नई दिल्ली। कांग्रेस नेता एवं पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम और उनके बेटे कार्ति का नाम सीबीआई द्वारा एयरसेल-मैक्सिस सौदा मामले में गुरुवार को दायर आरोप-पत्र में शामिल किया गया है। उन पर आपराधिक साजिश और कदाचार का आरोप लगाया गया है।
एजेंसी ने विशेष सीबीआई न्यायाधीश ओपी सैनी के समक्ष पूरक आरोप-पत्र दायर किया जो 31 जुलाई को इस पर विचार करेंगे। चिदंबरम और कार्ति के अलावा सीबीआई ने लोकसेवकों समेत 10 व्यक्तियों और छ: कंपनियों को आरोपी बनाया है।
आरोप पत्र भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के तहत आपराधिक साजिश से संबंधित धारा और भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम के तहत लोकसेवक द्वारा रिश्वत लेने, इस अपराध के लिए उकसाने और लोक सेवक द्वारा आपराधिक कदाचार से संबंधित धाराओं में दायर किया गया है।
अगर इन अपराधों में दोष साबित हो जाता है तो आरोपियों को सात साल तक की सजा हो सकती है। सूत्रों के मुताबिक, सीबीआई को लोक सेवकों के खिलाफ अभियोजन की इजाजत नहीं मिली है। उन्होंने बताया कि कथित रिश्वत देने के लिए धन को मलेशिया की कंपनी और एयरसेल टेलीवेन्चर्स से लिया गया था।
सीबीआई इस बात की जांच कर रही थी कि 2006 में वित्त मंत्री रहते चिदंबरम ने विदेशी निवेश संवर्द्धन बोर्ड (एफआईपीबी) की मंजूरी एक विदेशी कंपनी को कैसे दे दी जबकि ऐसा करने का अधिकार सिर्फ आर्थिक मामलों पर कैबिनेट समिति (सीसीईए) के पास था।
जांच एजेंसियां 3,500 करोड़ रुपए के एयरसेल- मैक्सिस सौदे और 305 करोड़ रुपए के आईएनएक्स मीडिया मामले में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता की भूमिका की जांच कर रही थीं। इस मामले में पूर्व दूरसंचार मंत्री दयानिधि मारन, उनके भाई कलानिधि मारन और अन्य के खिलाफ पहले दायर किए गए आरोप पत्र में जांच एजेंसी ने आरोप लगाया था कि मार्च 2006 में चिदंबरम ने मारीशस की ग्लोबल कम्यूनिकेशन सर्विसेज होल्डिंस लि. को एफआईपीबी की मंजूरी दी थी। यह मैक्सिस की अनुवांशिक कंपनी है।
सीबीआई के पहले आरोप-पत्र में आरोपी बनाए मारन बंधु और अन्य को विशेष अदालत ने आरोप मुक्त कर दिया था और कहा था कि एजेंसी उनके खिलाफ सुनवाई शुरू करने लायक सामग्री पेश करने में विफल रही है। सीबीआई ने मारन बंधुओं के खिलाफ दायर आरोप-पत्र में आरोप लगाया था कि ग्लोबल कम्युनिकेशन सर्विसेज होल्डिंस लि. ने 80 करोड़ (800 मिलियन) अमेरिकी डॉलर की एफआईपीबी की मंजूरी मांगी थी जिसके के लिए सीसीईए सक्षम प्राधिकार था, लेकिन चिदंबरम ने मार्च 2006 में कंपनी को मंजूरी दे दी।
एजेंसी ने दावा किया था कि वित्त मंत्री के पास 600 करोड़ रुपए तक प्रस्ताव पर मंजूरी देने का अधिकार था और इस राशि से अधिक के प्रस्ताव को सीसीईए की मंजूरी जरूरी थी। प्रवर्तन निदेशालय भी एयरसेल-मैक्सिस सौदे में अलग से धनशोधन मामले की जांच कर रहा है जिसमें चिदंबरम और कार्ति से पूछताछ की जा चुकी है। चिदंबरम और कार्ति दोनों ने ही सीबाआई और प्रवर्तन निदेशालय के आरोपों से इंकार किया है। (भाषा)