दुनियाभर के ज्यादातर युवा मोटी सैलरी के लिए टेक कंपनियों में नौकरी करने का ख्वाब देखते हैं। लेकिन, हाल ही में गूगल, माइक्रोसॉफ्ट, अमेजॉन, मेटा, ट्विटर, सेल्सफोर्स, सिस्को, स्नैप एवं कई अन्य बड़ी कंपनियों ने करीब 1 लाख कर्मचारियों की छंटनी कर दी है। आने वाले समय में और भी ज्यादा ले-ऑफ देखने को मिल सकता है।
दरअसल, दुनिया भर में आईटी सेक्टर स्लो ग्रोथ और आर्थिक मंदी का पूर्वानुमान लगा रहा है। हाल ही में गूगल की पैरेंट कंपनी अल्फाबेट ने घोषणा की कि वो 6 प्रतिशत वर्कफोर्स यानी 1,200 जॉब्स कम करेगी। सीईओ सुंदर पिचाई ने अपने बयान में कहा कि यह एक बहुत बड़ा निर्णय हमने आने वाले समय को ध्यान में रखकर लिया है। कोरोना काल के समय हम अलग आर्थिक परिस्थितियों से गुजर रहे थे और मौजूदा हालात कुछ और हैं। कुछ देश आर्थिक मंदी से गुजर रहे हैं तो कुछ देशों में आर्थिक मंदी की आशंका व्यक्त की जा रही है।
ई-कॉमर्स क्षेत्र की बड़ी कंपनी अमेजॉन ने 18,000 कर्मचारियों की छंटनी की है। इसी के साथ साथ फेसबुक ने भी 13 प्रतिशत वर्कफोर्स यानी 11,000 कर्मचारी कम किए हैं। सोशल मीडिया कंपनी के इतिहास में यह पहली बार हुआ है। मार्केट में पर्सनल कंप्यूटर्स की डिमांड घटने से HP कंपनी भी आने वाले तीन सालों में करीब 6000 जॉब्स में कमी कर सकती है। हालांकि यह कंपनी अभी तक 10 प्रतिशत छंटनी तो कर ही चुकी है।
आइए जानते हैं, वे बड़े कारण जिनके चलते दिग्ग्ज कंपनियों को भी छंटनी का फैसला करना पड़ा-
1. कोरोना काल में 'ओवर हायरिंग' : लॉकडाउन के समय लोगों का स्क्रीन टाइम बढ़ने की वजह से प्रोडक्ट्स पर निर्भरता बढ़ गई थी। ऐसे में गूगल, मेटा और वाट्सअप ने जनता के लिए वीडियो कॉनफ्रेंसिंग की सुविधा को और बेहतर एवं यूजर फ्रेंडली बनाने के लिए लगातार बदलाव किए। बड़ी संख्या में प्रोडक्ट मैनेजर्स, डेवलपर्स, यूआई/यूएक्स डिजाइनर्स आदि को हायर किया गया था। मौजूदा समय में इनमें अब बदलाव लाने की जरूरत नहीं है। इसलिए कंपनियां वर्तमान समय में तालमेल बैठाने के लिए अपने कर्मचारियों की संख्या को कम करने की कोशिश कर रही हैं।
2. निवेशकों की ओर से दबाव : निवेशक आर्थिक मंदी को लेकर चिंतित हैं। वे कम्पनियों पर खर्च को लेकर आक्रामक रणनीति अपनाने पर दबाव बना रहे हैं। कम्पनियों के पास अधिक संख्या में कर्मचारी हैं और प्रति कर्मचारी लागत बहुत ज्यादा है। वैश्विक आर्थिक मंदी की संभावना के चलते कंपनियां छंटनी कर अपना 'मार्जिन' सुधारने की कोशिश में लगी है।
3. हाईपर ग्रोथ : टेक कम्पनियों ने पिछले तीन दशकों में काफी तरक्की की है पर कोरोना काल के बाद से हाई इंफ्लेशन रेट्स और घटती डिमांड को लेकर आईटी सेक्टर महत्वपूर्ण बदलावों से गुजर रहा है। टेक सेक्टर ने उच्च स्तर की ग्रोथ हासिल की है। ऐसे में माना जाता है कि इसके बाद 'डिक्लाइन स्टेज' आती ही है।
4. नेगेटिव केश फ्लो : कई निवेश नीतियां लाभहीन साबित हो रही हैं, जिसके कारण भविष्य में होने वाले प्रोजेक्ट्स पर काम रुक गया है। नेगेटिव केश फ्लो की परिस्थिति तब उत्पन्न होती है, जब व्यापार में कमाई से ज्यादा खर्च हो जाता है। इंटेल कंपनी ने भी भविष्य में होने वाले प्रोजेक्ट्स पर काम रोक दिया है। इस उम्मीद के साथ कि साल 2025 तक वो 10 बिलियन डॉलर्स बचा लेगी।
5. आर्थिक मंदी की संभावना : मल्टी-नेशनल कम्पनियां आर्थिक मंदी के डर से सावधानी बरत रही हैं। वर्ल्ड बैंक और इंटरनेशनल मोनिटरी फंड ने पहले ही इकोनॉमिक स्लोडाउन की चेतावनी दे दी है। भू-राजनैतिक तनाव भी आज के दौर की कमजोर होती अर्थव्यवस्था को बढ़ा रहा है।
रिर्पोट्स के मुताबिक ये छंटनी का दौर केवल आईटी सेक्टर तक ही सीमित नहीं रहने वाला है। यह वित्तीय, रिटेल, एनर्जी, हेल्थकेयर सेक्टर में भी देखने को मिल सकता है। लोगों की चिंता यह भी है कि क्या 2008 वाला मंजर एक बार फिर देखने को मिलेगा। हालांकि आर्थिक विश्लेषक और भारत इस बात को लेकर पूरी तरह आश्वस्त है कि हमारे देश में मंदी का ज्यादा असर नहीं होगा।