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वीर योद्धाओं की बेटि‍यां जब मुखाग्‍नि देती हैं तो देश का मस्‍तक और ऊंचा उठ जाता है

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नवीन रांगियाल

देश के लिए बलिदान हो जाने वाले जांबाज अधि‍कारियों को जब पंचतत्‍व में विलिन किया जा रहा था तो इनकी चिताओं और ताबूतों के बाजू में जो सबसे साफ दृश्‍य और तस्‍वीरें थीं वो थी उनकी बेटियों की तस्‍वीरें।

सीडीएस जनरल बिपिन रावत हो या ब्रि‍गेडि‍यर एलएस लिड्डर। जब दोनों को देश अंतिम बिदाई दे रहा था, उस वक्‍त उनके सबसे करीब अगर कोई था तो उनकी बेटियां थीं।

उनकी विदाई और सम्‍मान में जिस वक्‍त राष्‍ट्रीय गान की धुन बज रही थी, तोपों की सलामी दी जा रही थी, उस वक्‍त कोई बेटी उनके ताबूत को चूम रही थीं, तो कोई ताबूत पर लहराए गए तिरंगे को अपने सीने से लगाकर खड़ी थी।

जिस वक्‍त हम और पूरा देश अपने आंसुओं को पोंछने में व्‍यस्‍त था, उस वक्‍त ये बेटि‍यां अपने पूरे हौंसले के साथ अपने-अपने पिताओं को मुखाग्‍नि दे रही थीं।

हिंदू मान्‍यता के मुताबिक जिस काम को अब तक बेटे करते आएं हैं, अंतिम संस्‍कार के उसी काम को हाथ में जलती हुई लकड़ि‍यां उठाकर ये बेटि‍यां देश के टूटे हुए हौंसले को उंचा उठाने का काम कर रही थीं।

जैसे -जैसे इन वीर पिताओं की चिता की आंच उंची उठती जा रही थी, ठीक उसी वक्‍त बेटि‍यों के इस साहस की वजह से पूरे देश का मान और गौरव ऊंचा उठता जा रहा था।

कहा जा सक‍ता है कि जहां एक तरफ सीडीएस जनरल रावत और ब्रि‍गेडि‍यर लिड्डर ने देश को दिए अपने योगदान से देश के माथे पर ति‍लक लगाया, वैसे ही अब उनकी बेटि‍यां इस दुख की घड़ी में भी मुखाग्‍नि देकर इस बात का सबूत दे रही थी कि वे कोई आम नहीं बल्‍कि इस देश की सर्वोच्‍च सेवा में अपना बलिदान दे गए बहादूर पिताओं की वीरांगनाएं बेटि‍यां हैं।

दूसरी तरफ वहां मौजूद नागरिकों के साथ ही पूरे देश में टीवी स्‍क्रीन पर नजर लगाए बैठा जनसमुदाय एक साथ दिवंगत बहादूर वीरों के साथ उनकी बेटि‍यों को भी अपनी भीगी आंखों से सलामी दे रहा था।

लेकिन साहस यह कि अपने पिताओं को अग्‍न‍ि देते हुए बेटि‍यों की आंखें नम जरूर थीं, लेकिन उनकी हिम्‍मत और हौंसलें दूर आसमान तक छलांग लगा रहे थे। वे कह रही थीं, वे इस समाज में बनाए गए हर परंपरा का विकल्‍प हैं, वे कह रही थीं कि दुनिया का कोई पिता इस काम के लिए मोहताज नहीं हो सकता अगर उसके पास कृतिका, तारिनी और आशना जैसी बेटि‍यां हैं।

बिपिन रावत की बेटि‍यां कृतिका और तारिनी ने तो अपने माता और पिता दोनों को ही खो दिया, लेकिन उनके जज्‍बात में कहीं इस बात की कमी नहीं थी कि वे अब अ‍केली रह गईं हैं। वहीं ब्र‍िगेडियर लिड्डर की बेटी आशना ने पिता को मुखाग्‍नि देते हुए जो बात कह दी वो कोई बेटा भी शायद नहीं कह पाता। आशना ने कहा,

मेरे पिता हीरो थे, वे मेरे बेस्ट फ्रेंड थे। शायद किस्मत को यही मंजूर था। उम्मीद करते हैं कि भविष्य में अच्छी चीजें हमारी जिंदगी में आएंगी। मेरे सबसे बड़े मोटिवेटर थे। यह पूरे देश का नुकसान है।'

आमतौर पर पिता अपनी बेटि‍यों के विवाह में उन्‍हें अपना घर बसाने के लिए विदाई देते हैं, लेकिन जिस उम्र में इन बेटि‍यों ने जिस हिम्‍मत और हौंसले के साथ अपने पिताओं को अंतिम विदाई दी है, यह कहना होगा कि आपके पिता तो देश के हीरो है और र‍हेंगे ही, आप जैसी बेटि‍यां भी हम सब की हीरो हैं।

आपके पिता देश के हीरो हैं और र‍हेंगे ही, आप जैसी बेटि‍यां भी हम सब की हीरो हैं

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