आईएनएस 'विक्रमादित्य' : एक नजर...

Webdunia
शनिवार, 16 नवंबर 2013 (14:06 IST)
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पूर्व रूसी विमानवाहक पोत एडमि‍रल गोर्शकोव आईएनएस विक्रमादित्य के रूप में भारत मिल गया है। रूस के सेवेरोदविस्क शहर में नौसेना को मिल रहा आईएनएस विक्रमादित्य करीब डेढ़ माह बाद भारत पहुंचेगा।

उल्लेखनीय है कि वर्ष 2004 में राजग सरकार के कार्यकाल में दौरान हुए खरीद सौदे में गत नौ सालों के भीतर न केवल कई फेरबदल हुए, बल्कि इसकी कीमत में भी खासी वृद्धि हुई। नौसेना प्रवक्ता के अनुसार भारत की सैन्य ताकत में खासा इजाफा करने वाले इस विशाल पोत में लगभग 80 फीसद उपकरण नए हैं। साथ ही भारतीय सामरिक जरूरतों के मुताबिक इसमें आधुनिक नए उपकरण लगाए गए हैं। लिहाजा यह लगभग नया ही युद्धपोत है।

आईएनएस विक्रमादित्य में पहले लगे आठ बॉयलरों को निकाल कर इसके जगह पर भट्टी ईंधन तेल और आधुनिक तेल जल विभाजक के साथ ही एक मल-जल उपचार संयंत्र अंतराष्ट्रीय मानकों को पूरा करने के लिए लगाया गया है। विक्रमादित्य में 1.5 मेगावाट डीजल जनरेटर, एक वैश्विक समुद्री संचार प्रणाली, स्पेरी नेविगेशन राडार, एक नया टेलीफोन एक्सचेंज, नया डेटा लिंक और एक आईएफएफ एमके इलेवन प्रणाली, होटल की सेवाएं, नई जल उत्पादन संयंत्रों के साथ ही न्यूयॉर्क इंटरनेशनल प्रशीतन और एयर कंडीशनिंग के साथ सुधार किया गया।

इस विमानवाहक पोत का जीवनकाल 20 साल है, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि यह वास्तव में 30 साल की एक न्यूनतम तक बढ़ सकता है। आधुनिकीकरण के पूरा होने पर, जहाज और उसके उपकरणों के 70 प्रतिशत से अधिक नया हो गया है। विक्रमादित्य का सफलता पूर्वक समुद्री परीक्षण पूरा कर लिया गया है और यह 32 समुद्री मील की अधिकतम गति तक पहुंचने में सक्षम है। सफेद सागर में सितंबर 2013 में इसका परीक्षण कर लिया गया था।

आईएनएस विक्रमादित्य से जुड़ी खास जानकारियां... पढ़ें अगले पेज पर...


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नाम : आईएनएस विक्रमादित्य
बिल्डर : काला सागर शिपयार्ड, मिकोलाइव, यूक्रेन
निर्माण वर्ष : दिसम्बर, 1978
लॉंच : 17 अप्रैल, 1982 और दिसम्बर 2008 तक सेवा में रहा।
लागत: 2350000000 रूबल
स्थिति: समुद्री परीक्षण (विक्रमादित्य के तौर पर वर्ष 2011 में)

सामान्य विशेषता
कक्षा एवं प्रकार : संशोधित कीव श्रेणी
प्रकार: विमान वाहक पोत
विस्थापन: 45,400 टन का लोड (फुल लोड 44, 570 टन)
लंबाई: 283.5 मीटर [930 फीट]
शहतीर (बीम) : 59.8 मीटर [196 फीट]
ड्रैफ्ट: 10.2 मीटर (33 फुट)
प्रोपल्सन : 4 शाफ्ट गियर भाप टर्बाइन, 140,000 अश्वशक्ति
गति : 32-नॉट समुद्री मील (59 किमी / घंटा]
सीमा : 4,000 नॉटिकल मील (7400 किमी)
धारिता :18 समुद्री मील में 13,500 समुद्री मील (25,000 किमी) (33 किमी / घंटा)
आर्मामेंट : 8 सीएडीएस-एन-1 काशतान सीआईडब्ल्यूएस
ले जाए जाने वाले विमान : 18 मीकोयान मिग-29 के
या एचएएल तेजस अथवा सी हैरियर
10 हेलीकॉप्टर मिक्स
का-28 हेलीकॉप्टर्स एएसडब्ल्यू
का-31 हेलीकॉप्टर्स एइडब्ल्यू (3)
एचएएल ध्रुव

समुद्र में तैरता नौसैनिक अड्‍डा होगा विक्रमादित्य... पढ़ें अगले पेज पर....


