नई दिल्ली। नेशनल कॉन्फ्रेंस (नेकां) ने जम्मू-कश्मीर के संवैधानिक दर्जे में बदलाव को शनिवार को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी और दलील दी कि इन कदमों से वहां के नागरिकों से जनादेश प्राप्त किए बगैर ही उनके अधिकार छीन लिए गए हैं।
याचिका में दलील दी गई कि संसद द्वारा स्वीकृत कानून और इसके बाद राष्ट्रपति की ओर से जारी आदेश असंवैधानिक है इसलिए उन्हें अमान्य एवं निष्प्रभावी घोषित कर दिया जाए। मोहम्मद अकबर लोन और न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) हसनैन मसूदी ने यह याचिका दायर की है। दोनों ही लोकसभा में नेशनल कॉन्फ्रेंस के सदस्य हैं।
लोन जम्मू-कश्मीर विधानसभा के पूर्व विधानसभा अध्यक्ष हैं और मसूदी जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश हैं जिन्होंने 2015 में अपने फैसले में कहा था कि अनुच्छेद 370 संविधान का स्थायी प्रावधान है। उन्होंने जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 और इसके बाद जारी राष्ट्रपति के आदेश को चुनौती दी है।
जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को खत्म करने और राज्य को 2 केंद्र शासित क्षेत्रों में विभाजित करने के केंद्र के फैसले को चुनौती देते हुए दोनों सांसदों ने इस अधिनियम और राष्ट्रपति के आदेश को असंवैधानिक, अमान्य एवं निष्प्रभावी घोषित करने के संबंध में निर्देश देने का अनुरोध किया है।
याचिकाकर्ताओं ने कहा कि कानून और राष्ट्रपति का आदेश अवैध तथा संविधान के अनुच्छेद 14 एवं 21 के तहत जम्मू-कश्मीर के लोगों को दिए गए मौलिक अधिकारों का हनन है। दोनों सांसदों ने कहा कि शीर्ष न्यायालय को अब यह देखना चाहिए कि क्या केंद्र सरकार राष्ट्रपति शासन की आड़ में समुचित प्रक्रिया तथा कानून के शासन के अहम तत्वों को नजरअंदाज कर इसके विशिष्ट संघीय स्वरूप को एकपक्षीय तरीके से खत्म कर सकती है।
याचिका में कहा गया कि इसलिए यह मामला भारतीय संघवाद, लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं और संघीय ढांचे के प्रहरी के तौर पर शीर्ष न्यायालय की व्यवस्था के मूल तक जाता है। (भाषा)