अब कृष्ण भी अपने श्यामवर्ण के लिए मां यशोदा से शिकवा न करे, क्योंकि आधुनिक राधा को अपने सांवलेपन पर अभिमान है।
पहले सांवले रंग की हीनता ने एक छद्म बाजार को जन्म दिया और अब सांवला बाजार की डिमांड और उसकी हकीकत भी है।
पुरुषों को अपने काले या सांवले रंग को लेकर कभी कोई शिकायत बहुत आम नहीं रही है। लेकिन जब कृष्ण ने कुछ दशक पहले अपनी मां यशोदा से पूछा था कि ‘राधा क्यों गोरी, मैं क्यूं काला’ तो शायद पुरुषों के मन में भी कहीं यह सवाल कौंधा हो।
बहरहाल, काले और गोरे का यह सब्जेक्ट पुरुषों से ज्यादा महिलाओं का रहा है। इसी सब्जेक्ट की वजह से एक पूरे बाजार का जन्म हुआ जो दावा करता है कि वो काले को गोरा कर देगा। फेयर एंड लवली इसका बहुत बड़ा उदाहरण है।
लेकिन पिछले कुछ सालों में महिलाओं ने इस बाजार को पूरी तरह से नकारना शुरू कर दिया। दुनियाभर में महिलाओं ने अपने सांवलेपन को पूरे आत्मविश्वास के साथ अपनाया। पिछले दिनों के फेसबुक और इंस्टाग्राम खंगाले जाएंगे तो पता चलेगा कि हजारों टॉप मॉडल्स, एक्ट्रेस और तमाम सेक्टर की दूसरी महिलाओं ने अपने रंग को अपनी अपील और यूएसपी में तब्दील किया है।
अभिनेत्री नंदिता दास ने तो बकायदा इसे लेकर अभियान चलाया था और कहा था कि ‘अपने रंग पर प्राउड फील करे चाहे वह सांवला हो या काला’
कई महिलाएं इस कैंपेन से जुडीं। ठीक ऐसा ही विदेशों में भी हुआ। नतीजा यह है कि सांवला रंग अब एक जरुरत है और मांग भी। हम उसे देखना चाहते हैं और समझना भी। खासतौर से फिल्मों और मॉडलिंग की दुनिया में।
स्मिता पाटिल से लेकर नंदिता दास, बिपाशा बसू,काजोल और राधिका आप्टे तक इस लकीर को खींचकर बड़ा करती आ रही हैं। इस लकीर में और भी कई अनजान नाम जुडे हुए हैं। अपने बयान के बाद शाहरुख खान की बेटी सुहाना भी अब इस लकीर की एक कड़ी है।
पहले सांवले रंग की हीनता और काले को गोरे में बदलने की इच्छा की वजह से एक छद्म बाजार का उदय हुआ था, लेकिन इसे स्वीकार कर लेने के बाद अपने आत्मविश्वास और इमानदारी में सांवला रंग अब बाजार की डिमांड और उसकी हकीकत है।
व्यक्तिगत तौर पर काले और गोरे के बीच में से किसी एक को चुनना या पसंद करना एक निजी आजादी है जो कुछ हद तक ठीक भी है। इसमें किसी की आत्मा या मोरॉल को बहुत ज्यादा ठेस नहीं पहुंचती है। लेकिन जब यह दो वर्गों और दो देशों के बीच पसर जाए तो खतरनाक हो जाता है। यही अमेरिका में हुआ।
अमेरिका में इसकी सबसे बड़ी तस्वीर उभरकर आती है। हाल ही में जॉर्ज फ्लॉयड की हत्या रंग-भेद का प्रतीक बन गई। इस हत्या के बाद ‘ब्लैक लाइव्स मैटर’ जैसा मूवमेंट सामना आया। अब पूरी दुनिया में नस्लीय मानसिकता को लेकर बहस छिड़ गई है। अश्वेत अब रंग-भेद में अपने अधिकारों के लिए लड़ रहे हैं।
नस्लीय और रंग-भेद की मानसिकता को खत्म करने के इस मूवमेंट ने अब उस बाजार को भी सबक सिखाना शुरू कर दिया है।
यूनिलिवर कंपनी अपने सौंदर्य उत्पाद 'फेयर ऐंड लवली' का नाम बदलने जा रही है। यूनिलिवर कंपनी सिर्फ फेयर ऐंड लवली ब्रैंड से ही भारत में सालाना 50 करोड़ डॉलर से ज्यादा का कारोबार करती है।
यूनिलिवर कंपनी ने कहा है कि वह अपने ब्रैंड की पैकेंजिंग से फेयर, व्हाइटनिंग और लाइटनिंग जैसे शब्दों को हटा देगी। भारत के अलावा यह क्रीम बांग्लादेश, इंडोनेशिया, थाईलैंड, पाकिस्तान और एशिया के कई देशों में बिकती है।
कुछ ही दिनों पहले जॉनसन एंड जॉनसन कंपनी ने कहा था कि वह स्किन व्हाइटनिंग के कारोबार से हट रही है।
यूनिलिवर ब्यूटी एंड पर्सनल केयर डिवीजन के अध्यक्ष सनी जैन का मीडिया में बयान आया है-
‘हम इस बात को समझते हैं कि फेयर, व्हाइट और लाइट जैसे शब्द सुंदरता की एकपक्षीय परिभाषा को जाहिर करते हैं जो सही नहीं है। हम इसमें सुधार कर रहे हैं’
रंग-भेद की दुनिया में यह एक बहुत बड़ा बदलाव है जो सीधा आदमी की मानसिकता से जुड़ा है।
उम्मीद की जाना चाहिए कि अब कृष्ण भी अपने श्यामवर्ण के लिए अपनी मां यशोदा से शिकवा नहीं करेंगे। क्योंकि आधुनिक राधा को अपने सांवले होने पर भी अभिमान है।