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इस विमानवाहक पोत पर 30 से अधिक लड़ाकू विमान दुश्मन के किसी भी पोत या विमान को अपने आसपास एक हजार किलोमीटर से भी अधिक के दायरे में फटकने नहीं देंगे। इसीलिए यह पोत समुद्र पर प्रभुत्व स्थापित करने वाला पोत कहा जा सकता है। पोत पर तैनात राडार प्रणालियां दुश्मनों के विमान या पोतों की समुचित चेतावनी देंगी और मिग-29 लड़ाकू विमान उनके मुकाबले के लिए तैनात हो जाएंगे।

भारत के पूर्वी और पश्चिमी तटों के समुदी इलाके में हमेशा एक-एक विमानवाहक पोत तैनात रखने की जरूरत महसूस होती रही है क्योंकि समुद्र में डकैती व आतंकवाद की घटनाएं तो बढ़ ही रही हैं, भारतीय समुद्री इलाके के आर्थिक संसाधनों और द्वीपसमूहों की भी रक्षा और निरंतर चौकसी जरूरी है।

फिलहाल भारत के पास एक विमानवाहक पोत विराट ही बचा है और पचास के दशक में विक्रांत हासिल करते समय भारतीय रक्षा जानकारों ने यह योजना बनाई थी कि दोनों समुद्र तटों पर हमेशा एक-एक पोत तैनात रखने के अलावा एक तीसरा पोत भी होना चाहिए, जो दोनों में से एक पोत को रखरखाव के लिए बंदरगाह भेजे जाने के दौरान विकल्प के रूप में तैनात हो सके।

विराट पोत 28 हजार विस्थापन क्षमता का पोत है जबकि विक्रांत पोत 18 हजार टन विस्थापन क्षमता का पोत था। विक्रमादित्य 44.5 हजार टन विस्थापन क्षमता का है। चूंकि इस पोत पर मिग- 29- के लड़ाकू विमान तैनात होंगे और यह विमान हवा से हवा और हवा से सतह में मार करने वाली मिसाइलों से लैस होगा ,इसलिए यह विमान पोत के आसपास सैकड़ों किलोमीटर के दायरे में उड़ान भरते हुए अपनी हमलावर मिसाइलों से दुश्मन के किसी पोत, लड़ाकू या टोही विमान को आतंकित करने की ताकत रखेगा।

विमानवाहक पोत को एक बड़ा खतरा पनडुब्बियों से भी होता है क्योंकि पानी के नीचे चुपचाप ये पनडुब्बियां पोत के आसपास पहुंचने में सफल हो जाएं तो पोत पर अपनी मिसाइलों या टारपीडो से मार करने में सफल हो सकती हैं, जिससे पूरा पोत ही डूब सकता है। इसलिए इन पनडुब्बियों से पोत को बचाने के लिए पोत पर ऐसे पनडुब्बी नाशक कामोव- 31 हेलीकाप्टर तैनात किए जाएंगे, जो हमेशा यह देखते रहेंगे कि समुद्र के भीतर कोई पनडुब्बी तो मौजूद नहीं है।

इस पोत पर तैनात होने वाले मिग-29 के विमानों को भारत और रूस के संयुक्त प्रयासों से विकसित ब्रह्मोस मिसाइलों से लैस किया जाएगा। इस मिसाइल की फिलहाल नौ-सैनिक किस्म अर्थात पोत नाशक किस्म का ही विकास किया गया है, लेकिन इसे विमान से छोड़ी जाने वाली किस्म से भी लैस करने की योजना है। इस मिसाइल की मारक दूरी 290 किलोमीटर है, इसलिए ऐसी मिसाइलों से लैस मिग- 29- के विमान दुश्मन के किसी भी पोत या विमान को पोत के सैकड़ों किलोमीटर आसपास विचरण करने से रोकेंगे।

यदि दुश्मन की मिसाइल पोत से टकराई तो.... पढ़ें अगले पेज पर...


