उत्तराखंड बाढ़ : अब लड़ाई भूख, ठंड, बीमारी और मौसम से...

Webdunia
मंगलवार, 25 जून 2013 (13:47 IST)

पवित्र देवभूमि उत्तराखंड में आए जलप्रलय से हजारों लोग मौत के मुंह में चले गए हैं, लेकिन जो बच गए हैं उनकी मुश्किलें भी कम नहीं हैं। उन्हें हर पल मौत दिखाई दे रही हैं। पीड़ितों को बचाने के लिए सतत प्रयास जारी हैं, लेकिन सबसे बड़ी समस्या अब भी वहां दुर्गम इलाकों में फंसे लोगों को राहत पहुंचाने की है।

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उत्तराखंड में बिगड़ते मौसम के मद्देनजर माना जा रहा है कि अब यह राहत कार्य 'रेस अगेंस्ट टाइम' बन गया है। सूत्रों का मानना है कि अगर मौसम बिगड़ा तो आपदाग्रस्त इलाकों में फिर से तबाही मच सकती है। मंगलवार को रुद्रप्रयाग में हुई जोरदार बारिश से कई जगह भूस्खलन हुए और राहत कार्यों में मुश्किल पेश आई।

आगे पढ़ें... सैलाब से तो बच गए, भूख ने मार डाला...


सबसे बड़ा सवाल है 10 दिनों से फंसे लोगों की सुरक्षा और उन्हें राहत पहुंचाने का। भूख, प्यास और ठंड से बेहाल लोग अब धीरे-धीरे जिंदगी का हाथ छोड़ने लगे हैं।

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इंदौर से तीर्थयात्रा पर केदारनाथ गए एक परिवार की एक सदस्य सैलाब से बचने के लिए पहाड़ पर जैसे-तैसे पहुंच गई, लेकिन कई दिनों से भूखी और प्यासी रहने से उसकी हिम्मत जवाब दे गई और बचाए जाने के ठीक पहले कमजोरी के चलते पहाड़ चढ़ते समय यह युवती बेहोश होकर नीचे जा गिरी। परिवार की आंखों के सामने ही वो नदी में बह गई और अगले दिन किनारे पर उसकी लाश मिली।

अब तो मददगार ही मुश्किल में हैं.... आगे पढ़ें...


ऐसे कई दर्दनाक किस्से पूरे उत्तराखंड में सुनने को मिल रहे हैं। कहीं कहीं तो लोग जिंदगी बचाने के लिए घास और पत्ते खा रहे हैं। राहत दलों द्वारा चलाया जा रहा अभियान अभी भी बहुत से इलाकों तक नहीं पहुंच पा रहा है।

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यही नहीं तीर्थयात्रियों के अलावा उत्तराखंड के निवासी भी इस आपदा में अपना सब कुछ गंवा चुके हैं। उन्हें भी तत्काल सहायता की जरूरत है। देहरादून तक पहुंचे दिल्ली के एक यात्री ने बताया कि पहले तो स्थानीय निवासियों ने उनकी मदद की लेकिन थोड़े समय बाद ही रास्ते बंद होने से उन्हें भी खाने-पीने की समस्या होने लगी।

खच्चरवालों के स्वार्थ ने छीनी कई जिंदगियां... आगे पढ़ें...


आपदा से बचे एक और यात्री ने केदारनाथ के खच्चरवालों को दोष देते हुए बताया कि जब 17 जून को केदारनाथ में राहत पहुंची तो इन खच्चर वालों की यूनियन ने मनमानी शुरू कर दी। उनका कहना था कि हेलिकॉप्टर में अगर 6 यात्री जा सकते हैं तो 4 खच्चरवाले जाएंगे। इस तरह से 14 जून को भी खच्चरवालों की यूनियन ने हड़ताल कर दी थी, जिसकी वजह से बहुत से यात्री केदारनाथ से निकल नहीं पाए थे। दिल्ली के इस यात्री ने यह भी बताया कि निजी हेलिकॉप्टर चालकों ने एक सीट के लिए 2 लाख रुपए की मांग की। जब आईटीबीपी के जवान आए तब उन्होंने इस मनमानी को बंद किया।

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आपदा प्रबंधन के एक कार्यकर्ता ने बताया कि इतने दिनों के बाद अब फंसे लोगों के बचने की संभावना क्षीण होती जा रही है। लगातार पानी, ठंड और भूख से फंसे लोगों की जिंदा रहने की संभावना अब काफी कम है। उसने बताया कि पहाड़ों के जंगल में काफी जंगली जानवर भी हैं जो भटके हुए कमजोर लोगों को अपना शिकार बना सकते हैं। उसका कहना है कि यहां ऊपर पहाड़ों में जंगल बेहद घने हैं और हेलिकॉप्टर से भी जाने पर किसी को ढूंढना बेहद मुश्किल है।

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