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रात 2 बजे मणिपुर पर राज्यसभा में क्या बोले अमित शाह, शशि थरूर बोले देर से ही सही, कभी नहीं से बेहतर

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हमें फॉलो करें amit shah in parliament (photo sansad tv)

वेबदुनिया न्यूज डेस्क

, शुक्रवार, 4 अप्रैल 2025 (13:22 IST)
वक्फ (संशोधन) विधेयक पर लगभग 14 घंटे की मैराथन चर्चा, मतदान और विधेयक के पारित होने के बाद सरकार ने मणिपुर में राष्ट्रपति शासन की घोषणा पर चर्चा शुरू की। यह चर्चा रात 2 बजे शुरू हुई और महज 41 मिनट तक चली, जिसमें केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का 9 मिनट का जवाब भी शामिल था। 
 
लोकसभा में वक्फ (संशोधन) विधेयक के पारित होने के तुरंत बाद केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लागू करने के वैधानिक प्रस्ताव पर चर्चा शुरू करने का अनुरोध किया। यह प्रस्ताव उस समय सामने आया, जब मणिपुर में 13 फरवरी को केंद्रीय शासन की घोषणा की गई थी, जिसे संसद के इसी सत्र में अनुमोदन के लिए लाया गया था। रिजिजू, जो अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री के रूप में वक्फ कानून का संचालन भी कर चुके हैं, के इस कदम से विपक्ष स्तब्ध रह गया। 
 
विपक्ष ने इस देर रात की चर्चा का विरोध किया, लेकिन लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने इस पर जोर दिया और चर्चा शुरू करने का निर्देश दिया। इसके बाद केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने प्रस्ताव पेश किया।
 
शशि थरूर का जवाब और मणिपुर की स्थिति पर सवाल: चर्चा की शुरुआत के लिए कांग्रेस सांसद शशि थरूर को आमंत्रित किया गया। हैरान थरूर ने स्पीकर से सवाल किया, “क्या आप वास्तव में इस समय चर्चा चाहते हैं? चलिए इसे कल सुबह करते हैं।” लेकिन स्पीकर के नहीं मानने पर थरूर ने अपनी बात शुरू की। उन्होंने कहा, “मुझे कहना होगा कि मैं इस पर बहुत देर से बोलने के लिए उत्सुक हूं। देर से ही सही, कभी नहीं से बेहतर है। लेकिन कुछ घरेलू सच्चाइयों को सामने लाना जरूरी है। हम सभी ने मणिपुर की भयावह स्थिति देखी है, जो मई 2023 में अशांति शुरू होने के बाद धीरे-धीरे बिगड़ती गई और राष्ट्रपति शासन की घोषणा से पहले 21 महीनों तक जारी रही। कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए जिम्मेदार लोगों ने अपना काम नहीं किया।”
 
थरूर ने केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि राष्ट्रपति शासन तब लागू किया गया, जब सरकार को लगा कि एन बीरेन सिंह के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार मणिपुर में स्थिति को संभाल नहीं पाएगी। उन्होंने मणिपुर की हिंसा को “राष्ट्र की अंतरात्मा पर धब्बा” करार दिया और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से राज्य का दौरा न करने की आलोचना की। थरूर ने कहा, “राष्ट्रपति शासन एक आवश्यक कदम है, लेकिन यह पर्याप्त नहीं है।”
 
अमित शाह का जवाब: अमित शाह ने अपने 9 मिनट के जवाब में मणिपुर की स्थिति को स्पष्ट करने की कोशिश की। उन्होंने कहा, “मणिपुर में अशांति हाई कोर्ट के एक फैसले के कारण दो समुदायों के बीच जातीय हिंसा से शुरू हुई थी। यह न तो दंगा है और न ही आतंकवाद।” शाह ने यह भी दावा किया कि पिछले चार महीनों—दिसंबर, जनवरी, फरवरी और मार्च—में मणिपुर में कोई हिंसा नहीं हुई। 
 
उन्होंने विपक्ष के आरोपों का जवाब देते हुए कहा, “अशांति को किसी पार्टी से नहीं जोड़ा जाना चाहिए। मैं यह नहीं कहना चाहता कि आपके समय में इतनी हिंसा हुई और हमारे समय में कम हुई। हिंसा बिल्कुल नहीं होनी चाहिए। लेकिन यह दिखाने की कोशिश की गई है कि सांप्रदायिक हिंसा केवल भाजपा के शासन में हुई।” इसके बाद शाह ने मणिपुर के हिंसा के इतिहास का जिक्र किया। 
 
उन्होंने कहा, “1993 में मणिपुर में सांप्रदायिक हिंसा हुई थी। नगा-कुकी संघर्ष पांच साल तक चला, जिसमें 750 लोग मारे गए और एक दशक तक छिटपुट घटनाएं होती रहीं। 1997-98 में कुकी-पाइते संघर्ष में 40,000 लोग विस्थापित हुए और 352 लोग मारे गए। 1993 में मैतेई-पंगल संघर्ष में 100 से अधिक लोग मारे गए और हिंसा छह महीने तक चली। ये सभी घटनाएं भारतीय गठबंधन के कार्यकाल में हुई थीं। उस समय न तो प्रधानमंत्री और न ही गृह मंत्री ने मणिपुर का दौरा किया था।”
 
शाह ने आगे कहा, “हमारी पहली प्राथमिकता शांति स्थापित करना है। पिछले चार महीनों में एक भी मौत नहीं हुई, सिर्फ दो लोग घायल हुए हैं। मैं यह नहीं कहता कि यह संतोषजनक है। जब तक विस्थापित लोग शिविरों में रहेंगे, तब तक संतुष्टि की बात नहीं हो सकती।”
 
अन्य दलों की प्रतिक्रिया: तृणमूल कांग्रेस की सांसद सयानी घोष ने कहा कि उनकी पार्टी राष्ट्रपति शासन के प्रस्ताव का समर्थन करती है, लेकिन वे जल्द से जल्द शांति बहाली चाहते हैं। शिवसेना (यूबीटी) के सांसद अरविंद सावंत ने मणिपुर की स्थिति पर चिंता जताई। वहीं, डीएमके की सांसद के कनिमोझी ने मणिपुर में “विभाजनकारी राजनीति” को खत्म करने की मांग की।
 
मणिपुर में राष्ट्रपति शासन पर यह चर्चा भले ही देर रात और संक्षिप्त रही, लेकिन इसने राज्य की जटिल स्थिति और केंद्र सरकार के रुख को उजागर किया। जहां विपक्ष ने इसे देरी से उठाया गया कदम बताया, वहीं अमित शाह ने इसे जातीय हिंसा का परिणाम करार देते हुए शांति बहाली के प्रयासों पर जोर दिया। यह चर्चा मणिपुर के भविष्य और वहां के लोगों के लिए शांति की राह को लेकर कई सवाल छोड़ गई।

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