मोदीजी- अब ये भी कर दीजिए...

#नोटबंदी #नोटबंदीपरसवाल–1 

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आठ नवंबर 2016 की रात 8 बजे प्रधानमंत्री मोदी का भाषण शुरू हुआ और चंद ही मिनटों के बाद लोग स्तब्ध रह गए। दिन में सेनाध्यक्षों से मिलने के बाद  कयास तो यही थे कि पाकिस्तान से युद्ध जैसी कोई घोषणा हो जाए। पर ये तो 500 और 1000 के नोट बंद करने की घोषणा थी। सिर्फ़ चार घंटे के भीतर! अच्छे  और बुरे की बात तो बाद में, पर हाँ बड़ा फैसला। दुस्साहसी फैसला! नया या अनोखा नहीं, पर जिस समय और जिस तरीके से लिया गया वो बहुत सोच और हिम्मत की दरकार रखता है। इतने बड़े देश में जहाँ बैंक की पहुँच बहुत सीमित है और एक बहुत बड़ा मध्यम वर्ग है, वहाँ इस कदम के दुष्परिणामों की कल्पना करना बहुत मुश्किल है। वो तो अब जाकर असल में ज़मीन पर दिखाई दे रहा है। 
तो इस क़दम को भी लक्षित हमला यानी सर्जिकल स्ट्राइक माना गया। लक्ष्य किस पर ? – 
- काले धन पर – वो पैसा जिसे बिना टैक्स चुकाए, बिना किसी खाते में बताए 500 और 100 की शक्ल में संचित कर रखा है। 
- जाली नोटों पर – 500 और 1000 के नकली नोट भी बड़ी मात्रा में चलन में हैं। इसके पीछे पाकिस्तान की आईएसआई का हाथ माना जाता है। 
- अधिकारी, कर्मचारी, भू-माफिया, नेता, व्यापारी जो ख़ूब कमाते हैं पर सब छुपाते हैं। टैक्स नहीं चुकाते हैं। 
- आतंकवादी, तस्कर, नक्सलवादी जो इसी कालेधन पर पनपते हैं अच्छा किया आपने। हिम्मत तो की। जिनके पास बोरे भरे हैं अधिकतर वो ही तो - 
- एक झटके में लैंड रोवर, पजेरो और बीएमडब्ल्यू उठा लाते हैं
- आलीशान कोठियाँ बनवाते हैं
- बच्चों के साथ महीनों विदेश में बिताते हैं
- गरीबों के तथाकथित मसीहा कहलाते हैं 
 
ये ठीक है कि इस कदम से आतंकवादी, आईएसआई, और तस्कर कराह रहे होंगे.... ...पर ये भारत को लूटने वाले अय्याश, ये नेता और अधिकारी सुधर जाएँगे? अभी तो इनमें हड़कंप है पर क्या आगे ये 
- अधिक ख़ूनी दरिन्दे नहीं बन जाएँगे? 
- 50 की जगह 500 की रिश्वत नहीं ली जाएगी? 
- सरकारी ठेकों में पाँच रुपए का काम 100 रुपए में नहीं होगा? 
और क्या इनका काला पैसा केवल नोटों की शक्ल में था? कोठी, बंगले और गाड़ियों का क्या? विदेशों में जमा काले धन का क्या? किलो से जमा कर रखे सोने का क्या? 
क्या हमारा सिस्टम इतना मजबूत है कि इन सबको पकड़ लेगा? किसी को भी नहीं बख़्शेगा? 
 
ये बताइए कि - रिश्वत और भ्रष्टाचार को छोड़ दीजिए, पर अपनी मेहनत से कमाए पैसों को भी आदमी घोषित करना और बैंक में क्यों रखना नहीं चाहता? – एक तो सब ख़ुद ही रखना चाहता है, दूसरे उसको भरोसा नहीं है इस व्यवस्था पर! वो जमा करेगा तो भी किसी भ्रष्ट नेता के ही काम आएगा... मैं बाज़ार में खर्च करूँगा तो अर्थव्यवस्था के ही काम आएगा, बाज़ार में पैसा रहेगा।
 
फिर आप कहते हो कि प्लास्टिक मनी का ही इस्तेमाल करो। तो उसके लिए मैं 100 रुपए की चीज़ 105 रुपए में क्यों ख़रीदूँ? मुझसे सरचार्ज क्यों वसूला जाता है?

खाते सही रखने पर भी अधिकारी केवल रिश्वत की खातिर मुझे परेशान क्यों करता है? अभी नए नोट बाज़ार में आने के बाद भी फिर से बिना रसीद के ख़ूब व्यापार हो रहा है, मतलब वो ही काला पैसा....। 
 
मोदी जी कलेजा तो आपने बहुत दिखाया। अपने 56 इंच के सीने को भी नपवाया... लाभ राजनीतिक भी है और आर्थिक भी ... पर इतना और कर दीजिए कि जो भरोसे की कमी है, सरकार और व्यवस्था पर ... उसे ठीक कर दीजिए .... इस भरोसे की कमी को दूर कर दीजिए नहीं तो इतिहास में आपका ये दुस्साहस भी बस एक कोशिश के रूप में दर्ज़ होकर रह जाएगा। (वेबदुनिया न्यूज़)
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