जम्मू। अगर कश्मीर में फैले आतंकवाद की बात आंकड़ों की जुबानी करें तो यह सुरक्षाबलों और नागरिकों के लिए भारी साबित हो रहा है। 34 सालों के बाद भी यह अपने भयानक स्तर पर है। इन 34 सालों के आंकड़ों के मुताबिक, औसतन एक सुरक्षाकर्मी प्रतिदिन शहादत पा रहा है, जबकि प्रतिदिन 2 नागरिकों की जानें इस अरसे में गई हैं। हालांकि सुरक्षाकर्मियों ने एक शहादत के बदले प्रतिदिन औसतन 3 आतंकियों को ढेर किया है।
आंकड़े कहते हैं कि 34 सालों के आतंकवाद में सरकारी तौर पर 50 हजार के लगभग लोगों की मौतें कश्मीर में हुई हैं। इनमें अगर 25 हजार से अधिक आतंकी थे तो 7000 के लगभग सुरक्षाकर्मी भी शामिल हैं। सुरक्षाकर्मियों का आंकड़ा सभी बलों का है जिनमें सेना, पुलिस और केंद्रीय सुरक्षाबल भी शामिल हैं। ठीक इसी प्रकार 16 हजार के लगभग नागरिकों की जानें 34 साल के अरसे में गई हैं।
31 जुलाई 1988 में आतंकवाद की शुरूआत हुई तो उस पहले साल में कुल 31 लोगों की मौत हुई थी। इसमें अगर 29 नागरिक मरे थे तो एक-एक सुरक्षाकर्मी और आतंकी भी मरा था और यह आंकड़ा सबसे अधिक वर्ष 2000 में था जब 638 सुरक्षाकर्मियों को अपनी शहादत देनी पड़ी थी। ऐसा भी नहीं था कि 638 सुरक्षाकर्मियों की शहादत बेकार गई हो बल्कि उसी साल सुरक्षाबलों ने सबसे अधिक 2850 आतंकियों को ढेर कर दिया था।
आतंकियों को ढेर करने का सिलसिला 1988 से ही जारी है और अगर 34 सालों के आंकड़ों को लें तो औसतन प्रतिदिन 3 आतंकियों की मौत कश्मीर के आतंकवाद विरोधी अभियानों में हुई है और प्रति 3 आतंकियों को मौत के घाट उतारने के लिए एक सुरक्षाकर्मी को औसतन अपनी शहादत देनी पड़ी है।
ठीक इसी प्रकार कश्मीर में आम नागरिकों के मरने का सिलसिला अनवरत रूप से जारी है। 34 सालों के अरसे में मरने वाले 16 हजार के लगभग नागरिकों में वे लोग भी शामिल हैं, जो सुरक्षाबलों की गोलियों का शिकार हुए और वे भी जिन्हें आतंकियों ने कभी गोलियों से भून डाला तो कभी बमों से उड़ा दिया।
आंकड़े कहते हैं कि औसतन दो नागरिक इन 34 सालों में प्रतिदिन मारे गए हैं, जबकि मारे गए कुल लोगों का आंकड़ा कहता है कि 34 सालों के दौरान प्रतिदिन 5 लोगों की मौत औसतन कश्मीर में हुई है, जबकि आंकड़ों के अनुसार, सबसे अधिक नागरिकों की मौत वर्ष 1996 में हुई थी जब कुल 1333 नागरिक विभिन्न आतंकी घटनाओं में एक साल के भीतर मारे गए थे।