किसी विमान वाहक पोत से यदि दुश्मन की कोई मिसाइल आ टकराए तो इससे भी पोत डूब सकता है या इसे भारी नुकसान हो सकता है। ऐसे हमलों से बचाने के लिए पोत पर मिसाइल नाशक मिसाइल लगाई गई हैं। यह मिसाइल रूसी काश्तान हो सकती है या फिर इसराइली बराक। रूसी अधिकारियों का आग्रह था कि चूंकि रूसी काश्तान मिसाइल एक जांची परखी मिसाइल है इसलिए भारत को रूसी काश्तान मिसाइल ही इस पर तैनात होनी चाहिए।

इसके अलावा पोत पर कई तरह की तोप प्रणाली भी तैनात है, जोकि निकट आ चुके किसी लड़ाकू विमान या पोत पर हमला कर सकती है। इसके अलावा पोत पर इलेक्ट्रॉनिक युद्ध प्रणाली भी होगी, जो दुश्मन के पोतों या विमानों के सूचना तंत्र को ही तबाह करने की क्षमता रखती है।

विक्रमादित्य यूक्रेन के माइकोलैव ब्लैक ‍सी शिपयार्ड में 1978-1982 में निर्मित कीव श्रेणी के विमान वाहक पोत का एक रूपांतरण है। रूस के अर्खान्गेल्स्क ओब्लास्ट के सेवेरॉद्विनस्क के सेवमाश शिपयार्ड में इस जहाज की बड़े पैमाने पर मरम्मत की गई और इसे भारत के एकमात्र सेवारत विमान वाहक पोत आई एन एस विराट के स्थान पर लाया जाएगा।

वर्ष 1996 में गोर्शकोव निष्क्रिय हो गया था क्योंकि शीत युद्ध के बाद के बजट में इससे काम लेना बहुत ही महंगा पड़ रहा था। इसने भारत का ध्यान आकर्षित किया, जो अपनी वाहक विमानन की क्षमता में इजाफा करने के लिए कोई रास्ता तलाश रहा था। वर्षों तक बातचीत चलने के बाद 20 जनवरी 2004 को रूस और भारत ने जहाज के सौदे के लिए समझौते पर हस्ताक्षर किए।

जहाज सेवा मुक्त था, जबकि जहाज में सुधार और मरम्मत के लिए भारत द्वारा 800 मिलियन यूएस डॉलर के अलावा विमान और हथियार प्रणालियों के लिए अतिरिक्त एक बिलियन यूएस डॉलर का भुगतान किया गया। नौसेना वाहक पोत को ई-2सी हॉव्केय (E-2C Hawkeye) से लैस करने की सोच रही थी, लेकिन बाद में ऐसा नहीं करने का निर्णय लिया गया। 2009 में, भारतीय नौसेना को नोर्थरोप ग्रुम्मान ने उन्नत ई-2डी हॉव्केय (E-2D Hawkeye) की पेशकश की थी।

सौदे में 1 बिलियन यू एस डॉलर में 12 एकल सीट वाला मिकोयान मिग-29के 'फुल्क्रम-डी' (प्रोडक्ट 9.41) और 4 दो सीटों वाले मिग-29केयूबी (14 और विमानों के विकल्प के साथ), 6 कामोव केए-31 "हेलिक्स" टोही विमान और पनडुब्बी रोधी हेलीकॉप्टरों, टारपीडो ट्यूब्स, मिसाइल प्रणाली और तोपखानों की ईकाई के लिए चुकाए गए। पायलटों और तकनीकी स्टाफ के प्रशिक्षण के लिए प्रक्रियाएं और सुविधाएं, अनुकारियों की सुपुर्दगी, अतिरिक्त कल-पुर्जे और भारतीय नौसेना प्रतिष्ठान के रखरखाव की सुविधाएं भी अनुबंध का हिस्सा बनीं।

जहाज में कब क्या काम हुआ... पढ़ें अगले पेज पर...


