वाले लोगों को सच्चाई से लेना-देना नहीं। वो नहीं सोचते हैं कि अगर जीवन बीमा निगम को समस्या हो तो वह अदाणी समूह का शेयर बेचकर हट सकता है। वह ऐसा नहीं कर रहा है तो इसके पीछे उसके वित्तीय विशेषज्ञों का परामर्श होगा। यही बात अदाणी समूह में पैसा लगाने वाली अन्य वित्तीय संस्थाओं पर भी लागू होती है।
अच्छा होता कि विरोधी भारत को केंद्र में रखकर चुनौतियों एवं विरोधियों के षड्यंत्र को समझने की कोशिश करते। किंतु वे करेंगे नहीं। इसलिए रास्ता यही है कि देश बनाए झूठे माहौल से अप्रभावित रहे, सरकार तथा वित्तीय संस्थाएं दबाव में न आएं। अदाणी समूह ने धोखाधड़ी की है तो हमारे देश की संस्थाओं के पास इतनी क्षमता है कि वे उसे पकड़ लें। यह समय एकजुट होकर भारत विरोधियों को प्रत्युत्तर देने का है।
नोट : आलेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी अनुभव हैं, वेबदुनिया का आलेख में व्यक्त विचारों से सरोकार नहीं है।
edited by navin rangiyal