भाजपा के निशाने पर डॉ. अब्दुल कलाम

Webdunia
सोमवार, 14 जुलाई 2008 (19:53 IST)
भाजपा ने पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम पर निशाना साधते हुए उनसे सीधा सवाल किया कि उन्हें यह ज्ञात कैसे हो गया कि परमाणु करार देश हित में है। साथ ही उनसे माँग की कि वे उस आधार को बताएँ जिसके कारण वे इसके विरोधी से समर्थक बन गए।

पार्टी की ओर से उसके दो वरिष्ठ नेताओं यशवंत सिन्हा और अरुण शौरी ने कहा कि परमाणु करार के विरोधी से समर्थक बनने के लिए कलाम के पास कोई नया तर्क नहीं है।

सवालों के जवाब में शौरी ने कहा कि इस मामले में हम डॉ. कलाम का नाम नहीं घसीटना चाहते थे, लेकिन क्योंकि वह खुद इसमें आगे आ गए हैं और समाजवादी पार्टी ने उनके नाम की शरण ली है इसलिए हमें कहना पड़ रहा है।

उन्होंने बताया कि दो-तीन महीने पहले कलाम के कार्यालय से फोन आया कि वे उनसे मिलना चाहते हैं। एक घंटे हम दोनों के बीच चर्चा हुई और उसके बाद मुझे उन्हें दुख के साथ कहना पड़ा कि उनके पास कोई नया तर्क नहीं है। आप तो इसका विरोध कर रहे थे, अब क्या हुआ।

शौरी ने दावा किया कि कलाम ने सुझाव रखा कि क्यों न संसद में प्रस्ताव पारित करके देश की जनता को आश्वासन दिया जाए कि हाइड एक्ट भारत पर लागू नहीं होगा। शौरी के अनुसार इस पर उन्होंने पूर्व राष्ट्रपति से कहा कि क्या हम जनता को बेवकूफ बनाएँ।

शौरी ने खुलासा किया कि परमाणु करार के समर्थन में कलाम बाद में लालकृष्ण आडवाणी और अटलबिहारी वाजपेयी के पास भी गए, लेकिन उनके पास कोई नया तर्क नहीं था।

यह कहे जाने पर कि राजग शासन में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार रहे ब्रजेश मिश्र ने भी करार को देश हित में बताते हुए इसके लिए प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह को धन्यवाद किया है, उन्होंने कहा यह करार छोटे-बड़े लोगों के नाम से नहीं जाना जाएगा।

यशवंत सिन्हा ने कहा चाहे कहीं से समर्थन आए यह मानकर नहीं चलना चाहिए कि हम उसे मान लेंगे। यह कहे जाने पर कि क्या आप दोनों ही ज्ञानी हैं और प्रधानमंत्री सहित अन्य अज्ञानी? शौरी ने इस पर कहा कि परमाणु करार पर प्रधानमंत्री ने बैठक बुलाई थी। उसमें आडवाणी, ब्रजेश मिश्र आदि भी उपस्थित थे। प्रधानमंत्री ने नया तर्क दिया कि यह करार हमें परमाणु शस्त्र कार्यक्रम बढ़ाने के नए अवसर प्रदान करेगा।

उन्होंने कहा कि इस पर जब हमने उन्हें बताया कि इसी को रोकने के लिए हाइड एक्ट में नए प्रावधान शामिल किए गए हैं तो वे चुप हो गए। हम उन्हें 1972 से जानते हैं।

सिन्हा ने कहा कि परमाणु करार करने की ऐसी कोई जल्दबाजी भी नहीं है, जो प्रधानमंत्री दिखा रहे हैं। उन्होंने कहा कि 2010 में परमाणु अप्रसार संधि की समीक्षा होनी है। तब तक प्रतीक्षा की जा सकती है, लेकिन प्रधानमंत्री ने तो जैसे जिद पकड़ ली है कि इसे अभी करना है।

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