आईएनएस विक्रमादित्य को सौंप दिए जाने की घोषणा अगस्त 2008 को हुई, जिससे इस विमान वाहक पोत को भारतीय नौसेना के सेवानिवृत्‍त होने वाले एकमात्र हल्के विमान वाहक आईएनएस विराट की ही तरह सेवा की अनुमति मिल गई। आईएनएस विराट की सेवानिवृत्ति की समय-सीमा 2010-2012 तक के लिए आगे बढा दी गयी। इस देरी के साथ खर्च में होती जा रही वृद्धि का मामला जुड़ गया।

बाद में भारत ने इस परियोजना के लिए अतिरिक्त 1.2 बिलियन यूएस डॉलर का भुगतान किया जो मूल लागत के दुगुने से अधिक हो गई। जुलाई 2008 में, बताया गया कि रूस ने कुल कीमत बढ़ाकर 3.4 बिलियन यूएस डॉलर कर दिया। उसने इसके लिए जहाज की बिगड़ी हुई हालत के कारण अप्रत्याशित खर्च को जिम्मेवार करार दिया। भारत ने अंतिम सौदा 2.35 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक में कर लिया।

जहाज की पेंदी का काम 2008 तक पूरा कर लिया गया और विक्रमादित्य का 4 दिसंबर 2008 को पुनः जलावतरण किया गया। वाहक पर जून 2010 तक संरचनात्मक काम का 99% के आसपास और केबल कार्य का लगभग 50% पूरा कर लिया गया। इंजन और डीजल जेनरेटर सहित लगभग सभी बड़े उपकरण स्थापित कर दिए गए। डेक प्रणाली के परीक्षण के लिए 2010 में एक नौसेना मिग-29के (MiG-29K) प्रोटोटाइप का इस्तेमाल किया गया था।

पोतवाहक के अगले भाग में 14.3 डिग्री स्की-जंप के साथ और कोणयुक्त डेक के पिछले हिस्से में तीन रोधक तारों के साथ जहाज को एसटीओबीएआर (STOBAR) में संचालित किया जाएगा। यह मिग-29के (MiG-29K) और सी हैरियर विमानों के अलावा अन्व विमानों, हेलीकॉप्टरों को संचालित करने की सुविधा देगा। विक्रमादित्य पर मिग-29के (MiG-29K) के लिए अधिकतम उड़ान भरने की लंबाई 160-180 मीटर के बीच है।

इसके प्लेटफॉर्म का अतिरिक्त लाभ इसकी अधिरचना प्रोफ़ाइल है, इसमें सशक्त समतल या ''बिलबोर्ड स्टाइल'' एंटेना के साथ चरणबद्ध प्रभावशाली राडार प्रणाली को अपने अनुरूप बनाने की सामर्थ्य है, जो हवाई अभियान चलाने के लिए व्यापक समादेश और नियंत्रण सुविधा के साथ मौजूद है। यह प्रणालियां विश्व की आधुनिकतम जलसेनाओं द्वारा प्रयुक्त की जाती हैं।

विक्रमादित्य यानी... पढ़ें अगले पेज पर...


एयरबॉर्न अर्ली चेतावनी भूमिका में आई एन एस विक्रमादित्य पर कामोव का-31 "हेलिक्स" स्थित है। अंतरराष्ट्रीय मानकों को पूरा करने के लिए आधुनिक तेल-जल विभाजकों के साथ-साथ एक दूषित जल शोधक संयंत्र लगाया जा रहा है। इस जहाज में छह नए इतालवी-निर्मित वार्तसिला (Wartsila) 1.5 मेगावाट डीजल जेनरेटर, एक वैश्विक समुद्री संचार प्रणाली, स्पेरी ब्रिजमास्टर नेविगेशन रडार, एक नया टेलीफोन एक्सचेंज, नया डेटा लिंक और एक आईएफएफ एमके XI प्रणाली भी लगायी गई है।

जल-उत्पादन संयंत्रों के अलावा योर्क अंतर्राष्ट्रीय प्रशीतन संयंत्र और वातानुकूलक के साथ होटल सेवाओं को दिया गया है। घरेलू सेवाओं में सुधार तथा 10 महिला अधिकारियों की आवास सुविधा के साथ एक नया पोत-रसोईघर स्थापित की गई है। हालांकि जहाज का आधिकारिक जीवन काल 20 वर्ष अपेक्षित है, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि नियुक्ति के समय से इसका जीवन काल वास्तव में कम से कम 30 वर्ष हो सकता है।

