अवंतीपुरा (कश्मीर)। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने शनिवार को कहा कि उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि पार्टी के पूर्व नेता गुलाम नबी आजाद मीर जाफर बनेंगे और आरोप लगाया कि भाजपा ने उन्हें जम्मू -कश्मीर में कांग्रेस का वोट काटने के लिए खड़ा किया है।
भारत जोड़ो यात्रा में पदयात्रा कर रहे रमेश ने पीटीआई से कहा कि अभी सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि जम्मू-कश्मीर के राज्य का दर्जा बहाल किया जाए और चुनाव कराए जाएं। उन्होंने कहा कि साथ ही यह भी जरूरी है कि लद्दाख को संविधान की छठी अनुसूची के तहत लाया जाए ताकि यह नौकरशाहों द्वारा नहीं बल्कि निर्वाचित प्रतिनिधियों द्वारा शासित हो। भारत जोड़ो यात्रा कश्मीर में अपने अंतिम चरण में है और इसका समापन 31 जनवरी को होने वाला है।
उन्होंने डेमोक्रेटिक आज़ाद पार्टी (डीएपी) के प्रमुख एवं कांग्रेस के पूर्व नेता गुलाम नबी आज़ाद को वोटों को बांटने की भाजपा की योजना के तहत सूचीबद्ध किया। रमेश के अनुसार उस सूची में ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन के असदुद्दीन ओवैसी और आम आदमी पार्टी (आप) भी शामिल है।
रमेश ने कहा कि कांग्रेस से उनका जाना वोट काटने की मोदी-शाह की योजना का हिस्सा था। भारत में तीन वोट कटवा हैं - भाजपा द्वारा खड़े किए गए असदुद्दीन ओवैसी और आप तथा जम्मू कश्मीर में कांग्रेस के वोट काटने के लिए खड़े किए गए आज़ाद। मुझे नहीं लगता कि ऐसा वास्तव में होगा।
यह पूछे जाने पर कि क्या आजाद अपनी डीएपी से कांग्रेस की संभावनाओं में सेंध लगाएंगे, रमेश ने कहा कि आजाद के साथ कांग्रेस छोड़कर गए अधिकतर कार्यकर्ता और नेता पार्टी में वापस लौट आए हैं।
यह पूछे जाने पर कि क्या आज़ाद कभी कांग्रेस में वापसी कर सकते हैं जैसा उनकी नवगठित पार्टी के सहयोगियों ने वापसी की है, रमेश ने कहा कि मुझे नहीं पता कि श्री आज़ाद की क्या योजनाएं हैं। मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि वह वास्तव में कांग्रेस छोड़ देंगे। यही वह पार्टी है जिसने लगभग 50 वर्षों तक उन्हें एक पहचान दी, उन्हें मुख्यमंत्री, केंद्रीय मंत्री, विपक्ष के नेता सहित पार्टी और सरकार में हर संभव पद दिया लेकिन मैंने कभी नहीं सोचा था कि वह मीर जाफर होंगे।
मीर जाफर बंगाल के नवाब सिराज उद-दौला के तहत बंगाल सेना का कमांडर था। मीर जाफर ने प्लासी की लड़ाई के दौरान सिराज उद-दौला को धोखा दिया, जिससे भारत में अंग्रेजों के शासन का मार्ग प्रशस्त हुआ।
कांग्रेस महासचिव रमेश ने यह स्वीकार किया कि वह कभी भी आज़ाद के करीबी सहयोगी नहीं रहे। रमेश ने कहा कि जिस तरह से उन्होंने (आजाद ने) पार्टी छोड़ी, वह उसे कभी स्वीकार नहीं कर सकते, उन्होंने (आजाद ने) विशेष रूप से पिछले 50 वर्षों में कांग्रेस से सभी लाभ प्राप्त करने के बाद जिस तरह से पत्र लिखा, उसने उन्हें (आजाद को) कांग्रेस के हर व्यक्ति की नज़र में गिरा दिया।
