भगतसिंह के जन्मदिन पर सेना का सर्जिकल हमला

Webdunia
गुरुवार, 29 सितम्बर 2016 (15:23 IST)
27 सितंबर को भारत के महान क्रांतिकारी भगतसिंह का जन्मदिन था। और, ऐसा माना जा सकता है कि सेना ने नियंत्रण रेखा को पारकर आतंकवादियों के 7 शिविरों को नष्ट करके कम से कम 35 आतंकवादियों और पाकिस्तान की सेना के दो जवानों को मारकर भगत सिंह को जन्मदिन की बधाई दी है। साथ ही सेना ने उड़ी हमले में शहीद हुए अपने 18 जवानों को भी श्रद्धांंजलि भी दी है।
भारतीय सेना के डीजीएमओ लेफ़्टिनेंट जनरल रणबीर सिंह ने कहा, 'ये स्ट्राइक्स बुधवार रात को नियंत्रण रेखा पर आतंकवादी अड्डों पर की गईं, जब ये पक्की जानकारी मिली कि आतंकवादी नियंत्रण रेखा पर जमा हो रहे हैं।' उन्होंने ये भी कहा कि पाकिस्तान के डीजीएमओ से इस बारे में बात की गई है और उन्हें बता दिया गया है कि ये स्ट्राइक्स ख़त्म हो चुकी हैं और फ़िलहाल इनको जारी नहीं रखा जाएगा।
 
13 अप्रैल 1919 को जलियांवाला बाग हत्याकांड ने भगत सिंह के बाल मन पर बड़ा गहरा प्रभाव डाला। भगतसिंह के बारे में कहा जाता है कि हिंसा के रास्ते पर चलने वालों के साथ उन्हीं की भाषा में जवाब देना जरूरी है। भगतसिंह चाहते थे कि हमें आजादी अपने दम पर मिले खैरात में नहीं। बम और बंदूक के दम पर अपने आत्मसम्मान और आत्मरक्षा को महत्व देने के कारण ही उन्हें उग्र दल का नेता माना जाता था।
 
भगतसिंह पहले महात्‍मा गांधी द्वारा चलाए जा रहे आंदोलन और भारतीय नेशनल कॉन्फ्रेंस के सदस्‍य थे। 1921 में जब चौरी-चौरा हत्‍याकांड के बाद गांधीजी ने किसानों का साथ नहीं दिया तो भगतसिंह पर उसका गहरा प्रभाव पड़ा। उसके बाद चन्द्रशेखर आजाद के नेतृत्‍व में गठित हुई गदर दल के हिस्‍सा बन गए। उन्‍होंने चंद्रशेखर आजाद के साथ मिलकर अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन शुरू कर दिया। 9 अगस्त, 1925 को शाहजहांपुर से लखनऊ के लिए चली 8 नंबर डाउन पैसेंजर से काकोरी नामक छोटे से स्टेशन पर सरकारी खजाने को लूट लिया गया। यह घटना काकोरी कांड नाम से इतिहास में प्रसिद्ध है। इस घटना को भगत सिंह, रामप्रसाद बिस्मिल, चंद्रशेखर आजाद और प्रमुख क्रांतिकारियों ने साथ मिलकर अंजाम दिया था।
 
भगत सिंह ने राजगुरु के साथ मिलकर 17 दिसंबर 1928 को लाहौर में सहायक पुलिस अधीक्षक रहे अंग्रेज़ अफसर जेपी सांडर्स को मारा था। इसमें चन्द्रशेखर आज़ाद ने उनकी पूरी सहायता की थी। क्रांतिकारी साथी बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर भगत सिंह ने अलीपुर रोड दिल्ली स्थित ब्रिटिश भारत की तत्कालीन सेंट्रल असेंबली के सभागार में 8 अप्रैल 1929 को अंग्रेज़ सरकार को जगाने के लिए बम और पर्चे फेंके थे।
 
देश पर अपनी जान न्योछावर कर देने वाले शहीद-ए-आजम भगत सिंह ने अपनी मां की ममता से ज्यादा तवज्जो भारत मां के प्रति अपने प्रेम को दी थी। कहा जाता है कि भगतसिंह को फांसी की सजा की आशंका के चलते उनकी मां विद्यावती ने उनके जीवन की रक्षा के लिए एक गुरुद्वारे में अखंड पाठ कराया था। इस पर पाठ करने वाले ग्रंथी ने प्रार्थना करते हुए कहा, ‘गुरु साहब... मां चाहती है कि उसके बेटे की जिन्दगी बच जाए, लेकिन बेटा देश के लिए कुर्बान हो जाना चाहता है। मैंने दोनों पक्ष आपके सामने रख दिए हैं जो ठीक लगे, मान लेना।’
 
पंजाब के लायलपुर जिले (वर्तमान में पाकिस्तान का फैसलाबाद) के बांगा गांव में 27 सितंबर 1907 को जन्मे शहीद-ए-आजम भगत सिंह जेल में मिलने के लिए आने वाली अपनी मां से अक्सर कहा करते थे कि वेे रोएं नहीं, क्योंकि इससे देश के लिए उनके बेटे द्वारा किए जा रहे बलिदान का महत्व कम होगा। 23 मार्च 1931 को वेे देश के लिए फांसी के फंदे पर झूल गए। 
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