एमएकेएस (MAKS) एयरशो पर भारतीय नौसेना मिग-29के (MiG-29K) रूस के सेवेरॉद्वीन्स्क में पुनर्विन्यासन के सारे काम पूरे किए गए हैं; हालांकि केबल की जरूरत की मात्रा के कम अनुमान लगाए जाने के कारण इसमें तीन साल की देरी हुई है और इस कारण से इसका जलावतरण वर्ष 2013 में नवंबर तक संभव हो सका।

" विक्रमादित्य" एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ है "सूर्य की तरह प्रतापी" और भारतीय इतिहास के कुछ प्रसिद्ध राजाओं का भी नाम है, जैसे कि उज्जैन के विक्रमादित्य, जिन्हें एक महान शासक और शक्तिशाली योद्धा के रूप में जाना जाता है। यह उपाधि का प्रयोग भारतीय राजा चंद्रगुप्त द्वितीय द्वारा भी किया जाता था जिनका शासन-काल 375- 413/15 ई.सं. के बीच रहा माना जाता है। रूस में भारत को सौंपे जाने से पहले इस विमानवाहक पोत ने अपने समुद्री परीक्षणों के दौरान 30 नॉट्स से अधिक की अपनी उच्चतम गति प्राप्त की।

इस विमानवाहक पोत को नया नाम आईएनएस विक्रमादित्य दिया गया है। 44,500 टन वजनी यह पोत इस साल के अंत तक भारतीय नौसेना में शामिल किए जाने से पहले रूस में सघन समुद्री परीक्षणों से गुजरा है। यह युद्धपोत पहले ही करीब पांच साल के विलंब का शिकार हो चुका है। पोत को 2008 में भारत को सौंपा जाना था, लेकिन इसकी कीमत में हुए इजाफे और अत्यधिक समय निकल जाने को देखते हुए रूसी पक्ष ने भारत को पिछले साल सूचित किया कि वह इसे 2013 के अंत तक भारतीय नौसेना को सौंपने में सक्षम होगा।

समय गुजरने के साथ-साथ इसकी कीमत में भी काफी बढ़ोतरी हुई। भारत ने 2004 में युद्धपोत के लिए 93.4 करोड़ अमेरिकी डॉलर के करार पर हस्ताक्षर किए थे, लेकिन रूसी पक्ष युद्धपोत की कीमत बढ़ाता रहा और अंतत: 2.35 अरब अमेरिकी डॉलर में सौदे को अंतिम रूप दिया गया।

रूस के साथ भारत ने 45 मिग-29 नौसैन्य लड़ाकू विमान हासिल करने के करार पर हस्ताक्षर किए हैं जिन्हें विमानवाहक पोत पर तैनात किया जाएगा। विमानों की खेप युद्धपोत के पहुंचने की तारीख से बहुत पहले ही मिलनी शुरू हो गई थी। विमानवाहक पोत को नौसेना कर्नाटक में कारवाड़ अपटतीय क्षेत्र में आधारित करेगी और इसके के लिए पहले ही केंद्र बनाना शुरू कर दिया गया था।

विक्रमादित्य युद्धपोत उन जहाज़ों का नेतृत्व कर सकेगा जो आनेवाले समय में भारत को रूस से मिलेंगे। इस साल के नवंबर में भारत को 10 वर्षों के लिए ठेके पर रूसी परमाणु पनडुब्बी नेर्पा मिलेगी। आने वाले 2 सालों में भारत को तीन फ़्रिगेट जहाज़ सौंपे जाएंगे जिनका निर्माण रूस में भारत के ऑर्डर पर किया गया है। इस समय तेग, तरकश और त्रिकंद नाम के इन जहाज़ों के परीक्षण हो रहे हैं। इसी के साथ भारत शक्तिशाली समुद्री बेड़े वाली एक महाशक्ति बन रहा है। उसकी समुद्री धारणा के अनुसार सन् 2020 तक उसको ऐसा शक्तिशाली नौसैनिक बेड़ा प्राप्त होना चाहिए जो कोई भी लक्ष्य प्राप्त कर सकेगा।

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