यह पूछे जाने पर कि वह जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को रद्द किये जाने और उसके प्रभाव को कैसे देखते हैं, रमेश ने कांग्रेस के 6 अगस्त, 2019 के प्रस्ताव का उल्लेख करते हुए कहा कि पार्टी लोकतांत्रिक प्रक्रिया, पूर्ण राज्य के दर्जे की बहाली के साथ ही यह भी चाहती है कि लद्दाख को संविधान की छठी अनुसूची का दर्जा मिले और वहां शासन नौकरशाहों द्वारा नयी दिल्ली से आदेश के अनुसार नहीं चलाया जाए।
रमेश ने कहा कि इस प्रक्रिया को बेवजह लंबा खींचा जा रहा है। लेकिन मैं यह कहना चाहता हूं कि किसी को यह नहीं भूलना चाहिए कि भारतीय संविधान में अनुच्छेद 371 ए-जे है, जिसमें नगालैंड, सिक्किम, गोवा अरुणाचल प्रदेश, असम के कुछ हिस्सों के लिए विशेष प्रावधान हैं। वास्तव में, अनुच्छेद 371 में गुजरात, महाराष्ट्र और कर्नाटक के कुछ हिस्सों के लिए विशेष प्रावधान हैं। इसलिए अनुच्छेद 370 की आलोचना करने वालों को अनुच्छेद 371 को भी देखना चाहिए।
जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधानों को 2019 में निरस्त कर दिया गया था और तत्कालीन राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों-जम्मू कश्मीर और लद्दाख- में विभाजित कर दिया गया था।
कांग्रेस महासचिव रमेश ने आरोप लगाया कि जम्मू कश्मीर में सामान्य स्थिति के दावे काफी हद तक बढ़ा-चढ़ाकर पेश किए गए हैं क्योंकि लक्षित हत्याएं जारी हैं, न केवल कश्मीर में बल्कि जम्मू, पुंछ राजौरी और पूरे जम्मू-कश्मीर में भी। रमेश ने आरोप लगाया कि निवेश या आर्थिक बढ़ोतरी के आंकड़े केवल "कागजी आंकड़े" हैं।
उन्होंने कहा कि असंतोषण की अंतर्निहित भावना, अब वह असंतोष सिर्फ कश्मीर में ही नहीं, वह जम्मू में और विशेष रूप भूमि से संबंधित मामलों को लेकर अन्य हिस्सों में से भी है, जिसे मैंने महसूस किया है। ऐसा इसलिए क्योंकि आप चाहे जम्मू में रह रहे हैं या में कश्मीर सबसे बड़ी आशंका जमीन और रोजगार को लेकर है।
रमेश ने कहा कि जम्मू कश्मीर में लोगों की भूमि और नौकरी के अधिकारों की रक्षा के लिए कुछ विशेष प्रावधान होने चाहिए, जो एक तरह से अनुच्छेद 370 से मिलते थे।
उन्होंने कहा कि सबसे महत्वपूर्ण बात है कि जम्मू कश्मीर को एक पूर्ण राज्य बनाना, यहां चुनाव कराना और लद्दाख को छठी अनुसूची के तहत लाना।
छठी अनुसूची और एक केंद्र शासित प्रदेश के बीच अंतर यह है कि छठी अनुसूची के तहत मामलों का प्रबंधन निर्वाचित प्रतिनिधि करते हैं जबकि केंद्र शासित प्रदेश के मामले में उसका शासन गृह मंत्रालय में संयुक्त सचिव करते हैं।
रमेश की यह टिप्पणी ऐसे समय आई है जब डीएपी के कई संस्थापक सदस्य कुछ दिन पहले कांग्रेस में लौट आए हैं।
कांग्रेस के साथ पांच दशक से अधिक समय तक जुड़े रहने के बाद आजाद ने पिछले साल पार्टी से नाता तोड़ लिया था और एक लंबा इस्तीफा लिखा था जिसमें उन्होंने पार्टी के शीर्ष नेतृत्व की आलोचना की थी। भाषा