गुरुनानक ने दिया सर्व ईश्वरवाद का संदेश

Webdunia
- प्रीतम सिंह छाबड़ा
 
श्री गुरु नानकदेवजी ने दुनिया को सर्व ईश्वरवाद का संदेश दिया, जिससे वह सभी भाव और सत्य फलित होते हैं, जिनके साथ मानव की प्रगति और कल्याण अनिवार्यतः जुड़ा हुआ है।


 
श्री गुरुनानक देवजी एक युगांतकारी युग दृष्टा, महान दार्शनिक चिंतक, क्रांतिकारी समाज सुधारक थे। उनका दर्शन, मानवतावादी दर्शन था। उनका चिंतन धर्म एवं नैतिकता के सत्य, शाश्वत मूल्यों का मूल था, इसलिए उन्होंने संपूर्ण संसार के प्राणियों में मजहबों, वर्णों, जातियों आदि से ऊपर उठकर एकात्मकता का दिव्य संदेश देते हुए अमृतमयी ईश्वरीय उपदेशों से विभिन्न आध्यात्मिक दृष्टिकोणों के बीच सर्जनात्मक समन्वय उत्पन्न किया।

साथ ही विभिन्न संकुचित धार्मिक दायरों से लोगों को मुक्त कर उनमें आध्यात्मिक मानवतावाद और विश्वबंधुत्व के बीच अनिवार्य संबंध की आवश्यकता का सरल, सहज मार्ग प्रशस्त किया।

संयोगवश उनका जन्म और बचपन ननकाना साहिब की उस धरती के साथ जुड़ा है, जहां हिन्दू और मुस्लिम संप्रदायों के आम लोग रहते थे और ज्ञानी सज्जन भी। जहां आम लोगों ने नानकजी के जीवन की गति और समस्याओं को नजदीक से देखा, वहां ज्ञानी लोगों से ज्ञान की ज्योति प्राप्त की। इस लौ को उन्होंने अपने अंदर के ईंधन से इतना प्रज्वलित कर लिया कि वह एक महाप्रकाश में परिवर्तित हो गई।

पिता कालू जब नानकजी को व्यापार करने के लिए प्रेरित करते हैं तो बेटा सारी राशि साधुजनों की सेवा में लगा देता है। संसारी जीव लुटा अनुभव करता है, लेकिन करतारी जीव की नजर में यही 'सच्चा सौदा' है। बहनोई के घर रहते और दौलत खां की नौकरी करते भी कुछ ऐसा ही घटता है। 

श्री गुरु नानकदेवजी दुनिया को एक नया संदेश देने के लिए अवतरित हुए थे। उन्होंने सर्व ईश्वरवाद का संदेश दिया, जिससे वह सभी भाव और सत्य फलित होते हैं, जिनके साथ मानव की प्रगति और कल्याण अनिवार्यतः जुड़ा हुआ है। उनके द्वारा चलाया गया मिशन प्रेम, समानता और भ्रातृत्व की भावना से पूर्ण एक सार्वभौमिक अनुशासन है। यह मनुष्य को इस प्रकार सोचने-बोलने और कर्म करने अर्थात जीवन जीने की प्रेरणा देता है कि कथनी और करनी के बीच द्वैत समाप्त हो जाए।

गुरु नानकदेवजी द्वारा प्रस्तुत धर्म की इस विस्तृत धारणा के उपदेश में मनुष्य, तुच्छ बातों के बंधन से मुक्त होकर, सार्वभौमिक प्रेम, विश्व बंधुत्व अर्थात ससीम से मुक्त होकर असीम की ओर अग्रसर होता है। इसलिए समानता का नारा देते हुए उन्होंने कहा कि ईश्वर हमारा पिता है और हम सब उसके बच्चे हैं और पिता की निगाह में छोटा-बड़ा कोई नहीं है। वही हमें पैदा करता है और वही हमारा भरण-पोषण भी।

हरिद्वार में जाकर उन्होंने साबित किया कि अगर यहां का पानी करतारपुर के खेतों में नहीं पहुंच सकता तो पितरों तक भी नहीं पहुंचेगा।

पवित्र मक्का शरीफ में जाकर भी यही समझाना चाहते थे कि खुदा हर जगह होता है, किसी एक जगह पर नहीं। हमें नानकजी को सिर्फ श्रद्धा से ही नहीं, चिंतन से भी याद करना चाहिए, क्योंकि आज भी हम उसी कर्मकांड, भेदभाव, तथाकथित मर्यादा, पाखंड तथा निष्क्रियता के शिकार हैं, जिनका गुरुजी ने बहिष्कार किया था।
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