विश्व के पहले हिंदी पोर्टल के रूप में वेबदुनिया ने हिंदी की जो सेवा की है और इंटरनेट की ताकत से उसे पूरे विश्व में फैलाया है, उसके बारे में सभी हिंदी प्रेमियों तथा हिंदी के साहित्यकारों को जानकारी होनी चाहिए। वेबदुनिया के सीईओ और संस्थापक विनय छजलानी ने अपनी दूरदृष्टि से यह अनुमान 1998 में ही लगा लिया था कि जब इंटरनेट देश के बी श्रेणी के शहरों तक अपना जाल फैलाएगा तो दुनिया की शीर्ष टेक्नोलॉजी कंपनियों को भारतीय भाषा की जरूरत होगी।
1998 से रिसर्च शुरू हुई और 23 सितंबर 1999 में वेबदुनिया की शुरुआत हुई। हिंदी पोर्टल की स्थापना के लिए किया गया शोध कोई छोटा-मोटा नहीं था। अनेकों साफ्टवेयर इंजीनियरों के दिन-रात के अथक परिश्रम और उद्देश्य के प्रति पूर्ण समर्पण का नतीजा था कि हिंदी में विश्व के प्रथम पोर्टल का सपना पूरा हुआ।
इस सपने की पूर्ति का हिस्सा रहे कुछ संस्मरण हमेशा याद रहेंगे। सुवी इन्फरमेशन सिस्टम के अमित गोयल ने तय किया कि अपना प्रोजेक्ट मैनेजर का पद छोड़कर वे वेबदुनिया की रिसर्च का काम एक सामान्य इंजीनियर की तरह करेंगे। इसके लिए उन्होंने आधे वेतन पर काम करना स्वीकार किया और सफल भी रहे। उनके साथ श्रीमती बबीता जैन की तकनीकी विशेषज्ञता का साथ मिला। वेबदुनिया को नईदुनिया के मीटिंग हाल की जगह मिली, जिसे युद्ध स्तर पर रंग-रोगन कर ठीक किया गया। प्रकाश हिंदुस्तानी वेबदुनिया के प्रथम संपादक थे।
टीम किसी अखबार के न्यूज रूम की तरह देर रात तक काम करती थी। आपसी सहयोग, उत्साह व पारिवारिक माहौल का वह आलम था कि रात 12 बजे यदि पता चलता कि सीईओ साहब बाजार से घर लोट रहे हैं तो उनसे अनुरोध कर दिया जाता था कि सर राजबाड़े से पान लेते आएंगे क्या? ऐसी हिम्मत तभी की जा सकती थी जब आप निश्चित परिणाम देने का हौसला मन में रखते हों।
शीघ्र ही गूगल जैसा सर्च इंजिन वेबदुनिया ने बना लिया जो हिंदी में सर्च की सुविधा देता था। हिंदी में पहला ई-मेल सिस्टम भी वेबदुनिया ने ई-पत्र के नाम से बाजार में उतारा। आगामी एक दो वर्षों में वेबदुनिया ने पहली बार दसवीं तथा बारहवीं के रिजल्ट ऑनलाइन घोषित किए। उन दिनों सबके पास इंटरनेट नहीं होता था, इसलिए सायबर कैफे बालों ने खूब माल कमाया। 10 रुपए में एक एक मार्कशीट प्रिंट करके बेची। ट्रैफिक इतना कि कई बार सर्वर क्रेश हो गए।
इलाहाबाद और बाद में उज्जैन कुंभ में भी वेबदुनिया टीम ने शानदार रिपोर्टिंग की और उसे पूरे विश्व में दिखाया। कुंभ में ऑनलाइन ई-स्नान और ई-आरती भी पूरे विश्व में खूब पसंद किया गया। क्रिकेट की बॉल टू बॉल हिंदी कमेंट्री भी वेबदुनिया ने शुरू की, जिसका संचालन स्थानीय क्रिकेटर्स ने किया। वेबदुनिया हिंदी पोर्टल में ताजा समाचार से लेकर सभी तरह के विषयों की गहन जानकारी समाहित होती है।
धर्मयुग तथा साप्ताहिक हिंदुस्तान पत्रिकाओं के पराभव के बाद यह एक नया युग आया। हिंदी अखबार विदेशों तक नहीं पहुंचते थे पर वेबदुनिया पूरे विश्व में कहीं भी देखा जा सकता था। वेबदुनिया पर दिवाली पूजन की विधि देखकर विदेशों में मां-बाप से दूर बसे हिंदू परिवारों के युवा बच्चे, विधि-विधान से पूजा करने लगे। अपने माता-पिता से भी बेहतर तरीके से। इसके बाद वेबदुनिया ने हिंदी के अलावा 7 अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में पोर्टल शुरू किया।
माइक्रोसॉफ्ट, गूगल जैसी विश्वस्तरीय संस्थाओं ने वेबदुनिया से तकनीकी सहायता ली। माइक्रोसॉफ्ट का विंडो ऑपरेटिंग सिस्टम पहली बार हिंदी में वेबदुनिया के तकनीकी सहयोग से आया। आज मोबाइल क्रांति के कारण पोर्टलों का महत्व कुछ कम हो चला है पर आज भी सोशल मीडिया पर उपलब्ध सामग्री में वह विश्वसनीयता नहीं है जो पोर्टल में होती है। जिस तरह से अखबारों की उपयोगिता कभी समाप्त नहीं होगी, उसी तरह पोर्टल्स की उपयोगिता भी अक्षुण्ण रहेगी।