अन्ना हजारे : रालेगन सिद्धि का 'सिद्ध पुरुष'

Webdunia
शुक्रवार, 2 सितम्बर 2011 (23:37 IST)
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अन्ना हजारे को आज भले ही पूरा देश एक 'जन-नायक' के रूप में जान रहा हो, भले ही वे दूसरे गांधी के रूप में ‍चर्चित हो गए हों, भले ही जमशेदपुर के ख्यात कॉलेज में अन्ना के आंदोलन को मैनेजमेंट के चेप्टर के रूप में शामिल कर लिया गया हो, भले ही उनके अहिंसक आंदोलन ने पूरी दुनिया को एक नया सबक दिया हो...और भले ही इस 74 साल के 'जवान' ने समूची सरकार के साथ ही संसद को सांसत में डाल दिया हो, लेकिन आज यह नाम एक 'ब्रांड' बन गया है। अन्ना ने अपने पैतृक गांव रालेगन सिद्धि में जो क्रांतिकारी परिवर्तन किए हैं, उससे दूसरे भी प्रेरणा ले सकते हैं।

अन्ना का गांव एक मॉडल : अन्ना ने जिस तरह से अपने गांव का उद्धार किया है, वह एक मॉडल बन गया है। उनके गांव में स्टेडियम, अस्पताल और बढ़िया स्कूल है। गांव के उत्थान के लिए अन्ना ने जो काम किए हैं, वे एक मिसाल बन गए हैं। अन्ना के रालेगन सिद्धि को बहुत कम लोग जानते थे, आज पूरी दुनिया उससे परिचित हो गई है।

अन्ना इसलिए घर नहीं आते : समाज सेवा के लिए अविवाहित रहे अन्ना हजारे 35 सालों से अपने घर नहीं गए हैं और उन्हें अपने भाइयों के बच्चों के नाम तक मालूम नहीं हैं। उनके छोटे भाई मारुति बाबूराव हजारे ने कहा कि अन्ना इसलिए घर नहीं आते कि कहीं उन पर यह आरोप नहीं लगे कि वे घर की मदद कर रहे हैं।

घर का खाना भी नहीं खाते : अन्ना के भाई की बहू ने बताया कि रालेगन में जब भी अन्ना रहते हैं तो उनका खाना सेंटर से ही आता है। कभी हम उन्हें खाना भेजते भी हैं तो वापस लौटा देते हैं। हां, कभी घर में पूरणपोली बनती है तो उसकी जरूर इच्छा रहती है कि वे उन तक पहुंचाई जाए।

अन्ना की सेहत का राज : आज 74 साल की उम्र में भी देश का यह 'दूसरा गांधी' इतना फिट क्यों है? इस सवाल का जवाब है हर काम नियम से करना और खान पान के प्रति सचेत रहना। अन्ना सुबह 5 बजे उठते हैं। 2 किलोमीटर तक पैदल सैर के लिए जाते हैं। सैर से आने के बाद वे योगासन करते हैं। वे एक वक्त ही खाना खाते हैं। सुबह और शाम नाश्ते में फल या ज्यूस के अलावा और कुछ भोज्य पदार्थ नहीं लेते।

बचपन से ही जिद्दी स्वभाव : अन्ना के परिजनों ने बताया कि आज आप जिस अन्ना को देख रहे हैं, वह किसी जिद्दी इंसान जैसा भले ही हों, लेकिन यह स्वभाव सिर्फ जन लोकपाल बिल के जरिए नहीं निर्मित हुआ, बल्कि बचपन से ही वे ऐसे ही हैं। यदि किसी जिद पर अड़ गए तो वह पूरी होने तक अड़े ही रहते हैं।

एक गांव, एक गणपति : रालेगन सिद्धि कभी भी अन्ना हजारे का ऋण नहीं उतार सकेगा। उन्होंने गांव की भलाई के लिए इतने जतन किए हैं कि उसकी फेहरिस्त बनाई जाए तो वह बहुत लंबी हो जाएगी। 22 साल पहले रालेगन में अलग-अलग स्थानों पर गणपति की प्रतिमाएं स्थापित की जाती थी। एक बार गणेश विसर्जन के वक्त दो गुटों में टकराव हो गया। तभी अन्ना ने ऐलान किया - 'एक गांव, एक गणपति'।

22 साल से रालेगण में एक गणपति : अन्ना की सीख का ही यह परिणाम है कि पूरे गांव में केवल एक ही स्थान पर गणपतिजी की प्रतिमा स्थापित की जाती है, जहां पूरा गांव एकत्र होकर विघन विनाशक की पूजा-अर्चना करता है। 22 सालों में यह पहला मौका था, जब गणेश स्थापना के वक्त अन्ना वहां मौजूद नहीं थे। जब पूजा चल रही थी, तब वे खराब स्वास्थ्य होने के कारण विश्राम कर रहे थे। (वेबदुनिया)

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