रातों-रात बदला भगवान, उम्मीदें दुर्घटनाग्रस्त

प्रीति सोनी
मामला ताजा है लेकिन तरोताजा नहीं, मामला कुछ ऐसा है जिसकी गूंज लंबे समय तक चलेगी और मामला ऐसा है कि परेशानी के बावजूद विरोध नहीं है, क्योंकि...मामला पैसों का है। आपके पैसों का, मेरे पैसों का, हमारे पैसों का...गरीब के पैसों का, उससे भी ज्यादा अमीर के पैसों का और दिलचस्प तरीके से महिलाओं के पैसों का। मामला, उस कृत्र‍िम भगवान का है जिसके आगे किसी की नहीं चलती। 


500 और 1000 रूपए के नोट यानि करंसी क्या चेंज हुई, हड़कंप सा मच गया...। काले धन को सफेद कैसे किया जाए, गूगल पर ट्रेंड करने लगा, इससे कालेधन के रखवालोंं की उपस्थिति भी पुख्ता हो गई। अब वे लग गए धन को सफेद बनानेे की कोशि‍शों में, और सफेद धन वाले बेचारे बैंक की लाइनों में। नोटों की गर्मी जरा ठंडी सी पड़ गईजनाब नोट खुद ही ठंडे पड़ गए
 
गरीब के पास ज्यादा पैसे हैं नहीं, इसलिए वे कुछ बोल नहीं सकते, अमीरों के पास भरपल्ले पैसा है, लेकिन बेचारे बोलें क्या...बोलने बताने के चलन पर ही कुछ ब्रेक सा लग गया है। और जिसकी गाड़ी घंटों लाइन में लगने के बाद 2000 रूपए का नोट हाथ में आने पर जरा चल निकली है, वह बेझिझक लोगों को बता सकता है। 
 
सरकार के इस कदम के बाद, वे लोग जो तेज चलते थे, दुर्घटनाग्रस्त जरूर हुए, लेकिन फिर अपनी धीमी चाल से अकल लगाते हुए सरकार से एक कदम आगे निकलने से बाज नहीं आए। गरीब और जरूरतमंदों को बड़ी उम्मीद थी, कि इन दुर्घटनाग्रस्त पीड़ितों के हाल-चाल पूछने जाएंगे तो थोड़ा बहुत उपकार हो जाएगा। हालांकि हुआ भी, पैसे देकर बैंकों की लाइन में लगाए गए कुछ लोगों का, लेकिन बाकी आम लोगों की उम्मीदें तो बिखर सी गई भिया।
 
सुना है, काला धन सफेद किया जा रहा है...वो भी आसानी से? हाय रे किस्मत, यहां तो सुनसान रास्तों, कचरे के डिब्बों से लेकर श्मशान तक कहीं किसी गड्ढे में पड़े नोटों को देखने के लिए आंखें ही तरस गई, लेकिन बच्चों के खिलौनों और गोलियों के साथ फ्री मिलने वाला नकली नोट तक न मिला। खैर दूसरे की कमाई का हमें क्या, वो चाहे आग लगाए, लेकिन यहां तो महिलाओं को अपनी दबी-दबाई कमाई रातोंरात उजागर करनी पड़ी, जो पति से कहा करती थीं, कि घर में तो एक रूपया नहीं देते, तुम्हारे सारे पैसे जाते कहां हैं आखिर? अब उनके जवाब उन्हीं को सुनाए जा रहे हैं...अब पता चला, मेरे सारे पैसे जाते कहां थे।
 
यहां तो हाथ, भगवान मानकर रात दिन अगरबत्ती-दिया लगाने से नहीं चूके, और रातों-रात भगवान ही बदल गए। किस्से कहा जाए यह दर्द आखिर। कितने परिवारों में विश्वास ही टूट गए होंगे, यह जानकर कि अगले व्यक्ति ने चोरी से इतने पैसे छुपाकर रखे थे। 
 
मामला कुछ इमोश्नल भी है, कि पति जब शराबखोर है, तो बेटी की शादी के लिए छुपाकर बचाए हुए पैसे भी अब स्वाहा हो जाएंगे। मामला इज्जत का भी है, जो जहर खाने को पैसे नहीं जुटा पा रहे थे, अब अपनी छुपी कमाई कैसे उजागर करेंं। मामला व्यवहार का भी है, कि जहां मना नहीं कर सकते, वहां कैसे बताएं कि हमारे पास कुछ खुल्ले पैसे पड़ेे हैं। 
 
मामला जरा आलस का भी है, कि सुबह जल्दी उठकर उन लोगों का टिफिन तैयार किया जाए, जो बैंक की कतार में लगने वाले हैं। मामला जरा थकान का भी, कि लाइन में लगने वाले ही नहीं, बैंक की सीट पर बैठे अधिकारी भी अब पेन किलर खाकर सो रहे हैं। 
 
बैंक के नए कर्मचारी सोच रहे हैं, इतने समय बैंक की नौकरी पाने के लिए मेहनत कर रहे थे, अब बैंक में आेेवरटाइम कर रहे हैं। मामला जरा बेज्जती का भी है, कि जो भिखारी पहले 10 का नोट देने पर भी पीछा नहीं छोड़ता था, अब वह 500 रूपए का नोट देने पर बेज्जती कर रहा है। यकीन मानो न मानो, 500 के सबसे ज्यादा खुल्ले भी अभी उन्हीं के पास होंगे भिया। कुछ लोग उनसे भी मांग रहे हैं। 
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