क्या संविधान की प्रस्तावना से हटेंगे 'सेक्युलर' और 'सोशलिस्ट' शब्द... भाजपा सांसद भीम सिंह ने राज्यसभा में प्राइवेट मेंबर बिल पेश कर एक नई बहस छेड़ दी है। भाजपा सांसद भीम सिंह ने संविधान की प्रस्तावना से 'सेक्युलर' और 'सोशलिस्ट' शब्द हटाने की मांग करते कहा कि ये शब्द आपातकाल में बिना बहस के जोड़े गए थे और मूल संविधान में शामिल नहीं थे। सिंह ने कहा कि संविधान की संरचना ही देश को धर्मनिरपेक्ष बनाती है, इसलिए अलग से 'सेक्युलर' शब्द जोड़ना जरूरी नहीं था। अब इन्हें हटाकर संविधान को उसके मूल रूप में लौटाना जरूरी है।
खबरों के अनुसार, भाजपा सांसद भीम सिंह ने राज्यसभा में प्रायवेट बिल पेश कर एक नई बहस छेड़ दी है। भाजपा सांसद भीम सिंह ने संविधान की प्रस्तावना से 'सेक्युलर' और 'सोशलिस्ट' शब्द हटाने की मांग करते कहा कि ये शब्द आपातकाल में बिना बहस के जोड़े गए थे और मूल संविधान में शामिल नहीं थे। सिंह ने कहा कि संविधान की संरचना ही देश को धर्मनिरपेक्ष बनाती है, इसलिए अलग से 'सेक्युलर' शब्द जोड़ना जरूरी नहीं था।
सिंह ने कहा, अब इन्हें हटाकर संविधान को उसके मूल रूप में लौटाना जरूरी है।ये शब्द आपातकाल के दौरान बिना लोकतांत्रिक प्रक्रिया के जोड़े गए थे। सिंह का कहना है कि प्रस्तावना में ये शब्द जोड़ने का निर्णय मजबूरी और तत्कालीन राजनीतिक हितों को साधने के लिए किया गया था।
उन्होंने कहा कि अंबेडकर ने स्पष्ट कहा था कि भविष्य की पीढ़ियों पर किसी एक आर्थिक या राजनीतिक विचारधारा को थोपना सही नहीं होगा, इसलिए 'सोशलिस्ट' शब्द भी आवश्यक नहीं था। सांसद का दावा है कि सेक्युलर शब्द मुसलमानों को खुश करने और सोशलिस्ट शब्द तत्कालीन सोवियत संघ को खुश करने के लिए जोड़ा गया।
सिंह ने सवाल उठाया कि क्या 1976 से पहले भारत धर्मनिरपेक्ष नहीं था? क्या नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री या खुद इंदिरा गांधी की सरकार सांप्रदायिक थी? भले ही प्राइवेट मेंबर बिलों के पास होने की संभावना बेहद कम रहती है, लेकिन सिंह का मानना है कि इस मुद्दे को उठाने से सरकार और जनता दोनों का ध्यान इस पर जाएगा।
Edited By : Chetan Gour